SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्थापित : १९२६ प्राचीन जैन साहित्य की वीर सेवा मन्दिर २१, दरियागंज, नई दिल्ली-२ समृद्ध परम्परा वीर सेवा मदिर उत्तर भारत का अग्रणी जैन | संस्कृति, साहित्य, इतिहास, पुरातत्त्व एवं दर्शन शोध । प्राचीन जैन साहित्य का क्षेत्र प्रति विस्तृत है। प्राकृत, | संस्थान है जो १९२६ से अनवरत अपने पुनीत उद्देश्यों की | संस्कृत, अपभ्रंश कन्नड़, तमिल, गुजराती, मराठी हिन्दी सम्पूर्ति में संलग्न रहा है। इसके पावन उद्देश्य इस प्रादि विभिन्न भाषामों में निवद्ध इस साहित्य की भजन प्रकार हैं : धारा प्रति प्राचीन काल से अद्यावधि प्रविछिन्न रूप से 0 जन-जनेतर पुरातत्व सामग्री का संग्रह, संकलन | वहित चली पा रही है । श्वेताम्बर तथा दिगम्गर दोनों मोर प्रकाशन । सम्प्रदायों का साहित्य प्रायः भिन्न है। 0 प्राचीन जैन-जनेतर ग्रन्थों का उद्धार । लोक हितार्थ नव साहित्य का सृजन, प्रकटीकरण और महावीर से पूर्व का साहित्य प्रचार । चौदह 'पूर्व', उत्पादपूर्व मादि । महावीर से पश्चात 'अनेकान्त' पत्रादि द्वारा जनता के प्राचार-विचार को ऊँचा उठाने का प्रयत्न । का साहित्य प्राचाराङ्ग आदि बाहर प्रग। 'दृष्टिवाद' नाम के बारहवें अंग मे चौदह पूर्वो का समावेश था किन्तु 0 जैन साहित्य, इतिहास और तत्त्वज्ञान विषयक अनु सधानादि कार्यों का प्रसाधन और उनके प्रोत्तेजनार्थ। उसका परम्परा समाप्त हो गया। वृत्तियों का विधान तथा पुरस्कारादि का प्रायोजन । - अर्धमागधी जनागम विविध उपयोगी संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रश, हिन्दी एव । इनकी संख्या ४५ है-११ अंग, १२ उपांग, ६ छेदअंग्रेजी प्रकाशनों; जैन साहित्य, इतिहास मोर तत्त्वज्ञान विषयक शोध-मनुसंधान; सूविशाल एवं निरन्तर प्रवर्ष-1 सूत्र, ४ मूल सूत्र, १० प्रवीणक एवं २लिका सत्र। मान ग्रन्थागार; जैन, संस्कृति, साहित्य, इतिहास एवं पुरा इन सब पर जब जो रचनायें लिखी गई वे है-नियुक्ति, तत्व के समर्थ अग्रदूत 'अनेकान्त' के निरन्तर प्रकाशन एवं माष्य, बुणि पोर टीका। अन्य अनेकानेक विविध साहित्यिक मोर सांस्कृतिक गतिविषियोंरावीर सेवा मदिर गत ४८ वर्ष से निरन्तर शौरसेनी जैनागम सेवारत रहा है एवं उत्तरोत्तर विकासमान है। उपर्युक्त जैनागम श्वेताम्बर संप्रदाय मे प्रचलित है। यह सस्था अपने विविध क्रिया-कलापों में हर प्रकार से दिगम्बर परम्परा का मूलागम 'षट्खण्डागम' के नाम से मापका महत्वपूर्ण सहयोग एक पूर्ण प्रोत्साहन पाने की प्रसिद्ध है। इसकी रचना प्राचार्य धरसेन के शिष्य प्राचार्य अधिकारिणी है। प्रतः पापसे सामुरोध निवेदन है कि : पुष्पदन्त और भूत बलि ने की। दिगम्बर माम्नाय के मन१. वीर सेवा मंदिर के सदस्य बनकर धर्म प्रभावनात्मक कार्यक्रमों में सक्रिय योगदान करें। सार समस्त जैनागम चार भागों में विभक्त है-प्रथमान२. बीर सेवा मन्दिर के प्रकाशनों को स्वयं अपने उपयोग योग (पुराण-कथा), करणानुयोग (ज्योतिष-गणित), के लिए तथा विविष मांगलिक अवसरों पर अपने चरणानुयोग (माचारशास्त्र) तथा द्रव्यानुयोग । इन चारों प्रियजनों को भेंट में देने के लिए खरीदें। अनुयोगों का अपार साहित्य उपलब्ध है। ३, मासिक शोध पत्रिका 'भनेकान्त' के ग्राहक बनकर | ___तत्पश्चात् माज से लगभग १०० वर्ष पूर्व से जैन जैन संस्कृति, साहित्य, इतिहास एवं पुरातत्व के शोषा-साहित्य का माधुनिक युग प्रारम्भ होता है। नुसन्धान में योग दें। विविध धार्मिक, सांस्कृतिक पर्वो एवं दानादि के प्रव. सरों पर महत उद्देश्यों की पूर्ति में वीर सेवा मन्दिर की मार्थिक सहायता करें। भनेकान्त में प्रकाशित विचारों के लिए सम्पादक-मण्डल -गोकुल प्रसार बैन, सचिव : उत्तरदायी नहीं है। -सम्पादक
SR No.538031
Book TitleAnekant 1978 Book 31 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1978
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy