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________________ ४, बर्ष ३०, कि.१ अनेकान्त हैं। उनके मस्तक के ऊपर एक छत्र तथा उसके दोनों मुनिसुव्रतनाथ की प्रतिमायें हैं। भगवान पार्श्वनाथ एवं पार्श्व में गज तथा उनके ऊपर तीर्थङ्करों की तीन प्रति- नेमिनाथ की एक द्विमूर्तिका फिलडेलफिया म्यूजियम माएँ हैं। तीर्थङ्करों की संख्या २२ है। इनमें संभवतः आफ मार्ट में संरक्षित है। दो, पाश्र्वनाथ एवं महावीर का अंकन नही है। पादपीठ कलचुरियुगीन तीर्थङ्करों के अतिरिक्त जैन शासनपर तीथंङ्कर का लांछन शंख है। देवियो' की मूर्तिया भी प्राप्त हुई है जो स्थानक एवं __ भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमाएँ सिंहपुर (शहडोल), प्रासन दोनो मुद्राओं में है। ये प्रतिमायें कारीतलाई, पेण्डा (बिलासपुर), कारीतलाई (जबलपुर), शहपुरा पनागर (जबलपुर), और सोहागपुर (शहडोल) से उप(मण्डना) मादि से उपलब्ध हुई है। उपलब्ध प्रतिमामों लब्ध हुई है। में सर्वाधिक उल्लेखनीय प्रतिमा कारीतलाई की है जो नेमिनाथ की यक्षिणी अबिका की एक प्रतिमा कारी. रायपुर संग्रहालय में है। इस चतुविशति-पट्ट मे मूल- तलाई से प्राप्त हुई है। श्वेत छीटेदार रक्त बलुमा नायक प्रतिमा पार्श्वनाथ की है। तीर्थङ्कर के दायें-बायें प्रस्तर से निमित इस प्रतिमा में उन्हें ललितासन में सौधर्मेन्द्र एवं ईशानेन्द्र चॅवरी लिए खड़े है। पार्श्वनाथ सिंहारूढ़ दिखलाया गया है । द्विभुजी प्रतिमा के की तीन मोर की पट्रियों पर अन्य तीर्थडुरो की लघु दाहिने हाथ मे प्राम्रलु बि एव बायें मे पुत्र प्रियशंकर प्रतिमाएं है। दक्षिण पार्श्व की पट्टी पर ह एब वाम पर को लिए है। उनका ज्येष्ठ पुत्र शुभंकर दाहिने पर के को लिए है। उनका ज्यष्ठ पुत्र शुभकर दा ८ तथा शेष ६ प्रतिमाएँ ऊपर की गाड़ी पट्टी पर है। निकट बैठा है। अंबिका की एक अन्य प्रतिमा पनागर जैन धर्म के प्रतिम तीर्थकर भगवान महावीर की (जबलतुर) से उपलब्ध हुई है। सोहागपुर से उपलब्ध पासन प्रतिमानो में कारीतलाई से उपलब्ध प्रतिमा जैन शासन देवियो की मूर्तिया महत्वपूर्ण है, परन्तु लाछनों महत्वपूर्ण है। इस प्रतिमा में उन्हें उच्च सिंहासन पर के अभाव में उनका समीकरण कठिन है। उस्थित पद्मासन में ध्वानस्थ बैठे दिखाया गया है। मध्यप्रदेश का विश्व प्रसिद्ध कलातीर्थ खजुराहोतीर्थहर के परिचारक सौधर्मेन्द्र तथा अन्य तीर्थरो की पन्ना से २५ मील उत्तर एवं छतरपुर से २७ मील पूर्व प्रतिमाएँ दक्षिण पाश्र्व की पट्टी पर अकित है। उच्च तथा महोबा से २४ मील दक्षिण में स्थित है। १०वी चौकी पर मध्य मे उनका लाछन सिंह प्रकित है। महा- ११वी सदी के मध्य यशस्वी चदेल नरेशो के काल में वोर का यक्ष मातग अजलिबद्ध एवं यक्षी सिद्धायिका निर्मित यहा के देवालय नागर शैली के उज्ज्वल एवं चबरी लिए है। महावीर की एक अन्य प्रतिमा जो उत्कृष्ट उदाहरण है। वास्तु-वैशिष्ट्य एव मूर्ति-संपदा जबलपुर से उपलब्ध हुई थी, सम्प्रति फिलेडेलफिया के कारण ये देवालय अपूर्व गौरवशाली है। म्यूजियम माफ मार्ट में संग्रहीत है।। चदेल नरेश यद्यपि वैष्णव और शिव के उपासक थे ___ कलचुरिकालीन विवेच्य तीर्थङ्कर प्रतिमानो के प्रति. परन्तु उनको धार्मिक सहिष्णुता के फलस्वरूप हिन्दू धर्म रिक्त द्विमूर्तिकार्य भी प्राप्त हुई है। प्रत्येक मे दो-दो के साथ-साथ जैन धर्म के मन्दिरो का भी निर्माण हुमा । तीर्थङ्कर कायोत्सर्ग ध्यानमुद्रा में है। इन द्विमूर्तिका खजुराहो में निर्मित ये मन्दिर उनकी घामिक सहिष्णुता प्रतिमानों में तीर्थङ्कर के साथ प्रष्टप्रतिहार्यों के प्रति के जीवंत उदाहरण है। रिक्त तीर्थर का लांछन एवं उनके शासन देवताप्रो की खजुराहो के जैन देवालय पूर्वी समूह के प्रतर्गत रखे भी मूर्तियां है। इन द्विमूर्तिकानो मे ऋषभनाथ एवं जाते है । इनमे घटई, आदिनाथ एव पार्श्वनाथ के देवाअजितनाथ, अजितनाथ एवं सभवनाथ, पुष्पदंत एव लय मुख्य है। खजुराहो के जैन मन्दिरों मे जिन मूर्तियां शोतलनाथ, धर्मनाथ एव शातिनाथ, मल्लिनाथ एवं प्रतिष्ठित हैं। प्रवेश द्वार एवं रथिकानों मे विविध जैन ५. कारीतलाई की द्विमूर्तिका जन प्रतिमायें-शिवकुमार नामदेव, श्रमण, सितम्बर १९७५ । ६. कलपरि कला मे जन शासन-देवियो की मूर्तियां-शिवकुमार नामदेव, श्रमण, प्रगस्त १९७४ ।
SR No.538030
Book TitleAnekant 1977 Book 30 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1977
Total Pages189
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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