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रयणसार के रचयिता कोन ?
भ्रंश पद्यों की उपलब्धि, गण गच्छादि का उल्लेख और सम्मावना है, अथवा इतना तो कहना ही चाहिए कि बेतरतीबीमादि को लिए हुए जिस स्थिति में उपलब्ध है उसका विद्यमान रूप ऐसा है जो हमें सन्देह में डालता है। उस पर से वह पूरा ग्रन्थ कुन्दकुन्द का नहीं कहा जा इसमें अपभ्रंश के कुछ श्लोक है और गण-गच्छ भोर संघ सकता। कुछ प्रतिरिक्त गाथानों की मिलावट ने उसके के विषय में जिस प्रकार का विवरण है वह सब उनके मूल में गड़बड़ उपस्थित कर दी है और इसलिए जब तक अन्य ग्रन्थों में नहीं मिलता। (पृ. २०) कुछ दूसरे प्रमाण उपलब्ध न हो जायं तब तक यह विचा- प. पन्नालाल जी साहित्याचार्य ने रयणसार को राधीन ही रहेगा कि कुन्दकुन्द इस रयणसार के कर्ता है।" 'कुदकुन्द भारती' नामक कुन्दकुन्द के समग्र साहित्य में
पुरातन ग्रन्थो के पारखी स्व० ५० जुगलकिशोर जी इसलिए सम्मिलित नहीं किया कि इसमें गाथा सख्या महतार का रयणसार के सम्बन्ध मे भिन्न मत है- विभिन्न प्रतियों मे एकरूप नही है। कई प्राचीन प्रतियों
"यह ग्रन्थ प्रभी बहुत कुछ संदिग्ध स्थिति में स्थित में कुन्दकुन्द का रचनाकार के रूप में नाम नहीं है। है। जिस रूप में अपने को प्राप्त हुप्रा है उस पर से न तो
स्व. डा० नेमीचन्द जी ज्योतिषाचार्य ने तीर्थकर इसकी ठीक पद्य संख्या ही निर्धारित की जा सकती है महावीर और उनकी प्राचार्थ परम्परा के दूसरे खण्ड में और न इसके पूर्णतः मूल रूप का ही पता चलता है।
पृष्ठ ११५ पर रयणगार के सम्बन्ध मे डा० उपाध्ये का मत ग्रन्थ प्रतियों में पद्य सख्या और उनके क्रम का बहुत बड़ा
उद्धृत करते हुए लिखा है कि 'वस्तुत शैली की भिन्नता भेद पाया जाता है। कुछ अपभ्रश भाषा के पद्य भी इन और विषयों के सम्मिश्रण से यह ग्रन्थ कुन्दकुन्द रचित प्रतियो में उपलब्ध है। एक दोहा भी गाथाम्रो के मध्य मे पतीत नही होता।' प्रा घुसा है। विचारो की पुनरावृत्ति के साथ कुछ बेतर- डा. लालबहादुर शास्त्री ने अपने 'कुन्दकुन्द पोर तीबी भी देखी जाती है, 'गण गच्छादि के उल्लेख भी उनका समयसार' नामक ग्रन्थ मे रयणसार का परिचय मिलते हैं, ये सब बातें कुन्दकुन्द के ग्रन्यो की प्रवृत्ति के ।
देकर लिखा है कि 'रयणसार की रचना गम्भीर नहीं है, साथ संगत मालूम नही होती, मेल नहीं खाती।"
भाषा भी स्खलित है, उपमानों की भरमार है। ग्रन्थ -(पुरातन जैन वाक्य सूची, प्रस्तावना) पढ़ने से यह विश्वास नही होता कि यह कुन्दकुन्द की स्व. डा. हीरालाल जी जैन ने अपने भारतीय
रचना है। यदि कुन्दकुन्द की रचना यह रही भी होगी संस्कृति में जैन धर्म का योगदान' शीर्षक ग्रन्थ मे रयण
तब इसमे कुछ ही गाथाएं ऐसी होंगी जो कुन्दकुन्द की कही सार के सम्बन्ध में इस प्रकार लिखा है :
जा सकती है। शेष गाथाएं व्यक्ति विरोध में लिखी हुई ___ "इसमें एक दोहा व छ: पद अपभ्रश भाषा में पाये
प्रतीत होती है। गाथानों की संख्या १६७ है । (पृ० १४२) जाते हैं। या तो ये प्रक्षिप्त है या फिर यह रचना कुन्दकुन्द दस ग्रन्थ का विमोचन उपाध्याय श्री विद्यानन्द जी के कृत न होकर उत्तरकालीन लेखक की कृति है; गण गच्छ प्राशीर्वाद से हुआ है)। मादि के उल्लेख भी उसको अपेक्षा कृत पीछे की रचना इस प्रकार उक्त विद्वानों व अन्य प्रमुख विद्वानों द्वार, सिद्ध करते हैं।"
2° १०२ भी रयणसार कुन्दकुन्द को रचना नही मानी गयी है। श्री गोपालदास जीवाभाई पटेल ने 'कुन्दकृन्दाचार्य के तीन रत्न' शीर्षक पुस्तक में रयणसार के सम्बन्ध मे निम्न इस ग्रन्थ को कुन्दकुन्दाचार्य कृत न मानने के कुछ मत प्रस्तुत किया है :
और भी कारण है जिन पर ध्यान दिया जाना माय. यह ग्रन्थ कुन्दकुन्दाचार्य रचित होने की बहुत कम श्यक है। १. इसमें विषवों का व्यवस्थित वर्णन नहीं हैं। दान, सम्यग्दर्शन, मुनि, मुनिचर्या प्रादि का क्रमश. वर्णन न होकर कभी दान का, कभी सम्यग्दर्शन का, कभी पूजन का, कभी मुनि का वर्णन इधर-उबर अप्रासंगिक रूप से, असंबद्ध रूप से मिलता है।