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श्रावस्ती का जैन राजा सुहलदेव
॥ श्री गणेशप्रसाद जैन
राजा सुहलदेव श्रावस्ती का राजा था। मुस्लिम मे शामिल थे। बहराइच का मैफुद्दीन, महोवा का हसन, इतिहासकारों ने राजा सुहलदेव का समय १०२३ ई० गोपामऊ का अजीजुद्दीन, लखनऊ का मलिक आदम, कड़े लिखा है । मीराते-मसऊदी (फारसी तवारीख) में चिश्ती मानिकपुर का मलिक फेज, मसऊद के मगे मामा साहब ने लिखा है : "निजद दरियाय-कुटिला (टेढ़ी) जेर रजबहठीले, सैयद इब्राहिम, सिकन्दर बरहना आदि सभी दरख्ता गलचिकाँ व जर्वनावक हमचू भी जान शहीद सु अपनी पूरी ताकत से युद्ध जीतने की कोशिश कर रहे थे। दन्द ।" अर्थात् कुटिला नदी के किनारे महुए के पेड़ के किन्तु राजा मुहलदेव के जोश-खरोश के सामने कोई टिक नीचे एक तीक्ष्ण बाण की मार मे सैयद सालार मसऊद न मका । मारा गया। एक भी मुस्लिम सैनिक जिन्दा नहीं बचा।" सालार-ममऊद हिन्दुओं मे युद्ध के समय हमेशा युद्ध
चिश्ती साहब आगे लिखते हैं : "मसऊद (गाजीमियां) के नियमों के खिलाफ काम करके युद्ध जीतता था। वह अपनी भारी भरकम शाही सेना के माथ १७वी शावान हिन्दु सेना के समक्ष हरावल (गायों का बेडा) खडा कर ४२३ हिजरी (सन् १०३३ ई०) को बहराइच पहुंचा। देता। हिन्दू सैनिक गाय पर शस्त्र प्रयोग नहीं करते थे कोसल (कौड़ियाल) के निकट उसमें और हिन्दु सेना मे और ममलमान मैनिक हरावल के पीछे मे हिन्दू सेना पर युद्ध छिड़ा। हिन्दू-सेना पराजित हो रही थी, तभी राजा धऑधार शस्त्र प्रहार करते और विजयी होते । किन्तु 'सुहलदेव' भूकंप की तरह हिन्दू-सेना के बीच आ धमके। राजा सहलदेव ने बद्धि का प्रयोग किया। उन्होने बिना उन्होने युद्ध की कमान मम्हाली और मुस्लिम-वाहिनी मे भाले वाले बाणों की हलकी मार गे गायो के हरावल को मार-काट करते हुए घस गए। भुट्टे की तरह मुस्लिम हटा दिया। अब मैदान साफ था और सीधा सामना था । सैनिकों का सर काट रहे थे। हिन्दू सेना के उखड़े पाँव मस्लिम सैनिकः रणक्षेत्र में युद्ध लड़ने के अभ्यामी नहीं थे। जम गए। उन्होंने उत्साहपूर्वक युद्ध किया। मुस्लिम- गायों के पीछे से शरत्र का वार करने वाले सैनिकों को वाहिनी मैदान छोड़कर भागी। राजा सुहलदेव और उन- नेत्रों के सामने यमराज खड़े दिखने लगे। की सेना मुगलवाहिनी को खदेड़ती-खदेड़ती बहराइच मे राजा सुहलदेव के साथ जब सैयद सालार मसऊर का उसके पड़ाव तक लाई। वहाँ पुनः गहरा युद्ध हुआ। युद्ध हो रहा था, उसी समय वाराणसी में सुलतान महमद युद्ध में मसऊद के साथ उसकी सेना का प्रत्येक मुगल के पुत्र के नेतृत्व में (मसऊद र जब की १८ के लगभग) सनिक मारा गया। एक भी जीवित नहीं बचा। यह वाराणसी को ध्वस्त किया जा रहा था। रज्जकुल मुरज्जव के १८वी हिजरी ४२४ (सन् १०३४ ई०) मबक्तगीन की तवारीख १०५६ ई. सन की रचना की घटना है। रणक्षेत्र बहराइच से केवल ८ मील की है। उसमें इस युद्ध का वर्णन १०३४ ई० लिखा है। दूरी पर है।"
चिश्र्ती साहब की मीराते-मसऊदी वाली घटना तवारीखे सैयद सालार मसऊद भारत सम्राट् (बादशाह) को महमूदी किताब से लेकर लिखी है । तवारीखेमहमूदी मुल्ला सगा भानजा था। वह महान योद्धा था। उस पर बादशाह गजनवी का लिखा हुआ है। मुल्ला गजनवी इस युद्ध में की विशेष मेहरबानी थी। उपर्युक्त युद्ध के लिए बादशाह सैयद सालार मसऊद की सेना के साथ था। की विशिष्ट-मुगल-वाहिनी मसऊद की सिपहसालारी में बम्बई की एशियाटिक सोसाइटी के जनल में 'फाइव आई थी। बड़े-बड़े सैनिक-योद्धा अपनी सेना सहित मदद हीरोज' शीर्षक से आर० ग्रीमेन का एक लेख प्रकाशित है,