________________
३८, वर्ष ३०, कि०२
अनेकांत
ISI
151
SIS
सर्ग) एवं ३ शार्दूल-विक्रीड़ित (अन्तिम, १७वां सर्ग) कथावर्णन, प्रकृति चित्रण, दर्शन निरूपण, पात्र सृष्टि, उपवृत्त है। इस गणना से सिद्ध हो जाता है कि वशस्थ वृत्त देश कथन, वस्तु व्यजना, रसान्विति सभी के लिए वंशस्थ के प्रयोग में कवि ने नया कीत्तिमान स्थापित किया है। वृत्त को साधन बनाया है। डा० पुत्तूलाल शुक्ल के शब्दों अाज तक किसी हिन्दी कवि ने एक ही कृति में इतने में तो "मूर्तिकार के हाथों में जैसे मृदित मृदु मृत्तिका अधिक वंशस्थो का उपयोग नहीं किया है।
होती है, वैसे ही अनप की प्रतिभा के करों में वंशस्थ वंशस्थ
रहा है। यह १२ अाक्षरिक जगती वर्ग का समवृत्त छन्द है, तिविलम्बित प्रति इसके प्रत्येक पाद मे १२ प्रक्षर होते है, जिनका (नगण, भगण, भगण, रगण-111, SI, STI, sis) गणक्रम है (जगण, तगण, जगण, रगण), यथा निम्न- द्रतिविलम्बित वृत्त का प्रयोग वर्द्धमान के प्रत्येक सर्ग लिखित उदाहरण मे --
में हुमा है। विशेषत. सगन्ति में, छन्द परिवर्तन के महा त. ज. र० काध्यीय लक्षण के दष्टिकोण से इस वृत्त का प्रायोजन 5
5 15 (प्रथम एवं सत्रहवें सर्ग के अतिरिक्त) सभी सर्गों के अन्त प्रभात के पक्ष प्रसार 4 चढ़ी
में हमा है। इम वृत्त द्वारा भावी कथा के प्रति जिज्ञासा 1515
__ISIS व्यक्त की गई है, यथागभस्तियां ज्यो रवि को प्रकाशती
न. भ. भ. र. ISI
डा कुमार की प्रस्तुत भाव शैलियां
॥ II || 5
5
इस प्रकार महा अनुराग से विराजती थी हृदयाभिरूढ़ हो
जगत था करता जब प्रार्थना यद्यपि वंशस्थ वृत्त करुण, शृगार एवं शान्त रसों
प्रभु प्रचंचल चित्त उठे, तथा, के अनुकल है परन्तु 'वशस्थ सिद्ध कवि' अनूप ने नवों
चल दिए लखिए किस ओर ?' रसों के परिपाक का उपकरण वशस्थ को बनाया है।
इसी वृत्त ने महाकाव्य में विश्रामदायी स्थल का पन्त्यानुप्रास मुक्त वशस्थ वृत्तो में कवि ने यति विधान
दायित्व निर्वाहा है। कवि ने तिविलम्बित वृत्त का के क्षेत्र में भी स्वच्छन्दता का परिचय दिया है। प्रस्तुतीकरण संस्कृत प्रयोगों की भाति केवल दो चरणों साधारणतः, प्राचार्यों ने पाच वर्गों के पश्चात् यति लक्षण तक सीमित न रख, चारो चरणों तक प्रवाहमान रखा है। निदिष्ट किया है, किन्तु महाकवि ने सुविधानुसार कही शालविक्रीडित चार कही पाच तो कही छः वर्णों के बाद यति दी है।
(मगण, सगण, जगण, सगण, तगण, तगण, गुरु) निम्नलिखित वृत्त मे चार वर्णो पर यति है। इस वत्त में
555 H15151115551 551 S गुम्फित अन्त्यानुप्रास भी दर्शनीय है ---
सम्पूर्ण महाकाव्य 'वर्द्धमान' में केवल तीन शार्दलप्रसन्नता, सुन्दरता, सुभाग्यता,
विक्रीडित वृत्तों का प्रयोग हुआ है। तीनों वृत्त अन्तिम नपाल के प्रागन मे प्रफुल्ल थी,
सर्ग के अन्त में स्थित है, जिनमें उपसंहार रूप मे कथा विमुग्धता, चचलता, मनस्विता,
मन्तिम बार ज्योतित हुई है-- कुमार सेवा करती अजस्त्र थी।'
भव्यो! है यह मेदिनी शिविर सो जाना पड़ेगा कभी, साराशतः कवि अनूप ने 'वमान' महाकाव्य मे मागे का पथ ज्ञान है न, इससे सद्बुद्धि आये न क्यो ? १. अनूप शर्मा-वद्धमान, पृ. ३५३ ।
३. सम्पादक डा०प्रेमनारायण टण्डन-मनप शर्मा: २. अनूप शर्मा-- वर्द्धमान, पृ. २५२ ।
___ कृतिया मोर कला, पृ. २०८ । ४. अनूप शर्मा-वर्द्धमान, पृ. ५२१ ।