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असाधारण प्रतिभा के धनी
मासिक पत्र) के सम्पादक श्री ज्योतिप्रसाद जी है जो सम्बन्धी स्थायी कार्य सदैव मुख्तार सा० की कीर्ति को गुरुकुल पंचकूला के संस्थापक के यहां पाम कारिंदा थे। प्रक्षण्ण बनाए रक्नेगा। उनका मन भी इस प्रकार के कार्यों से झकझोर उठा । जिस व्यापार से सत्य का सौन्दर्य मलिन हो जाता है और
परन्तु वेद है कि ऐसी रमणीक साहित्य वाटिका असत्य बद्धि का चमत्कार दिखाकर अपना प्रभाव इसरों और साहित्य सृजन के उद्गम की धारा को देखकर भी पर डाल देना चाहता है, उस मार्ग को प्रोर कब तक
महतार सा० को हार्दिक पानन्द नहीं पाया, क्योंकि चलेंगे ?
वह संस्था राजनैतिक दांव-पेच की तरह नेतागिरी के
चक्कर में फंस गई। मुख्नार सा. दिल्ली से दूर हमारे __ कौन जानता था कि उस दिन की बैठे-विठाए चारों जिले एटा में अपने भतीजे के पास रहकर तपस्वियों को मित्रों की बातचीत उनकी दिशा ही बदल देगी। फल- तरह प्रस्मी वर्ष की वृद्धावस्था में भी साहित्य सृजन के स्वरूप चारों ने एक-साथ अपने-अपने कार्यों से छट्री ले कार्य मे दत्तचित्त रहे । ली। तीन तो हमारे समाज के थे पोर तीनों ने अपने अपने ढंग से जैनधर्म और जैन सस्कृति की महत्त्वपूर्ण मुख्तार सा० के द्वारा जितना साहित्य निर्माण सेवा की।
कार्य हुमा उसका हम सही मूल्यांकन नहीं कर सकते।
उनकी प्रतिभा अालोचक, कवि, समाज-सुधारक, सुलेखक देववन्द (सहारनपुर) उनके प्रचार का केन्द्र बना। और नवीन लेखकों का निर्माण करने वाले कुशल शिक्षक श्री जनीलाल जी के प्रयत्न से छापे के ग्रथ छपने लगे के में प्रम पौर सुविधानुसार सरलतापूर्वक लोगों को मिलने लगे।
मुख्तार सा० ने अब अपना कार्यक्षेत्र देवबन्द से हटा विधिवत् सस्कृत का शिक्षण प्राप्त न करने पर भी कर सरसावा बनाया । अपनी एक लाख की सम्पत्ति का सकल ताकिक, चक्रचूड़ामणि, प्राचार्य समन्तभद्र स्वामी के जो स्वयं निज पुरुषार्थ से सचित की थी, उपयोग ग्रंथों का रहस्य सरल और सुबोध भाषा में प्रस्तुत किया। अर्थात् अपना सर्वस्व दान वीर सेवा मदिर की स्थापना उन्होने अपने ग्रन्थों में एकान्तवाद का खंडन करके में लगा दिया।
अनेकान्तवाद का मंडन किया है। न्याय और सिद्धान्त
सम्बन्धी विषय का युक्ति और तर्क सम्मत शैली में प्रतिग्रांड ट्रंक रोड के समीप भव्य भवन की बिल्डिंग का
पादन किया है। ऐसे धुरंधर और दिग्गज प्राचार्य क निर्माण कराया, जहा प्रतिवर्ष विद्वानों को बुलाकर वीर
रचनामों को सर्व साधारण के लिए सुलभ बना दिया शासन के उत्कर्ष के लिए मंत्रणा की जाती । विद्वानो को
और दिव्य संदेशों को जनता जनार्दन तक पहुंचा दिया। माने-जाने का मार्गव्यय प्रदान करना और उत्तम रीति से।
वे उनके अनन्य भक्त थे। समन्तभद्र भारती व्याख्याता सभी को सम्मानित करने की भावना वहां पर विद्यमान के रूप में मस्तार सा० सदैव स्मरणीय बने रहेंगे। थी।
प्रबल ताकिक होने के कारण उन्होने उन विषयों पर उस स्थान को कतिपय सहयोगियो और समाज के कोरो नालीन समय में कतिपय व्यक्तियों नेतामों ने प्रचार जैसे महान कार्य के लिए छोटा समझा।
के द्वारा अनार्ष परम्परा का अनुकरण करने के कारण जैन समाज के मूर्धन्य मनभिषिक्त नेता साहू शातिप्रसाद
हमारे यहा विकार का कारण बने । मुख्तार सा० के जी और प्रसिद्ध इतिहासज्ञ एवं जन सस्कृति के
पदचिह्नों पर कई विद्वान चले और उन्होंने उन विषयों मूर्तिमान रूप बाबू छोटेलालजी कलकत्ते वालों के प्रयत्न
को अच्छी समीक्षाए की जिनका उत्तम सुफल निकला। से दिल्ली में विशाल भवन बनकर तैयार हो गया जहां से प्रकाशित होने वाला साहित्य पीर अन्वेपण जब हम उन्हें कवि के रूप में देखते हैं तो उन्हें केवल