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मध्यप्रदेश में मध्ययुगीन जैन शिल्पकला
देवियों को उत्कीर्ण किया गया है। देवालयों के ललाट. सुन्दरियों का अंकन है। बाहुवली स्वामी की भी एक बिंब में यक्षी चक्रेश्वरी प्रदर्शित है तथा द्वारशाखामों प्रतिमा यहा उत्कीर्ण है । देवालय के तोरण पर भगवान
और रथिकानों मे अधिकाशतः जैन देवी-देवता, जैसे विद्या- चन्द्रप्रभु है, जिनके दोनो पाश्वों पर तीर्थङ्कर मूर्तियां हैं, पर शासन देव प्रादि । दिगबर परम्परा के अनुसार जिनमें से पांच पद्मासन एवं छ: कायोत्सर्गासन में हैं। वर्धमान की माने जो सोलह स्वप्न देखे थे वे सब जैन वेदिका पर दोनो पाश्वों मे पाश्वनाथ की प्रतिमायें हैं। देवालयों (पार्श्वनाथ को छोड़कर) के प्रवेश द्वार पर देवालय मे मूल-नायक के रूप में सोलहवें तीर्थकर मालि प्रदर्शित है। जैन मूर्तिया प्रायः तीर्थकरों की है, जिनमे नाथ की १२' ऊँची खड्गासन मुद्रा में प्रतिमा है । मन्दिर के वृषभ, अजित, सभव, अभिनंदन, पद्मप्रभु, शातिनाथ एव प्रागन मे वाम पार्श्व की ओर दीवाल पर तेईसवें तीर्थहर महावीर की मूर्तियां अधिक है।
पार्श्वनाथ के यक्ष-यक्षी धरणेन्द्र एवं पद्मावती है। शांतिखजराहो के पार्श्वनाथ मन्दिर के भीतरी पोर तीन नाथ की मूर्ति के परिकर में पार्श्वनाथ के अतिरिक्त अन्य प्रागार है। इस देवालय की बाह्य भित्ति पर चतुर्दिक तीर्थङ्करों की प्रतिमायें है। तीन पंक्तियो मे तीर्थकर प्रतिमाये, कुबेर, द्वारपाल, बुन्देलखण्ड का जैनतीर्थ प्रहार, टीकमगढ़ से १२ गजारूढ एवं अश्वारूढ़ जैन शासन-देव प्रादि अकित है। मील पूर्ण की पोर स्थित है। इस भूभाग पर तीन देवादेवालय के द्वार के उत्तरी तोरण पर द्वादशभुजी चक्रेश्वरी लय है जिनमें से प्राचीन देवालय में २२' फुट की एक एवं शासन-देविया तथा मुख्य तोरण पर युगादिदेव शिला है । इस शिला पर अठारह फुट की भगवान शांतिऋषभनाथ एव दो अन्य तीर्थंकरों की प्रतिमाएं है। नाथ की एक कलापूर्ण मूर्ति सुशोभित है । इसे परमादि
यहां के प्रादिनाथ देवालय की बाह्य भित्ति पर ऊर्ध्व- देव चंदेल (११६३-१२०२ ई.) के काल मे संवत भाग की लघ पंक्ति में गंधर्व, किन्नर एव विद्याधर तथा १२३७ वि० मे स्थापित किया गया। बायी पोर १२' शेष दो पक्तियो में शासनदेव, अप्सरायें प्रादि है । नेमि- की कुन्थनाथ की मूर्ति है। नाथ की यक्षी अबिका सिंहारूड़ पाम्रवृक्ष के नीचे खजुराहो से उपलब्ध १०वीं सदी की पार्शनाथ की माम्रमंजरी धारण किये शिशु को स्तनपान करा रही एक विलक्षण प्रतिमा 'प्रयागनगर सभा सग्रहालय मे है। है। यहा ग्रासीन पद्मावती की चतुर्भुजी प्रतिमा अभय, ३८x२१ इंच आकार की इस खगासनस्थ प्रतिमा के पाश, पद्मकलिका एव जलपात्र से युक्त है।
मस्तक पर सप्तफण स्पष्ट है। उभय पोर पार्षद है। घटई मन्दिर के प्रवेश द्वार के ललाटबिंब पर गरुड़ा- लाछन के स्थान पर शख है। नागफण और शंख लांछन सीन अष्टभुजी जैन देवी की एक मूर्ति है और उत्तरग के ये दो विरोधी तत्त्व है, अतः समीकरण निश्चित रूप दोनो किनारों पर एक-एक जैन तीर्थकर प्रतिमा अकित से नही हो पाता। है। उत्तरग के वामा मे नवग्रहों और दक्षिणार्ध मे प्रतिहारो के पतन के पश्चात् मालवा मे परमारों का प्रष्टवसुमों के अकन है। उत्तरग के ऊपर की पट्टिका में राज्य स्थापित हमा। इस वश का सर्वाधिक प्रतापी उत्कीर्ण सोलह शुभ लक्षण तीर्थकरों की मातामो के १६ नरेश भोज था । परमारों के काल मे जैन धर्म मालवा में स्वप्नो के प्रतीक है।
मधिक प्रचलित था। भोजपुर के महान शिव मन्दिर के ___शातिनाथ देवालय के प्रागन में धरणेन्द्र एव पना- पूर्व मे एक जैन मन्दिर है। भोजपुर से तीन मील की वती की एक सुन्दर युगल-प्रतिमा प्रतिष्ठित है। देवालय दूरी पर प्राशापुरी नामक गांव मे शांतिनाथ की एक की भित्ति पर देवी-देवतामो तथा अप्सरापो की प्राकृ- सुन्दर प्रतिमा है। ऋक्ष पर्वत श्रेणियो के सिरे के तियों के साथ शार्दूल भी है। प्रदक्षिणा-पथ की भित्ति निकट निमाड़ के मैदान मे ऊन नामक ग्राम है। यहां के पर भिन्न-भिन्न शासन-देवो, गधों, किन्नरों एवं सुर अवशेषों मे लगभग एक दर्जन मन्दिर परमार राजामों ७. खजुराहो की अद्वितीय जैन प्रतिमायें--शिवकुमार नामदेव, अनेकान्त, फरवरी १९७४ ।