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सारस्वत व्याकरण के टीकाकार और मकर-उल-मसिक पुंजराज श्रीमाल
सुल्तान ग्यासुद्दीन को जब यह दुःखद घटना सुनाई गई तो वह बहुत व्यथित हुमा धौर उसने अपने पुत्र की इतनी तीव्र भर्त्सना की कि वह राज्य छोड़कर बाहर चला गया और पिता पर आक्रमण के लिए सैनिक तैयारी करने लगा और अवसर पाकर सन् १५०१ मे उसने अपने पिता सुलतान ग्यासुद्दीन पर चढ़ाई कर दी और उन्हें बन्दी बना लिया तथा स्वय मालवा का शासक बन बैठा । उपर्युक्त घटना 'तारीखे नासिर साही" नामक पुस्तक के पृ० ८-१० तक उल्लिखित है। इसकी फोटो का ब्रिटिश
म्यूजियम लदन मे OR. १८०३ न० पर सुरक्षित है । इसकी नकल जार्ज इलियट ने सन् १६०८ में भोपाल मे कराई थी। इसकी मूल प्रति का कोई पता नहीं है। इस प्रति में पुंजराज को 'पुजावतकाल' शब्द का प्रयोग किया गया है। काल का अर्थ बनिया होता है जो प्रायः सभी जगह प्रचलित था। पुजराज भार गोत्रीय श्रीमान जाति के थे पति के निकार कोई मौलवी साहब थे जो उर्दू की मीग के नीचे नुक्ना लगाना भूल गए जिससे पुजा की जगह मुंजा पढ़ा जाता है । यथार्थ में वह पुजा ही है जो हमारे लेख के नायक है ।
इसके अतिरिक्त जैन भट्टारक कीर्ति (नन् १४१५६६) ने स्वरचित 'ह्निवंश पुराण' एव परमेट्ठीपयाससारो' नामक अप भाषा के ग्रन्थों की प्रशस्तियों मे भी पुजराज का उल्लेख किया है । यथा'दहपण सयतेवण्ण गय वासई पुण विक्कमणि संवच्छ रहे। लसावण मारा गुरुमि सह गंय पुष्णतय सहबत 'मालव देसई गढ माडव चलु वहद साहू गयासु महाव्वनु । साह नसीरूणाम तह णदणु रायबम्म प्रणरायऊ बहुगुण । पुजराजवणमंति पहाणई ईसरदास गयदहं श्राणइ ।' उपयुक्त ग्रन्थ सं० १५५३ के भावण का ५ गुरुवार को समाप्त किया गया। इस समय मालवदेश के मांडवगड ( मांडू) में सुलतान ग्यासुद्दीन नामक महाप्रतापी शासक था, उसका पुत्र नसीरुद्दीन था तथा उसके धन (अर्थ) मंत्री पुजराज प्रजाधर्म में अनुरागी एवं गुणवान् थे ।
इस तरह पुंजराज एक संस्कृत साहित्य के मर्मज्ञ थे
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का और उल्लेख मिलता है जो ईडर का राजा था मौर राजपूत या चतः इनसे उसकी कोई संगति नहीं बैठती है। पुंजराज की हत्या सं० १५५८ के लगभग की गई थी और उसी समय दो-चार माह के अन्तर से ग्यासुद्दीन खिलजी की भी मृत्यु हो गई थी, वह सन् १४६९ (सं० १५२७) में मांडू के सिंहासन पर बैठा था और ३२ वर्ष तक राज्य करता रहा। मांडू में खिलजी वंश के केवल चार ही शासक हुए थे - १. मुहम्मद शाह प्रथम, २. ग्यासुद्दीन, ३ नाविरुद्दीन ( कादिर ) ४. मुहम्मद अब्दुल शाह द्वितीय
ऐतिहासिक पुरुष थे और पुंजराज नाम के एक राजा
पुजराज की तीन रचनाएँ उपलब्ध है - १. सारस्वत की टीका २ कापातकार शिशुप्रबोध और ३. ध्वनिप्रदीप ये तीनों ही ग्रन्थ प्रकाशित ही प्रतीत होते है । तीनों में उनकी प्रशारित विद्यमान है। काव्यालकार शिशुप्रयोध की प्रशस्ति निम्न प्रकार है
मोऽय श्री पुंजराज नृपतिः परोवकृति कौतुकी । व्यवत्त काव्यानकार श्रोतृव्युति सिद्ध ।। १०३॥ इति श्रीमान कुन श्री कुनमालभार मांडवगण्डलालंकार श्री जीवनेन्द्र नन्दन मफरल मलिक श्री पुजराज विवि कापाल कारेऽन काव्यावोऽष्टमः समाप्त (देखो - Search for Sanskrit M. S. S. 1882 83 by Dr. Bhandarkar P. 199 )
इसी ग्रथ मे डा० भण्डारकर ने टिप्पणी करते हुए जिया है
'Punj Raj was a son of Jivanendra and is spoken of as an ornament of the Malwa circle and as belonging to the family of Shrimal. He is therefore the same as an author of the commentry on the Saraswat Prakriya. Punj Raj mentioned another larger work of his entitled Dhwani pradeep (H. Appendix II ).
डा० एस. के बेलवलकर ने अपनी कृति 'System of Sanskrit Grammer by Punj Raj' के पृष्ठ ९६ पर लिखा है
'Punj Raj belonged to the Shrimal family of malabar which sometimes or other settled in Malwa. The gives his ancestry in the Prasasti. At the end of his commentry,