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भगवान् महावीर के उपासक राजा
भगवान् महावीर इस भू-मण्डल पर बहत्तर वर्ष रहे। वे बारह वर्ष साधना पर्याय मे एवं अन्तिम तीस वर्ष तक केवली पर्याय में रहे । के साधन काल मे उन्हे जो उपलब्धियाँ प्राप्त हुई, उन्हें उन्होने तीस वर्षों तक मुक्त रूप से जनता को प्रदान किया। इस अवधि में शूद्र, अन्त्यज, किसान, कुम्भकार, थंडी, सामन्त राजकुमार, राजा महामात्य सेनापति प्रादि हजारों-लाखो व्यक्ति उनके निर्कमे पाये धौर वे साधना मे अग्रसर हुए। भगवान् महावीर के उपदेश उस समय व्यापक रूप ले चुके थे । समग्र मगध, सिन्धुसौवीर, अवन्ती, काशी, कोशल, वत्स श्रादि तत्कालीन राज्यों की जनता एवं राजबसाएं पूर्ण रूप से उनके प्रति बद्धाशील थी। उस समय के राजनैतिक इतिहास के सन्दर्भ मे यदि धार्मिक परम्पराठों का आकलन किया जाता है, तो ज्ञात होता है कि वर्तमान का पूरा बिहार प्रान्त उत्तर प्रदेश का अधिकांश भू-भाग, अवन्ती प्रदेश सिन्ध नदी का तटवर्ती प्रदेश, कर्णाटक आदि के राजा व प्रनेक राजा, राजकुमार तथा रानियाँ उनसे श्रमण-धर्म प्राप्त कर साधना मे अग्रणी रहे थे। ईरान के राजकुमार धाकुमार ने भारत प्राकर भगवान् महावीर की धर्म प्रज्ञप्ति को स्वीकार किया था।
शिशुनाग बंदा
म साम्राज्य पर शिशुनाग वंश का ३३३ वर्ष तक एकछत्र पिस्य रहा। परन्तु बंभिक और जावा कौशिक का राज्य काल भगवान् महावीर की वर्तमानता में था। दोनों ने ही समीपता से उनके धर्म का गहरा मनुशीलन किया था। प्रजातशत्रु कौणिक की भगवान महावीर के प्रति गहरी भक्ति की झलक तो इस एक उदाहरण से ही प्राप्त हो जाती है कि वह प्रतिदिन उनके कुशल संबाद मगवाता था। इस कार्य के लिए उसने एक
मुनिश्री महेन्द्रकुमार 'प्रथम'
प्रवृत्ति- बादुक पुरुष के नेतृत्व में धनेक पाय धनुष की नियुक्ति कर रखी थी भगवान् महावीर जब कमी राजगृह पाते थे, बेणिक धोर कौणिक परयन्त के उनकी पर्युपासना करते थे। यह एकमात्र ऐसा नगर था जहाँ उन्होंने चौदह चातुर्मास किये थे ।
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राजा श्रेणिक की भगवान् महावीर के प्रति प्रगाढ़ भक्ति थी। एक बार उसने राज-परिवार, सामन्तों तथा मंत्रियों के बीच घोषणा की थी कि कोई भी व्यक्ति भगवान् महावीर के पास दीक्षा ग्रहण करना चाहे तो मैं उसमें बाधक नहीं बनूंगा, अपितु सहयोग करूंगा। इस उद्घोषणा मे प्रेरित होकर जालि, मयानि पादि श्रेणिक के तेईस पुत्र तथा नन्दा, नवमती यादि तेरह रानियों ने प्रव्रज्या ग्रहण की थी। केवलज्ञान प्राप्ति के अनन्तर जब सर्वप्रथम भगवान् महावीर राजगृह पधारे तो श्रेणिक ने सम्युक्त्व धर्म तथा महामात्य प्रभय कुमार ने श्रावक धर्म स्वीकार किया था। महामात्य प्रभम कुमार, राजकुमार मेव, नन्दीसेन तथा वारिषेण ने यथासमय दीक्षा ग्रहण कर उच्च साधना की थी ।
शिशुनाग वंश में राजा श्रेणिक ही निर्ग्रन्थ (जैन) धर्म का अनुयायी बना हो, इतना ही नहीं है, बल्कि यह वशानुगत भी निग्रंथ था । उनके पिता राजा प्रसेनजित भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा के उपासक सम्यष्टि श्रावक थे ।
दशाश्रुत-स्कन्ध में, राजा श्रेणिक द्वारा प्रत्यन्त बडाभरित हृदय से पूरे परिवार व रानी देवना भगवान् महावीर के समवसरण में जाने एवं धर्म- देखना सुनने का सुविस्तृत वर्णन है । राजा श्रेषिक का वह प्रद्वितीय प्रकार था । उसे देखकर बहुत सारे साधुसाध्वियां भी चकित रह गई थीं। 'ज्ञाता धर्मकयांग' के १३ अध्याय में भी अत्यन्त समारोह के साथ पहना करने का रोचक वर्णन है ।