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८६, वर्ष ३०, कि० ३.४
अनिकान्त
(महमदाबाद १९३५) तथा जैन तीर्थाज इम इंडिया सग्रहालय, लखनऊहाराभायोजित जैन कला संगोष्ठी एण्ड देयर मार्किटेक्चर (महमदाबाद १९४४)
का विवरण तथा जन कला पर विभिन्न विद्वानों १. डा. मोतीचन्द्र-जैन मिनियेचर पेन्टिग्स फाम द्वारा पठित निबन्धों का सार संकलित है। वेस्टर्न इण्डिया (महमदाबाद १९४६)
. १५. जैन पार्ट एण्ड पाकिटेश्वर, ३ खण्ड (भारतीय ज्ञान७. मुनि पुण्य विजय-जेसलमेर चित्रावली (महमदा
पीठ, १९७५)-जैनकला के विषय में प्रकाशित प्रब बाद १९५१)
तक के ग्रन्थो में यह महामन्य सर्वाधिक विशाल, ८. मुनि जयन्तविजय --प्रावू पर्वत एवं उसके जैन
सर्वांगपूर्ण एवं प्रामाणिक है। ग्रन्थ सचित्र है और मन्दिरों पर कई पुस्तके ।
अग्रेजी एवं हिन्दी दोनो भाषामों में प्रकाशित ६. मुनि कान्तिसागर- खोज की पगडंडियाँ और हुआ है। खंडहरों का वैभव, (दोनो भारतीय ज्ञानपीठ से
इस प्रकार, जैन कला-साहित्य का यह संक्षेप में प्राय: प्रकाशित ।)
सांकेतिक परिचय है। इस साहित्य की विद्यमानता मे जैन १०. टी० एन० रामचन्द्रन-जन मोन मेण्ट्स प्राफ इण्डिया कला के किसी भी अंग या पक्ष पर शोध करने वाले छात्र (कलकत्ता १६४४)
को सामग्री का प्रभाव नही है। कलाममंज्ञों के लिए जैन ११. यू०पी० शाह - स्टडीज इन जैन पार्ट (वाराणसी कला के किसी भी अंग का तुलनात्मक अध्ययन, समीक्षा १९५५)
एव मूल्यांकन करना अपेक्षाकृत सुगम हो गया है। जो १२. क्लास फिशर -वेठज एण्ड टेम्पल्स आफ दी जन्स
कलारसिक अथवा सामान्य जिज्ञासु है, वे भी उपर्युक्त (जंन मिशन, अलीगंज १६५६)
साहित्य से जैन कला विषयक सम्यक् जानकारी प्राप्त कर
सकते है। इतना सब होने पर भी यह मान बैठना उचित १३. डा० भागचन्द्र जैन- देवगढ़ को जन कला (भारतीय नही होगा कि इस क्षेत्र में अब और कुछ करना शेष नहीं ज्ञानपीठ १९७५)
है । अभी बहुत-कुछ किया जा सकता है, करने की प्राव. १४. शोवाङ्ग३१ (२६ दिस० १६७२) - में राज्य श्यकता है।
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की भाषा में होता है। यदि नही होता तो वहाँ प्रजातन्त्र और सम्मान ही नहीं बढ़ाया, अपितु उन्हेंसमानता के के होते हए भी पराधीनता है, परभाषा की पराधीनता। अधिकार से सशोभित किया। उनका अपरिग्रहवाद
पाज का युग समानता का युग है। स्त्रिया माता माथिक समानता का प्रादशं प्रस्तुत कर समाजवाद को पुरुषों के समान अधिकारों की मांग कर रही है और
जड़ों को ही मनबूत बनाता है। 100 उनकी मांगें पूर्ण भी हो रही है, न हों तो फिर प्रजातन्त्र का प्रादर्श-प्रादर्श मात्र ही रह जाएगा। शोषित वर्ग को
प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, हिन्दी-विभाग, इस्लामिया कालेज, भी समाज में बराबरी के हक दिये जाते हैं। महावीर ने हजारों वर्ष पूर्व स्त्रियों को दीक्षा देकर उनका पादर
श्रीनगर (काश्मीर)