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________________ १६. वर्ष ३०, कि०१ अनेकान्त रहित, सुन्दर मुस्कराती है या सामान्य, प्राचीन है या जैन प्रतिमा में उत्कीर्ण नही होती, फिर भी ऊपर से उन्हें पर्वाचीन, मनोहर मन्दिर वेदी में है या अन्यत्र इत्यादि किसी भी तरह शृंगारित-भूषित करना दूषण है। मगर सब विकल्प गौण हैं। जैन प्रतिमा किसी सामान्य पुरुष रूप में बनाई जाती, तो वस्तुत: जैन-प्रतिमा-निर्माण का उद्देश्य दि० कायो- फिर भी ऊपर से उस पर इच्छानुसार शृंगारादि सम्भव त्सर्ग ध्यानमुद्रा को ही सिर्फ बताना रहा है। अतः वे हो सकता था, किन्तु वे तो बनाई ही निर्गन्थ ध्यान-मुद्रा समस्त सांसारिक विषयों से विमुख, रागद्वेषरहित, वीत. में जाती हैं। प्रत. ऊपर से उन्हें शृंगारित-सरागी करना राग-स्वरूप होती हैं । उनके शरीर पर शस्त्रास्त्र, वस्त्रा- उनकी विडंबना है। यह सब एक तरह की प्रसंगत विकृत भूषण, केश-सज्जा, फूल, शृंगार, मकूट, कुण्डल, वाद्यादि प्रक्रिया हैं। नहीं होते ; स्त्री, पुत्र, भाई, मादि, परिकर, अगरक्षा, वाहन मादि भी वे धारण किये हुए नहीं होती। ये सब चीजें केकड़ी (अजमेर) राजस्थान 000 (पृ. ७ का शेषांश) मूर्ति क्रमांक २०८ व २०६ में पार्श्वनाथ व ऋषभनाथ शहपुरा से प्राप्त ऋषभनाथ एवं पार्श्वनाथ की प्रतिमाएं अंकित हैं। दोनो काले स्लेटी पाषाण से निर्मित है। ये सम्प्रति जिला संग्रहालय, मंडला में संरक्षित है। पाश्वनाथ दोनों प्रतिमायें उज्जैन से ही उपलब्ध हुई थी। यहां की प्रतिमा पदमासन में ध्यानमग्न है। ४८"X ३०" संगहीत १० प्रतिमायें सर्वतोभद्र महावीर की है, जिन आकार की इस प्रतिमा के पैर खंडित है । सिर पर सप्तपर पारदर्शी वस्त्र है। सभी में तीर्थकर पद्मासन मे फणों का वितान एवं त्रिछत्र है। पादपीठ के दोनों भरि ध्यानमग्न मुद्रा में है । ये भी उज्जैन से ही प्राप्त सबसे नीचे पूजक एवं विद्याधर अंकित है। हुई थीं। ____ मंडला जिले के शहपुरा, कुकरमिठ एवं बिझीली उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि मध्यनामक स्थलों से भी जन प्रतिमायें प्राप्त नईम काल में मध्यप्रदेश के विस्तृत भूभाग मे अन्य धमों के निवास मार्ग पर, निवास तहसील से २ मील की दूरी पर साथ-साथ जैन धर्म का भी अच्छा प्रचार एवं प्रभाव था। एक वृक्ष के नीचे भगवान शांतिनाथ की एक कलात्मक एवं इन इन जैन प्रतिमानों की मध्यप्रदेश की संस्कृति को अभूतपूर्ण सुरक्षित प्रतिमा है। डिन्डोरी तहसील के निकट पूर्व दन है। कुकरमिठ नामक ग्राम के प्राचीन देवालय के सामने व्याख्याता, शासकीय महाविद्यालय, पार्श्वनाथ एवं ऋषभनाथ की प्रतिमायें रखी हुई हैं। डिन्डौरी (मण्डला), मध्यप्रदेश 000
SR No.538030
Book TitleAnekant 1977 Book 30 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1977
Total Pages189
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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