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माधुनिक हिन्दी जैन महाकाव्यों में छन्द योजना
वर्णवतों तथा मात्रिक छन्दों के भेद उपभेद है-इन्हें निम्नलिखित तालिका में स्पष्टत: प्रकट किया गया है।'
वणिक
मात्रिक
सम
अर्द्धसम
विषम
मदंसम
दिषम
।
जातिक सवैया दण्डक
सयुक्त
प्रबंधित जातिक दण्डक
संयुक्त प्रबंधित
साधारण मुक्तक
साधारण मुक्तक
छन्द चाहे वणिक हो अथवा मात्रिक, सभी का मूला- मे वर्णवत्तों की स्वल्प रचना हुई है। कवि पनप शर्मा ने पार है स्वरो का लघु अथवा गुरु उच्चारण । श्रवणीय 'बर्द्धमान' महाकाव्य मे प्रायोपात वृत्तो की सर्जना की है, स्वर स्पन्दन से लेकर एक-एक निश्चित उच्चारण तीव्रता महाकवि रघबीर शरण मित्र ने भी महाकाव्य 'वीरायन' तक लघु स्वर (1) माना गया है और उसके ऊपर गुरु मे एकाध स्थलो पर वणिक वृत्त का उपयोग किया है। (5) । यद्यपि लघु एवं दीर्घ मध्य निश्चित विभाजक अवशिष्ट हिन्दी जैन महाकाव्यो में केवल माधिकों का रेखा खीचना कठिन है, तदपि लघु-गुरु के निर्णय का प्रयोग दृष्टिगत होता है। प्राधार कालमान या बालभार है। इन्ही लघ, दीर्घ वर्णवृत्त मात्राओं की गणना द्वारा छन्द के प्रकार का निर्णय किया वर्णवत्त के प्रध्ययन क्रम में 'गण' का ज्ञान आवश्यक जाता है।
है। तीन प्रक्षरों के संयुक्त "त्रिक' को गण कहते हैं। आधुनिक हिन्दी महाकाव्यो की भांति ही प्राधुनिक विस्तार भेद की दृष्टि से 'त्रिकल' या त्रिक के पाठ सप हिन्दी जैन महाकाव्यो में भी वर्णवत्तो तथा मात्रिक छन्दो हो सकते है। इन पाठ रूपों को सुविधा की दृष्टि से दोनो का सफल वा सुष्ठ प्रयोग हुमा है। यह सत्य है
___ गण नाम दे दिए गए है जो निम्नलिखित है :कि वर्णवत्तों का प्रायोजन मात्रिकों की विपुलात्मक सख्या
मगण (15) यगण (155) रगण (175) सगण (15) के समक्ष नगण्यप्राय है। इसका कारण है खड़ी बोली तगण() जगण (151) भगण (51) नगण (m) हिन्दी की विश्लिष्टात्मक वृत्ति । 'सरका की भांति किसी छन्द मे उपर्युक्त विकलों के निश्चित प्रावर्तन संश्लिष्ट एवं सन्धिसमासबहुला भापा न होने के कारण के नियम के अनुकल ही वृत्तभेद निश्चित किया जाता है। हिन्दी में वर्णवृत्त का क्रम बध नही पाता, अतएव उसकी जैसा कि पूर्वोत्नेख किया जा चुका है, महाकाव्य कार प्रवृत्ति का सहित से व्यवहृत की पोर होना ही वास्तव में, अनूप शर्मा ने १७ सगों में निबद्ध अपने महाकाव्य 'वर्द्धउसमें वणिक की अपेक्षा मात्रिक छन्दों के प्रवान का मान मे प्राद्यत केवल वृत्तो का प्राश्रय लिया है। वर्द्धमान' मूल कारण है।"
मे समस्त वर्णवतो की कुल मापा १६६७ है, जिनमें भापा की प्रतिकूलता के कारण ही जन महाकाव्यों १९२२ वंशस्थ, ७० दुतविलम्बित, २ मालिनी (प्रथम १. विस्तृत विवरण के लिए देखिए - रघुनन्दन शास्त्री-“छन्द प्रकाश", पृ० ४३-४७ । २. प्रतिमा कृष्णबल-छायावाद का काव्य शिल्प, पृ. ३२२