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६, वर्ष ३०, कि० १
अनेकान्त
की स्थापत्य कला के उत्तम नमूने हैं। यहां के जैन कालाकोट नामक स्थल से जो भानपुरा से मन्दसौर मन्दिरों में सबसे प्रसिद्ध चौबार-डेरा नामक मन्दिर है, की अोर मार्ग मे स्थित है, पाश्वनाथ की पांच फुट निकट ही एक दूसरा जैन मन्दिर है। इन देवालयों में ऊँची एवं तीन फट चौड़ी स्लेटी रग की पद्मासन प्रतिमा जैन धर्म की अनेक सुन्दर मूर्तिया है। केन्द्रीय संग्रहालय, प्राप्त हुई है। प्रतिमा ले वयुक्त है। प्रतिमा पर अकित इन्दौर मे परमार-युगीन अनेक जैन प्रतिमायें सरक्षित है। लेख इस प्रकार है- सवत १३०२ वर्षे पो० १५ गम इनमें प्रादिनाथ, श्रेयांसनाथ, धर्मनाथ, शातिनाथ, नेमि. लाडवागडा पौरपटान्वये साहु शहन... सा..""" नाथ, नमिनाथ, पार्श्वनाथ एव महावीर की प्रतिमायें है। तेनेदं ... : प्रतिष्ठिता । प्रतिमा के लेख की लिपि में खड़ी
उपरोक्त स्थलो के अतिरिक्त मध्यप्रदेश के अनेक पाई मिलती है। स्थलों से जैन प्रतिमायें उपलब्ध हुई है। मुरेना जिले मे ग्वालियर के निकट मरार नामक स्थल मे श्री हरिस्थित सिहपानिया (सुहानिया) तथा पढ़ावली गुना जिले हरनाथ द्विवेदी के उद्यान में भगवान पानाथ की चतुर्मुखी के तिराही एवं इन्दार स्थलो से मध्ययुगीन प्रतिमायें प्राप्त खड़गासन पाषाण प्रतिमा बड़ी ही मनोज्ञ एवं कलापूर्ण है हई है । पन्ना जिले में स्थित टूंडा ग्राम से उपलब्ध बहु- इसकी कायोत्सर्ग-मद्रा एव नासाम-दृष्टि बड़ी ही कलासंख्यक प्रतिमायें इस बात की साक्षी है कि यह स्थल मध्य पूर्ण है। इसकी पादतीठिका पर कुछ उत्कीर्ण है जो काल में जैन मतावलम्बियो का केन्द्र रहा होगा । यहा से उपलब्ध प्रथम तीर्थङ्कर प्रादिनाथ की प्रतिमा पद्मासन मे
विन्ध्य भूभाग प्राचीन काल से ही भारतीय शिल्पध्यानस्थ है । पादपीठ पर दक्षिण पार्श्व की ओर गोमुख
___स्थापत्य कला से सम्पन्न रहा है । विन्ध्य भूभाग के अनेक यक्ष तथा वाम मे यक्षी चक्रेश्वरी की लघु प्राकृतिया है।
स्थलों से मध्ययुगीन जैन प्रतिमायें प्राप्त हुई है। नागौद स्तभाकृतियों के मध्य शार्दूल एवं पादपीठ पर भक्ति
एवं जसो में मुनि कातिसागर ने ऐमी प्रतिमायें देखी थी विभोर श्राविका है। यही से उपलब्ध तेईसवें तीर्थङ्कर
जिनके परिकर उनके जीवन के विशिष्ट प्रसगों- ऋषभपार्श्वनाथ की २'४" ऊँची मूर्ति के दोनो पार्श्व मे विद्या
देव के पुत्रों का राज्य विभाजन, दीक्षा प्रसंग, भरत बाहुघर प्रादि हैं। टूडा ग्राम के सन्यासियों के मठ के निकट
वली युद्ध प्रादि से चित्रित थे । जसो से प्राप्त एक प्रतिमा एक वृश के नीचे अनेक प्रतिमायें रखी है। प्रादिनाथ की
में एक नग्न स्त्री वृक्ष पर चढ़ने का प्रयास करती हुई एक प्रतिमा जो चार फुट ऊंचे, एक फुट छ: इच चौड़े तथा
बनाई गई है। यह प्रविका देवी की प्रतिमा है। उच्चएक फुट मोटे शिलाफल पर उत्कीर्ण है, कायोत्सर्गासन मे
कल्प (उचहरा) से प्राप्त एक शिला पर एक सघन फल है। पासन के शार्दूलों के पाश्व मे श्रावक-श्राविका के
सहित आम्रवक्ष उत्कीर्ण है । देवी अविका को इसकी डाल ऊर्व भाग में एक-एक कायोत्सर्ग तीर्थङ्कर प्रतिमा तथा
पर बैठा हुमा दिखाया गया है । सर्वोच्च भाग मे भगवान उनके ऊपर दोनों पार्श्व मे गजमुख, व्यालमुख का सुन्दर नेमिनाथ पदमासन मे है। दोनो ओर एक-एक खड्. प्रकन है । यही से भादिनाथ का एक भव्य प्रातमा भा गासन भी है। रीवा क्षेत्र जैन धर्म से सम्बंधित पुरातन उपलब्ध हुई है।
प्रतिमानों का भडार है। यहां से उपलब्ध बहुसंख्यक महाकौशल में मध्ययुगीन जैन प्रतिमानों की बहुलता प्रतिमाये इस बात की द्योतक है कि यह भूभाग मध्यकाल मे है। सिवनी के जैन मदिर में धमौर से लायी १३वी सदी की जैन धर्म से प्रभावित था । आधुनिक तुलसी तीर्थ रामवन, सात मूर्तियां है। सिवनी जिले के छारा नामक स्थान के सतना से रीवा जाने वाले मार्ग पर अवस्थित है। यहाँ दिगंबर जैन मंदिर मे धमोर से लायी गयी ११वी सदी की पाश्वनाथ मल्लिनाथ एव ऋषमदेव की प्रतिमायें एक सुन्दर प्रतिमा है। तीन वर्ष पूर्व सिवनी जिले के सग्रहीत है। लखनादौन से कलचुरि-युगीन महावीर की एक प्रत्यत मनोज्ञ दक्षिण कौशल मे जैन धर्म के प्रभार के प्रमाण वहाँ एव प्रष्ट प्रतिहार्य युक्त प्रतिमा प्राप्त हुई थी।
से उपलब्ध बहुसंख्यक प्रतिमाये है। रायपुर से २२ मील