SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 158
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बर्ष ३०, कि०३.४ अनेकान्त प्रजातशत्रु कौणिक भगवान् महावीर के प्रति विशेष मगध के साम्राज्य का कुशलतापूर्वक संचालन करता हुमा श्रद्धावनत था। जब भी उसे ऐसा अवसर प्राप्त होता, वह वह धर्माराधना में भो मनसा, वाचा व कर्मणा लीन था। उसका मुक्त उपयोग करता था। एक बार भगवान् महा- पारस्य (ईरान) देश के राजकुमार मादक (पशिर) बीर चम्पा के निकटवर्ती उपनगर में पधारे। प्रवृत्ति- को निग्रंथ धर्म की पोर प्राकर्षित करने का श्रेय अभयवादुक पुरुष ने कणिक को सूचित किया। राजा ने कुमार को ही है। मादक ईरान से चलकर भारत माया तत्काल राज-सिंहासन छोड़ा, पादुकाएं उतारी, खड्ग, और उसने भगवान महावीर के समवसरण में साधना की। छत्र, मुकुट, उपानत् पौर चामर प्रादि पांचों राज्य चिह्न अभय कुमार के समक्ष एक प्रसग उपस्थित हुमा कि वह दूर किये । एकसाटिक उत्तरासग किया। अंजलिबद्ध मगध का राजा बने या श्रमण । उस समय राज्य की पोर होकर मस्तक को धरणीतल पर लगाया। अंजलि को से वह मुड गया और श्रमण बन कर भगवान् महावीर मस्तक पर लगाकर 'णमोत्थुणं' से अभिवादन करते हुए द्वारा निरूपित साधना में प्रवृत्त हो गया। बोला-'प्रादिकर, तीर्थकर, सिद्ध गति के प्रमिलाषक वजी गणराज्य भगवान् महावीर मेरे धर्म गुरु, धर्मोपदेशक और धर्माचार्य गंगा के दक्षिण तटवर्ती राज्यों के प्रमुखों की तरह हैं। उन्हें मेरा नमस्कार है।' राजा पुनः गजसिंहासन पर । उत्तरीय गणराज्यों के प्रमुख भी भगवान महावीर के पारूढ़ हुमा। प्रवृत्ति-वादुक पुरुष को एक लाख प्रष्ट मनन्य श्रावक थे । महाराजा चेटक वज्जी सघ के अध्यक्ष सहस्र मुद्रामों का प्रीतिदान दिया। होने के साथ साथ धर्म-क्रियामो में भी अग्रणी थे । ७७.७ भगवान महाबीर जब चम्पा के पूर्णभद्र चत्य मे गणराजामो के प्रमुख चेटक भगवान महावीर के दढ़धर्मी पधारे, तो प्रवृत्ति-वादुक पुरुष ने पुन: राजा कौणिक को प्रमुख उपासक थे । 'मावश्यकचूणि' आदि में इनको व्रत. सूचित किया। उस समय कौणिक ने उसे साढ़े बारह घारी श्रावक व हा गया है । अनुश्रुति के अनुसार, वे इतने लाख रजत- मद्रामो का प्रीनिदान किया । राजा के प्रादेश कट्टर श्रावक थे कि सामिक राजा के अतिरिक्त अन्य से हस्तिरत्न सजाया गया, चतुरगिणी सेना सन्नद हई, किसी के साथ अपनी पुत्रियो के विवाह न करने का भी सनियो के लिए रथ तयार हुए, गलियो और गजमार्गो उनका प्रण था । श्रमणोपासक के बारह व्रतों की साधना को सजाया गया। राजा कौणिक सब प्रकार से सुसज्जित में वे दढ़मनस्क थे। अहिसा व्रत मे उनके एक विशेष होकर प्रपार वैभव व प्राडम्बर के साथ चम्पा के मध्य मभिग्रह था कि एक दिन में एक बाण से अधिक नही भाग से होता हुमा पूर्णभद्र चत्य के समीप पाया। मन चलाऊँगा। वे जो वाण चलाते थे, वह प्रमोघ होता था। में प्रत्यन्त उल्लास था। पांच अभिगमन के अनन्तर वैशाली में २० वें तीर्थकर मुनिसुव्रत स्वामी का एक भक्तिपूर्वक वन्दन-नमस्कार किया, पर्युपासना की तथा स्तूप था। उसके प्रभाव से ही वैशाली सदैव प्रजेय रहती धर्मदेशना सुनी। प्रानन्दचित्त-कोणिक उठा पौर थी। कुणिक ने जव वैशाली के प्राकार को भग करना अन्तःकरण से प्रेरित होकर उसने निवेदन किया--'भन्ते । चाहा, तो सबसे पहले छद्म से उस स्तूप को ही तुड़वाया, • मापका निधन्य प्रवचन सु-प्राख्यात है, सुप्रज्ञप्त है, सुभा इस प्रकार भनेक प्रमाणों से जाना जा सकता है कि महा. पित है, सुविनीत है, सुभावित है, अनुत्तर है। आपने राजा चेटक श्रेष्ठ राजनीतिज्ञ, कुशल प्रशासक, महान .. धर्म को कहते हुए उपशम को कहा. उपशम को कहते हुए योद्धा तथा प्रत्यन्त न्यायप्रिय होने के साथ साथ भगवान विवेक कहा, विवेक को कहते हुए विरमण का कहा, महावीर के विख्यात श्रावकों में से भी थे। -विरमण को कहते हुए पाप-कमों के प्रकरण को कहा। सिहभद्र ग्रादि राजा चेटक के दश पुत्र थे। वे सभी - अन्य कोई श्रमण या ब्राह्मण नही है, जो ऐसा धर्म कह वीर योद्धा. यशस्वी. दढ धामिक और भगवान महावीर सके। इससे अधिक की तो बात ही क्या ? के अनन्य भक्त थे। सिंहभद्र तो बज्जीसंघ के प्रधान सेना महामात्य प्रभयकुमार श्रेणिक का पुत्र था। भगवान् पति भी थे। मिहभद्र का उल्लेख त्रिपिटको में भी पाया महावीर की धर्मप्रज्ञप्ति के प्रति उसका पूर्ण समर्पण था। जाता है।
SR No.538030
Book TitleAnekant 1977 Book 30 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1977
Total Pages189
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy