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४४, बर्ष ३०, कि. २
अनेकान्त
३६. वृद्ध चिन्तामणि जितेन्दु केवल सूत्रों की टीका है, जिसे साधारण पाठक सरलता से नहीं पढ़ सकता है। ४०. सिद्धान्त चन्द्रिका रामाश्रम
मझे ही प्रेस कापी तैयार करने में पर्याप्त समय लग गया ४१. सुबोधिनी सदानन्द गणि (देखें जिनरत्न था। पुंजराज श्रीमाल की शोध में प्रत्यधिक समय और
कोष ले. डा. बेलंकर पृ. ४३६ शक्ति खर्च करने के बाद जो कुछ जानकारी एकत्र की ४२. टिप्पण चन्द्रकीति) देखें जिनरत्नकोष ले. जा सकी वह पाठकों की ज्ञानवृद्धि हेतु निम्न प्रकार
डा. बेलंकर पृ. ४३६ : प्रस्तुत है। ४३. न्याय रत्नावली दयारतन
पुंजराज अपने समय के एक कुशल प्रशासक, अर्थ४४. स्वावबोधिका अज्ञात
शास्त्र के वेत्ता, संस्कृत व्याकरण एवं ध्वनि शास्त्र के ४५. सारदीपिका यतीस
प्रकाण्ड पण्डित थे । अर्थ तंत्र विशेषज्ञ होने के कारण ४६. सिद्धान्त चन्द्रिका रामचन्द्राश्रम
उन्हें मांडू (मालवा) के सुल्तान ग्यासुद्दीन खिलजी (सन् ४७. टीका प्रज्ञात
१४६६ से १५०१ ई. तक) ने अपना अर्थमत्री नियुक्त ४८. सारस्वतोद्धार स्तोत्र नदिरत्न के शिष्य
किया था। वे जहां लक्ष्मी के स्वामी थे वहा सरस्वती के ४६. सारसात चन्द्रिका मेघ विजय
वरदपुत्र एवं युद्धकला और शासन व्यवस्था में बड़े पटु ५०. धातु तरगिनी या
थे। जैसा कि प्रशस्ति में उल्लिखित "समरस मयरुद्र. पुंजस्वोपज्ञ पिपरण अज्ञात
राजो नरेन्द्रः।" वाक्य से स्पष्ट विदित होता है। वे राज्य ५१. धातु पाठ अज्ञात
के प्रति पूर्ण वफादार और प्रजा के प्रत्यधिक हितपी थे । ५२. धातु पाठ कल्याण कीति
वे राज्य के राजस्व को बड़ी सावधानी और मितव्ययता ५३. व्युत्पत्ति साकार जितेन्द्रियाजिनरत्न निबंध से खर्च करते थे। अपव्यय उन्हे बहुत खलता था, यही ग्रन्थकम् ।
निष्ठा और प्रजा वत्सलता ही उन्हे अभिशाप बनकर ले उपर्युक्त टीकाकारों में से हमारे इस लेख का मूल बैठी। उद्देश्य इसी सूनी के तारांकित क्रमांक ५ पर अकित श्री सुल्तान ग्यासुद्दीन खिलजी का पुत्र अब्दुल कादिर, पजराज श्रीमाल का जीवन परिचय प्रकट करना है। जिसे नासिरुद्दीन की उपाधि प्राप्त थी, बड़ा अपव्ययी
दिल्ली के जैन ग्रन्थ भण्डारों को पांडुलिपियों का और विलासी था। वह राज्य के राजस्व को अपने भोगविस्तत सूचीपत्र (Discriptive Catalogue) तैयार विलास मे ही अपव्यय करना चाहता था जो पुजराज को करने के लिए जिसकी प्रेस कापी तैयार की गई है, का प्रभीष्ट न था। उन्होंने अब्दुल कादिर को प्रेम पूर्वक सर्वेक्षण करते हुए कि जैन पचायती मन्दिर नया मन्दिर सन्मार्ग पर लाना चाहा पर वह दुराग्रही था । फलतः धर्मपुरा के सरस्वती भण्डार में पुंजराज श्रीमाल कृत पुंजराज को सुलतान गयासुद्दीन से शिकायत करनी पड़ी, सारस्वत प्रक्रिया की टीका प्राप्त हुई। इसकी एक प्रति जिससे बाप-बेटे में खटक गई तथा वह इनका शत्रु बन जयपुर भण्डार (देो राजस्थान के जैन ग्रन्थों की सूची बैठा। वह इन्हे काफिर कहता था तथा साम्प्रदायिकता भाग २, पृष्ठ २६ पर) तथा एक प्रति श्री गरचन्द्र उभारने का सदैव प्रयत्न करता रहता था पर पिता के जी नाहटा के भण्डार मे विद्यमान है। इस टीका के अन्त भय से कोई ठोस कार्यकारी पग नही उठा पाता था में पजराज से सम्बन्धित २३ छन्दों की एक विस्तृत प्रतः मौन रहता था। इसके अतिरिक्त पुजराज का भी प्रशस्ति विद्यमान है।
अपना विशिष्ट प्रभाव था मतः नासिरुद्दीन (अब्दुल कादिर) दिल्ली वाली प्रति प्राषाढ़ कृष्ण ६ गुरुवार सं० १६४५ ने षड्यंत्र रचा और एक दिन जब पुजराज राजदरबार में लिपिबद्ध की गई थो। इसकी पुस्तकालय क्रम स० से अपने घर लौट रहे थे कि अवसर पाकर दो मादमियों प्रजनन. १३८ है। यह प्रति पृष्ठ माला में लिखी हुई से इनकी हत्या करवा दी।