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________________ ६२, वर्ष ३०, कि०२ अनेकात है कि इन दो लोहाचार्यों में से किसने अगरोहा जाकर अग्रवाल जाति के इतिहास के सम्बन्ध में प्रकाश में पायेंगे। दिवाकर को जैनधर्म मे दीक्षित किया। पर 'अग्रवैश्यवंशा. 'अनेकान्त' पत्र में पं० परमानन्द शास्त्री के कई लेख प्रमनकीर्तनम' में भी राजा दिवाकर का उल्लेख होना और वाल जैनों सम्बन्धी प्रकाशित हुए हैं। वे बहुत ही महत्वउसे जैन बताना सूचित करता है कि जैन अग्रवालों में पूर्ण है। प्रचलित अमुश्रति ऐतिहासिक तथ्य पर प्राश्रित है। चन्द्रराज भण्डारी ने दो बड़ी-बड़ी जिल्दों में अग्रवाल भविष्यपुराण के केदारखण्ड के लक्ष्मी माहात्म्य जाति का इतिहास प्रकाशित किया है। उनका उद्देश्य प्रकरण मे अग्रवश्यवंशानुकीर्तन मे लिखा है व्यावसायिक था, इसलिए उन्होंने वर्तमान में अग्रवालो के दिवाकरो जनमते शिखिनं पर्वत गतः । विशिष्ट खानदानों व व्यक्तियों, उनका सचित्र विवरण तन्मतं पालयामास जनः सर्व गणैः वृतः ॥१५६।। प्रकाशित करने का ही विशेष ध्यान रखा है। पर उनमें भी अग्रवाल जैनो को बहुत ही कम स्थान मिला है, दिवाकर जैन मत में (गया), उसने पर्वत शिखर जबकि सैकड़ो विशिष्ट व्यक्ति और खानदान अग्रवाल पर जाकर जैनो के समूह से घिरा रहकर जैन मत का जनों के ग्राज भी है जिनका विवरण उनके बड़े ग्रन्थ मे पालन किया। नहीं आ पाया। जैन ग्रन्थो मे अग्रवाल जैन जानि के सम्बन्ध मे खोज के प्रभाव में स्वयं जैन समाज को ही मालम । विशेष विवरण किस ग्रन्थ में क्या मिलता है, प्रकाश में नहीं है कि उनमे कौन-कौन से विशिष्ट अग्रवाल जैन पाना चाहिए । अग्रवालो को जैन बनाने वाले लाहाचार्य कहां-वहा बस रहे है। बहुत से व्यक्तियो के नाम के के सम्बन्ध में भी दिगम्बर विद्वानों को विशेष प्रकाश भागे सरावगी या जैन शब्द रहते है, पर वे किस जाति के डालना चाहिए। है ये मुझे भी पता नही था। अभी अग्रवाल इतिहास को अग्रवाल जाति के इतिहास लेखकों ने जन प्रतिहासिक देखने पर मालम हा कि अपने को सरावगी व जैन सामग्री का उपयोग नही किया, इसलिए यहा तक लिख बतलाने वाले कई विशिष्ट व्यक्ति अग्रवाल जाति के है। देना पड़ा कि अप्रवाल शब्द का प्रयोग मुसलमानी दाला गवाल जैनो का __इसलिए अग्रवाल जैनो का स्वतत्र इतिहास प्रकाशित किया साम्राज्य के समय का है। पर वास्तव में इससे पहले के जामा भी प्रयोग जैन प्रशस्तियों में प्राप्त है। प्रशस्तियो और अग्रवाल जैनों ने सैकड़ो मन्दिर व मूर्तियां बनवायीं, पुष्पिकामो-लेखन प्रशस्तियो में मध्यकालीन अग्रवाल हजारो प्रतिया लिखवायी, कवियो से अनुरोध करके जैनों सम्बन्धी काफी ऐतिहासिक सामग्री मिलती है। काव्यादि ग्रन्थ बनवाये। साघार मादि कई जैन अग्रवाल उसके प्रभाव मे अग्रवाल इतिहास लेखको को लिखना कवि थे। इस तरह अग्रवाल जैनो का इतिहास बहुत पहा कि मध्यकाल की सामग्री नही मिलती। सत्यकेत सत्यपातु महत्वपूर्ण है। दिगम्बर समाज के मन्दिर व मूर्तियो के विद्यालंकार ने अपने ग्रन्थ के नये संस्करण में, मध्यकाल मे । लेख बहत कम प्रकाश में आये है, अन्यथा उनसे भी अग्रअग्रवाल जाति नामक चौथे परिशिष्ट में केवल सात वाल जैनो सम्बन्धी काफी महत्व की सामग्री मिल सकती . विशिष्ट खानदानों का ही विवरण दिया है। उनमें केवल लाला हरसूख राय दिल्ली वाले एक ही जन है, यह प्रथा अग्रवाल जाति की बहत ही अच्छी है कि जबकि जैन प्रशस्तियो में पच्चीसो विशिष्ट खानदानो का जन जनेतरो मे विवाह प्रादि सम्बन्ध खुले पाम होते है। विवरण मिलता है। जिस घर में कन्या जाती है वहीं के धर्म का पालन करती ___अग्रवालों के १८ गोत्र माने जाते है, पर जैन प्रशस्तियो है। में २ नये गोत्रों के नाम भी मिले है। वास्तव मे जैन नाहटा स्ट्रीट, बीकानेर सामग्री का ठीक से उपयोग करने पर बहुत से नये तथ्य (राजस्थान)
SR No.538030
Book TitleAnekant 1977 Book 30 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1977
Total Pages189
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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