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________________ भगवान महावीर के उपासक राजा राजा चेटक की सात पुत्रियां थी, जिनका तत्कालीन राजा शख हतिनापुर के राजा शिव, बसन्तपुर के राजा प्रभावशाली राजारों के साथ विवाह हुमा था। वे सभी समरवीर, पावा के राजा हस्तिपाल एवं पुण्यपाल,पलाशराजा भगवान् महावीर के श्रद्धालु श्रावक थे । प्रभावती पुर के राजा विजयसेन व राजकुमार एमत्त, वाराणसी बीतमय के राजा उदाणय, पद्यावती अंग देश के राजा की राजकुमारी मुण्डिका पोदनपुर के राजा विद्रराज, दधिवाहन, मुगावती वत्सदेश के राजा शतानीक, शिवा कपिलवस्तु के राजा शाक्य बप्प, पांचाल नरेश जय प्रादि उज्जैन के राजा प्रद्योत, जोष्ठा भगवान महावीर के सैकड़ों राजामों एवं राजकुमारों ने भगवान महावीर के ज्येष्ठ बन्धु राजा नन्दीवर्धन, चेलणा मगध के राजा निर्देशन में श्रामण धर्म की साधना की थी। श्रेणिक को व्याही गई थीं। सुज्येष्ठा ने अविवाहित दक्षिण प्रदेश भवस्था में ही दीक्षा ग्रहण कर ली थी। इन राजानों मे भगवान महावीर की विहार-भूमि यद्यपि भारतीय से अधिकांश जोवन के पूर्वार्ध या उत्तरार्ध में अवश्य ही पूर्वाचल, पश्चिमाचल तथा उत्ताचल ही रही, पर उनकी भगवान महावीर की धर्म-प्रज्ञप्ति मे अनुरक्त हो गये थे। साधना से दक्षिण प्रदेश के राजा न केवल प्रभावित ही सातों पुत्रियां तो बाल्य-काल ही निर्ग्रन्थ धर्म की उपा- थे, अपितु उन्होंने निग्रंथ-साधना भी की थी। वर्षमान सिकाए थी। कर्णाटक का एक भू-भाग हेमागद देश के नाम से विख्यात अन्य राजा था। वहां का राजा सत्यन्धर परम श्रावक था। मन्त्री भारत के विभिन्न प्रदेशों के अधिशासी अधिकाश कुष्टांगार के शड्यंत्र से उसकी मृत्यु हो गई। राजकुमार राजामों ने उस समय भगवान महावीर की धर्म प्रज्ञप्ति जीवन्धर पिता की मृत्यु के बहुत वर्षों बाद गजाहमा । स्वीकार की थी। भगवान महावीर के दिव्य उपदेश ने जीवन्धर का रोचक व साहसिक इतिहास तत्कालीन तथा प्रत्येक को प्रभावित किया था। उज्जयिनी के राजा उत्तरवर्ती संस्कृत, अपभ्रश, कन्नड़ तथा नमिल के साहित्य प्रद्योत के माता-पिता श्रावक थे। वह भी निर्ग्रन्थ धर्म कारा का मुख्य प्राकर्षण केन्द्र रहा। प्रलम्ब ममय तक का अनुयायी बना, किन्तु उस समय जबकि शतानीक की राज्य का कुशल संचालन करने के अनन्तर उमे भगवान रानी मगावती तथा प्रद्योत की शिवा प्रादि प्राट रानिया महावीर की पयंपामना ना स्वणिम अवसर प्राप्त भगवान महावीर के समवसरण में प्रव्रज्या ग्रहण करती और उसने श्रम-साधना प्रारभ कर दी। हैं, वह भी उस प्रव्रज्या समारोह में सम्मिलित था। कोटिवर्ष (लाढ़) के किरातराज चिलात श्रावक कौशाम्बी का राजा उदयन राजा कुणिक की तरह दृढ़ जिनदेव से प्रेरित होकर अमूल्य रत्न पाने की अभिलाषा श्रद्धालु श्रावक था। वीनभयपुर का राजा उद्रायण भगवान् से साकेत पाया और वहाँ भगवान् महावीर से भाव रस्त केवल मान प्राप्त कर ग्रहण किये, अर्थात् भागवती निर्ग्रन्थ प्रव्रज्या स्वीकार की। मक्त हमा। राजा उद्रायण की प्रव्रज्या भावना को जान- ढाई हजार वर्ष पूर्व भारत के विभिन्न प्रचलों मे कर उसको प्रजित करने के लिए भगवान महावीर जितना व्यापक प्रभाव भगवान् महावीर का था, इतिहास भयंकर गर्मी मे उन व प्रलम्ब विहार कर सिन्धुसौवीर की के प्रमाणों से यह दृढ़तापूर्वक कहा जा सकता है कि उतना राजधानी वीतभय पहुंचे थे । दशाणतुर के राजा दशार्णभद्र, प्रभाव अन्य किमी व्यक्ति का नही था। वह ज्योति बहत्तर हस्तिशीर्ष के राजकुमार सुबाहु कूमार, सौगन्धिका के बर्ष तक लाखों व्यक्तियो को पालोकित करती रही। राजा महाचन्द्र, सुधोस नगर के राजा अर्जुन के भद्रनन्दी कार्तिक अमावस्या की मध्यरात्रि के पनन्तर वह ज्योति कुमार, वाराणसी के राजा अलक्ख, पृष्ठचम्पा के राजा देहातीत हो गई। उस समत इन्द्र तथा अन्य देव भूतल गागलि. चम्पा के राजकुमार महाचन्द्र, ऋषभपुर के राजा पर पाये । उस प्रकाश में भ-मण्डल भालोकित हो गया। घनावाह के राजकुमार भद्रनन्दी, पोत्तनपुर के राजा प्रसन्न अठारह गण राजापो ने भाव (जान) ज्योति के प्रभाव में चाद, कनकपुर के राजा प्रियचन्द के गजकुकार वंश्रमण, द्रव्य ज्योति से प्रकाश किया। तब से उस उपलक्ष से महापुर के राजा बल के राजकुमार महाबल, मथुरा के दीपोत्सव की परम्परा चली पा रही है। ocm
SR No.538030
Book TitleAnekant 1977 Book 30 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1977
Total Pages189
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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