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अग्रवाल जैन जाति के इतिहास की आवश्यकता
0 श्री अगरचन्द नाहटा, बीकानेर
भगवान महावीर के समय जैन समाज जातियो में अग्रवाल जाति के सम्बन्ध में छोटे-बड़े बीसों इतिहास विभक्त नही था। सभी वर्ण और जाति के लोग जैन ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं। उनमें तीन ग्रन्थ विशेष रूप धर्म का पालन करते थे। एक ही घर में कोई जैन था तो से उल्लेखनीय है। कोई वैदिक व बौद्ध। पर मागे चलकर इससे एक बड़ी (१) डा. सत्यकेतु विद्यालंकार लिखित-'अग्रवाल पड़चन उपस्थित हो गई, क्योंकि घर में कोई मासाहारी जाति का प्राचीन इतिहास', प्रकाशक श्री सरस्वती सदन, था तो कोई शाकाहारी; कोई वैदिक धर्म पालता था, कोई मंसूरी. प्रथमावृत्ति सन् १९३८ । द्वितीयावृत्ति सन् १९७६ बौद्ध धर्म तो मापस मे एक खीचा-तानी होती रहती थी। मूल्य ५ रुपया। पता ए-१/३२ सफदरजंग एक्सटेंशन, नई फिर विवाह-सम्बन्ध में भी असुविधा होने लगी। अपने दिल्ली-१६ । अपने धर्म और समाज के प्राचार-विचार में कट्टरता (२) श्री परमेश्वरी लाल गुप्त लिखित-'अग्रवाल रखने वाले दूसरों के साथ द्वेष करने लगे। कभी-कभी तो जाति का विकास' सन् १९४२ । एक-दूसरे को मार डालने का भी प्रयत्न हुआ। तब जना- (३) श्री चन्द्रराज भण्डारी-'अग्रवाल जाति क चार्यों ने जहाँ-जहाँ हजारो लाखों लोगों को जैनी बनाया इतिहास' भाग १-२ । इनमें से सत्यकेतु की द्वितीया वृत्ति के वहां उनका एक अलग सगठन बना दिया, जिससे उन सब पृष्ठ ११६ मे लिखा है कि प्रग्रसेन के पुत्र विभु उसके पुत्र में धार्मिक और सामाजिक एकता और सद्भाव उपस्थित नेमिनाथ उसके बाद विमल, शुकदेव, धनजय और श्रीहो गया। स्वधर्मी वात्सल्य को प्रधानता दी गई, जिससे एक नाथ क्रमशः राजगद्दी पर बैठे। श्रीनाथ का पुत्र दिवाकर दूसरे को पूरी मदद करके धर्म मे स्थिर रखा जा सके । व्याव- था। इसने पुराने परम्परागत धर्म को छोड़कर जैनधर्म हारिक अर्थ उपार्जन व विवाह आदि मे भी अड़चन न हो। को दीक्षा ली। जन अग्रवालों में यह अनुश्रुति चली पाती
वर्तमान में दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनो सम्प्रदायों है कि श्री लोहाचार्य स्वामी प्रगरोहा गए भौर वहां में कई वंश या जातिया है जो स्थान विशेष के नाम से उन्होने बहत से अग्रवालो को जैनधर्म की दीक्षा दी। प्रसिद्ध है, जैसे प्रोसवाल, श्रीमाल, खण्डेलवाल, अग्रवाल, जैनों के अनुमार, उस समय अगरोहा में राजा दिवाकर बघेरवाल, पोरवाल, पद्मावती पुरवाल, परमार (परवार) राज्य करते थे। वे श्री लोहाचार्य स्वामी के शिष्य हो मादि । इनमें से कुछ जातियां तो मुख्यरूप से श्वेताम्बर गए, और उनके अनुकरण मे अन्य भी बहुत से भगरोहा और कुछ दिगम्बर सम्प्रदाय के अनुयायी है और कुछ निवासियों ने जैनधर्म को स्वीकार किया। अग्रवालों में दोनों सम्प्रदायों को मान्य करती है। इनमे से श्वेताम्बर बहसंख्या में लोग जैनधर्म के अनुयायी हैं। वे सब श्री सम्प्रदाय में प्रोसवाल मुख्य है पोर दिगम्बर सम्प्रदाय लोहाचार्य स्वामी को अपना गुरु मानते हैं। में खण्डेलवाल, अग्रवाल, परवार (परमार) पादि। इस अनुश्रति का प्रमाण जैन ग्रन्थों में ढूंढ़ सकना अग्रवाल जाति ऐसी है जिनमे जनेतर भी बहुत हैं सुगम नहीं है। जन पुस्तकों में दो लोहाचार्यों का उल्लेख और जैन भी। जैन में भी दिगम्बर सम्प्रदाय प्रधान है पाया है। पहले चन्द्रगुप्त मौर्य के समकालीन भद्रवाह वैसे स्थानकवासी भोर तेरापंथी सम्प्रदाय के भी हैं। स्वामी के शिष्य श्री लोहाचार्य थे। ये प्राचार्य ईसा अग्रवाल जाति वालो की संख्या बहुत बड़ी है।
की दूसरी शसाब्दी में हए। यह कहना बहुत कठिन