SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्मचक्र 0 ना. गोपीलाल अमर धर्म एक भाव है। चक्र उसका दृश्य प्रतीक है। हजार प्रारों के नाम पर, एक-एक दिन छोड़कर एक मनुष्य का यंत्र-कौशल चक्र से प्रारम्भ होता है। चक हजार उपवास करने होते हैं । इससे यह व्रत २००४ दिन स्वयं गतिमान् है और गतिदायक भी। वह प्रकृति के प्रर्थात् साढ़े पांच वर्ष में पूरा होता है। निक्ट भी है और कला का प्रेरक भी। उसमें अलंकरण धार्मिक अनुष्ठानों में जो यंत्र स्थापित किये जाते हैं फबता है। उसके रूप भी अनेक हो सकते है। इसीलिए उनमे ये भी होते हैं : दशलाक्षणिक धर्मचक्रोदार, रत्नत्रय उसे धर्म का प्रतीक बनाया गया होगा। चक्र, शान्तिचक्र यंत्रोद्धार, षोडशकारण धर्मचक्रोद्धार, तीर्थकर के पाठ महा-प्रातिहायों मे धर्मचक्र पांचवां लघु सिद्धचक्र, बृहत् सिद्धचक्र, सुरेन्द्रचक । है। यह विहार के समय तीर्थंकर के आगे-पागे चलता है। धर्मचक्र के प्रारों को सख्या भिन्न-भिन्न मिलती है। तरु प्रसोक के निकट मे, सिंहामन छविदार । पाठ पारे श्रावक के, पाठ मूलगुणों के, या प्रष्ट कर्मों के, तीन छत्र सिर 4 लसें, भामंडल पिछवार ।। या पाठ दिशामों के प्रतीक हो सकते हैं। सोलह मारे धर्मचक्र प्रागे चले, पुष्पवृष्टि सुर होय । षोडशकारण भावनाओं के प्रतीक हो सकते है जिनसे ढोरै चौसठ चमर जब, बाजे ददुभि जोय ।। तीर्थकरत्व प्राप्त होता है । चौबीस पारे चौबीस तीर्थंकरों तीर्थकर समवसरण मे एक पीठिका पर पाठ मंगल के सूचक माने जा सकते हैं। पारो की संख्या बारह द्रव्य स्थापित होते है। इनमें एक धर्म चक्र भी होता है। बत्तीस प्रादि भी हो सकती है। इसे यक्ष जाति का देव अपने मस्तक पर धारण किये विष्णु के हाथो मे शख, गदा और कमल के साथ खड़ा रहता है। इसके एक हजार पारे होते है। उनमें चक्र भी होता है । बुद्ध के पश्चात् पाच सौ वर्ष तक रत्न जड़े रहते है। उनकी मूर्ति नही बनी, तब चक्र भी उनके प्रतीकों के रूप चक्रवर्ती के चौदह रत्नो मे सुदर्शन-चक प्रथम है। में पूजा जाता था। उनकी मूर्तियों पर भी धर्मचक्र बनाया इस प्रायुध से शत्रुओं का संहार किया जाता है। शस्त्ररूपी गया। तीसरी शताब्दी ई० पू० मे मौर्य सम्राट अशोक चक्र यदि एक छोर पर है तो मानवता के कल्याण का ने सारनाथ के स्तम्भ पर धर्मचक्र स्थापित किया था। प्रतीक धर्मचक्र दूसरे छोर पर है। यही धर्मचक्र आज भारत सरकार का राष्ट्रीय प्रतीक प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की शासनदेवी या यक्षी बनाया गया है। भारत के बाहर भी प्राचीन कला मे चक्र चक्रेश्वरी है। यह गरुड़-वाहिनी गौरागी देवी पाठ हाथो का प्रकन मिलता है। में पाठ चक्र धारण करती है। चक्र धर्म का प्रतीक है, प्रात्म-साधन का माध्यम है, तीर्थकर मूर्ति के सिंहासन पर मध्य मे धर्मचक्र अंकित किन्तु वह मानव-कल्याण का प्रतीक भी बन चुका है। किया जाता है। यह प्रथा ईसा से दो-तीन सौ वर्ष पूर्व धर्मचक्र का प्रवर्तन मानवता के लिए सुख और शान्ति का मथुरा की कला में भी प्रचलित थी। पटना के समीप सन्देश है, तभी तो कहा गया है: चौसा से प्राप्त कांस्य प्रतिमाओं में एक चक्र भी है। इसके क्षेमं सर्वप्रजानां, प्रभवतु बलवान् धामिको भूमिपालः, साथ एक प्रशोक वृक्ष भी प्राप्त हुआ है । इससे प्रतीत होता काले काले च सम्यग् वर्णतु मघवा, व्याधयो यान्तु नाशम् । है कि ये दोनों प्रष्ट-महाप्रातिहार्यों के प्रतीकों में से हैं। दुभिक्षं चौरमारी क्षणमपि जगतां मा स्म भूज्जीवलोके, धर्मचक्र नाम का एक प्रत भी होता है। इसके एक जैनेन्द्रं धर्मचक्र प्रसरतु सतत सर्वसौख्यप्रदायि । 000
SR No.538030
Book TitleAnekant 1977 Book 30 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1977
Total Pages189
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy