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६०, वर्ष ३०, कि०२
अनेकान्त
जो व्यक्ति इस ग्रन्थ को नहीं देखता, नही मानता, सूचनानुसार सूची में "प्राकृत भाया के रयणसार के कर्ता नहीं सुनता, नहीं पढ़ता, नहीं चिंतन करता, नहीं भाता है का नाम वीरनन्दी है, न कि कुंदकंद।" जब तक इसे गलत वह व्यक्ति ही मिथ्यावृष्टि होता है।
सिद्ध नहीं किया जावे इस सूची के वर्णन को सही मानना क्या कुन्दकुन्द जैसे महान् ग्रन्थकार इस रचना को समीचीन होगा। मध्यकाल में वीरनन्दी हुए हैं, उन्होंने न देखने, न पढ़ने, न सुनने, न मानने वाले को मिथ्यादृष्टि प्राचारसार लिखा था। सम्भव है रयणसार भी उन्हीं का बताते ? ऐसी गाथा की रनना तो अपने ग्रन्थ की महत्ता लिखा हा हो। दिखाने के लिए भट्टारक ही कर सकते है । न कि संसार- विद्वान सम्पादक डा० देवेन्द्रकुमार जी ने इसकी कई त्यागी मात्मसाधना मे लीन कुन्दकुन्दचार्य ।
गाथाएं प्रक्षिप्त बतलाकर मूल ग्रन्थ से अलग प्रस्तुत की इस ग्रन्थ में ऐसी ही अन्य गाथाएँ है जिनका सूक्ष्म हैं, किन्तु फिर भी ग्रन्थ में कुछ गाथाएँ ऐसी पोर हैं परीक्षण करने से इनमे विषमताएँ एव विपरीतता जिन पर क्षेपक लिखा हुआ है अत: इसके मूल अंश और मिलेगी।
क्षेपकांश का निर्णय हो पाना सहज नहीं है। डा. देवेन्द्रकुमार जी ने अपनी प्रस्तावना में इसे प्रतः अंतरंग-बहिरंग परीक्षण से यह ग्रंथ वीतराग कन्दकन्द कृत मानने का प्रयास किया है। उन्होने परम तपस्वी दिगम्बर कुंदकुंदाचार्य द्वारा लिखा हमा प्रस्तावना के पृ० ९२ पर 'रचनाएँ" शीर्षक पैरा मे लिखा नहीं मालूम होता, अपितु किसी भट्टारक या और किसी
कि श्री जगलकिशोर मख्तार ने प्राचार्य कुन्दकुन्द की के द्वारा उनके नाम पर लिखा हसा प्रतीत होता है। २२ रचनामों का उल्लेख किया है जो वहा उल्लिखित हैं। विद्वानों से मेरा नम्र अनुरोध है कि वे इस ग्रन्थ का इस सूची मे रयणसार का नाम भी है। इस सूची के साथ सम्यक् प्रकार से तुलनात्मक अध्ययन कर अपना मंतव्य रयणसार के सम्बन्ध में श्री मुख्तार साहब का उक्त मत प्रस्तुत करें ताकि लोगों को सही स्थिति ज्ञात हो जावे । उद्धृत नहीं किया जिससे पाठक यही समझे कि मुख्तार
जयपुर उद्योग लि. साहब रयणसार को कंदकुंद कृत ही मानते थे, जबकि
सवाई माधोपुर (राजस्थान) वास्तविक स्थिति दूसरी ही है।
डा. देवेन्द्र कुमार जी ने अनेकान्त के जनवरी-मार्च 'अनेकान्त' के स्वामित्व सम्बन्धी विवरण ७६ के प्रक में 'रयणसार-स्वाध्याय परम्परा मे' शीर्षक
प्रकाशन स्थान-बोरसेवामन्दिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली लेख में लिखा है-"रयणसार नाम की एक अन्य कृति का उल्लेख दक्षिण भारत के भण्डारों की सूची मे हम्त
मुद्रक-प्रकाशन-वीर सेवा मन्दिर के निमित्त
प्रकाशन अवधि-मासिक श्री प्रोमप्रकाश जैन लिखित ग्रन्थों में किया गया है। थी दिगम्बर जैन म०
राष्ट्रिकता-भारतीय पता-२३, दरियागंज, दिल्ली-२ चित्तामूर, साउथ प्रारकाड, मद्रास प्रात में स्थित शास्त्र
सम्पादक-श्री गोकुलप्रसाद जैन भण्डार में क्रम सं०३६ मे प्राकृत भाषा के रयणमार
| राष्ट्रिकता-भारतीय पता-वीर सेवा मन्दिर २१, ग्रन्थ का नामोल्लेख है और रचयिता का नाम बीरनन्दी
दरियागंज, नई दिल्ली-२ है जो संस्कृत टीकाकार प्रतीत होते है। इस टीका की
स्वामित्व-वीर सेवा मन्दिर, २१ दरियागज, नई दिल्ली-२ खोज करनी चाहिए।" समझ में नही पाया कि डाक्टर
__मैं, मोमप्रकाश जैन, एतद्द्वारा घोषित करता हूं कि गाहब ने प्रथ को बिना देखे ही कैसे मान लिया कि वीर
मेरी पूर्ण जानकारी एवं विश्वास के अनुसार उपयुक्त नन्दी संस्कृत टीकाकार प्रतीत होते है जबकि उन्होंने |
विवरण सत्य है। स्वय सूची में रचयिता के स्थान पर वीरनन्दी का नाम
-मोमप्रकाश जैन, प्रकाशक स्पष्ट लिखा हुम्रा बताया है। चूंकि प्रति सामने नही है, प्रतः अन्य कल्पना करना ठीक नही है। फिर भी प्राप्त