SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उनकी लगन और दृष्टि D मुनिश्री यशोविजयजी जैन धर्म के प्रभावक श्री साहूजी को मैं परोक्ष रीति संपुट को छापनी पडेगी, विश्व के कोने कोने मे जाने के से जानता था किन्तु प्रत्यक्ष परिचय के बाद विशेष रूप लिए। भगवान महावीर के चित्र के प्रचार के बारे मे से जानकारी मिली। उनमें कितनी लगन थी, यह दिखाई पड़ता है। प्रशांत स्वभाव सुश्रावक श्री श्रेयासप्रसादजी जैन जो उसी समय मेरे पास स्वनिर्मित होता मेरे प्रति हार्दिक भाव रखते हैं, उनके कहने से साहूजी भगवान का कमल था। वह देख कर वे बहुत ही प्रसन्न भगवान श्री महावीर के प्रगट होनेवाले चित्र सपूट की है। प्रार सामने से माग की, तो बरे प्रेम से भेंट किया। जानकारी और कुछ प्रस्ताव रजू करने के लिए बम्बई निवाण महोत्सव बड़े उत्साह से प्रभावपूर्ण ढंग से पाये। पूर्व निश्चित समय पर वे श्री श्रेपासप्रसादजी के सम्मान हुमा । जैन धर्म और भगवान श्री महावीर की साथ भुझसे मिलने के लिये वालकेश्वर उपाश्रय में पाये । जानकारी सबको मिले, इसके लिए उनमें जो लगन देखी साथ थे मे श्री लक्ष्मीचन्दजी जैन और श्री प्रगरचन्दना और अस्वस्थ होते हुए भी वे कार्य करते रहे तदर्थ साहजी नाहटा भी। दो दिन मिले, घटो विविध विषयों पर चर्चा का शतशः धन्यवाद है । तदनतर सेठश्री कस्तूरभाई का वार्तालाप हुमा। चित्रों को देखकर, सपुट का कार्य देखकर नाम भी उल्लेखनीय है । दोनो की विशिष्ट दृष्टि, पति, बोले-'जैन कला मर गई है, ऐसा ही माना जाता था। शक्ति और प्रभाव से निर्वाण महोत्सव जय-जयकार रूप लेकिन सचमुच प्रापने जैन कला जीवत कर दी है, में अविस्मरणीय बन गया। मापने साधु होकर जो काम किया है, उससे साश्चर्य गौरव अनुभव करता हू ।' निर्वाण महोत्सव के बारे मे उनको उपस्थिति मे तीथों का विवाद समाप्त हो भी विविध स्तर पर वार्तालाप हुमा था। जाता तो कितना सुन्दर हो जाता ? अन्त मे, यहो क मना है कि उनका परिवार उन्ही के उन्होंने यह भी कहा कि दिगंबरीय चार-पांच चित्र. मार्ग पर चले, साप्रदायिक दृष्टि से विमुक्त बनकर जैन संपुट में सम्मिलित किये जायें, तो २५ हजार प्रतियो धर्म और समाज सेवा करता रहे। 000
SR No.538031
Book TitleAnekant 1978 Book 31 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1978
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy