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मध्यप्रदेश में मध्ययुगीन जैन शिल्पकला एक-एक सिंह है। सिंहासन के दाहिने पार्श्व पर भगवान पाव मे नारियों की खड़ी प्राकृतिया है। नारियों के अंगका शासन-देव गोमुख एव वाम पाश्र्व पर उनकी शासन प्रत्यग पर चित्रित प्राभूषणो की भरमार है। कला की देवी चक्रेश्वरी ललितासन मुद्रा मे बैठी हुई है। दृष्टि से यह प्रतिमा कलचुरि कला को प्राण है।
इसी स्थल से प्राप्त एक अन्य प्रतिमा यद्यपि उपरि- बघेलखड से उपलब्ध एवं राजकीय संग्रहालयधुबेला वणित प्रतिमा की तरह है किन्तु इसका मस्तक खडित मे संरक्षित ऋषभनाथ की प्रतिमा के पादपीठ पर त्रिरत्न नहीं है। प्रतिमा ध्यानस्थ मुद्रा में है। केश घघराले है। का प्रतीक अंकित है जोशोश्पद से अपनाया गया बौद्ध प्रतीक अष्टप्रतिहार्य युक्त इस प्रतिमा मे शासन-देव गोमुख एवं है। रतनपुर (बिलासपुर) की प्रतिमा मे यक्षी चक्रेश्वरी शासन-देवी चक्रेश्वरी गरुड़ासीन है ।
को वाम पाश्व मे ललितासन मुद्रा मे दिखाया गया है। एक अन्य २'३" ऊँची प्रतिमा के दक्षिण एवं वाम कलचरि-कालीन द्वितीय तीर्थकर अजितनाथ की पार्श्व मे अन्य तीर्थङ्करों की लघु प्रतिमायें कायोत्सर्ग अथवा रीवा क्षेत्र से उपलब्ध एव धुवेला सग्रहालय मे सरक्षित खड्गासन में है।
प्रतिमा मे तीर्थङ्कर पासन मे ध्यानस्थ बठे है। मस्तक ___ कारीतलाई की एक अन्य प्रतिमा जो रायपुर सग्र- के पीछे प्रभामण्डल तथा तीन छत्र है एवं छत्रों के दोनों हालय की निधि है, ३' " ऊँची है । कलात्मक दृष्टि से पार्श्व मे पुष्पमालायें लिए विद्याधर है । प्रासन के पादकारीतलाई म उपलब्य जन प्रतिमानों में यह सर्वश्रेष्ठ है। पीठ पर तीर्थङ्कर का वाहन हस्ति अंकित है। यक्ष-यक्षी, इस प्रतिमा की विशेषता यह है कि इसके सिंहासन पर महावत एवं रोहिणी भी अकित है। अजितनाथ की सिंहों के जोड़ों के साथ हस्तियों का भी एक जोड़ा दिख- दूसरी प्रतिमा सिहपुर (शहडोल) से उपलब्ध हुई है जो लाया गया है।
उपरिवणित प्रतिमा की तरह है। तेवर (जबलपुर) से उपलब्ध ७' ४' ऊंची एवं जैन धर्म के प्राठवे तीर्थङ्कर चन्द्रप्रभ एव सोलहवें सम्प्रति जबलपुर के हनुमानताल जैन मंदिर मे सुरक्षित तीर्थडर शातिनाथ एव बाईसवें तीर्थङ्कर नेमिनाथ की ऋषभनाथ को प्रतिमा प्रति कलापूर्ण एव प्रभावोत्पादक प्रासनमद्रा में एक-एक प्रतिमा प्राप्त हुई है । रतनपुर से है। प्रतिमा के अग-प्रत्यग सुन्दर एव सुडौल है। मस्तक उपलब्ध चन्द्रप्रभ की प्रतिमा २' ५" ऊँची है। उनके केश पर चित्रित घु घराले केश आकर्षक है। उभय स्कध पर । घुघराले है। उनके दक्षिण पार्श्व मे सौधर्मेन्द्र एवं वाम केश-गुच्छ लटक रहे है।
मे ईशानेन्द्र है। चौकी के कीर्तिमुखयुक्त झूल पर सपरिकर पद्मासनस्थ इस प्रतिमा के प्रभावली के उनका लाछन चद्रमा अकित है। चौकी के दोनो पाश्वं मध्य में छथ-दण्ड है जो ऊपर की ओर जाकर क्रमशः तीन पर यक्ष-यक्षी श्याम एवं ज्वालिनी बैठे है । भोर वर्तुलपन लिये हुए है। छत्रदण्ड के ऊपर विशाल
जबलपुर संग्रहालय मे संरक्षित सोलहवें तीर्थकर छत्र लगभग २'८" के लगभग है । सब से ऊपर दो हस्ति ___ शातिनाथ' की प्रतिमा के पादपीठ पर दो सिंहो के मध्य शुण्ड से शुण्ड सटाये इस प्रकार से चित्रित कियेगये है मानो
उनका लांछन हिरण उत्कीर्ण है । चौकी पर यक्ष, गरुड़ वे छत्र को थामे हए हो। हस्तियों के सूर्प कर्ण के उठे हुए राव यक्षी महामानसी भी उत्कीर्ण है। शातिनाथ की भाग उनके गाल की खिची रेखायें एव प्रांखो के ऊपर का स्थानक प्रतिमाएँ कारीतलाई एव बहुरीबद (जबलपुर) खिचाव कला की उच्चता का द्योतक है। परिकर पर
से उपलब्ध हुई है। बहुरीबद की प्रतिमा १३' ऊंची एव हस्ति पद्म पर माधुत है। छत्र के नीचे दोनो पाव पर लेखयुक्त है। यक्ष एव चार अप्सरायें प्राकाश में उड़ती हुई चित्रित है। बाईसवें तीर्थङ्कर नेमिनाथ की कलचुरि-युगीन एक गधर्व पुष्पमाल लिए हुए है। परिचारक के नीचे दोनो प्रतिमा धुवेला संग्राहालय मे है। तीर्थङ्कर ध्यानस्थ बैठे ३. कलचरि-कालीन भगवान शांतिनाथ की प्रतिमायें-शिवकूमार नामदेव, श्रमण, प्रगस्त १९७२ । ४. धुबेला मंग्रहालय की जन प्रतिमायें-शिवकुमार नामदेव, श्रमण, जून १६७४ ।