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४२, वर्ष ३०, कि० ३-४
अनेकान्त
है। यह ग्रंथ कई वर्षों तक संस्कृत के पाठ्यक्रम में भी पौर काव्य भी लिखे हैं, अर्थात् ये अच्छे कवि थे। रहा है। इसके प्रारम्भिक 'दो शब्द' में विनयसागरजी ने विनयसागरजी को नेमिदूत की प्राचीनतम प्रति तो कवि विक्रम को खंभात के रहने वाले १४ वीं शताब्दी के संवत् १४७२ और १५१६ की प्राप्त हुई थी। उन्होंने श्वेताम्बर खरतरगच्छाधीश जिनेश्वर मूरि के भक्त श्रावक तीन मून प्रतियो और २ टीका की प्रतियों के प्राधार से थे, लिखा है। उन्होने मुनि विद्याविजय जी के नेमिदूत उपरोक्त संस्करण का सम्पादन किया था। संस्कृत टीका पद्यानुवाद की प्रस्तावना में कवि विक्रम को १२ वी सदी और हिन्दी पद्यानुवाद के साथ-साथ उन्होने काव्य की के कर्णावती के मपी "मागण का पुत्र कहा है," इसका भी प्रकारादि पद्यानुक्रमणिका भी दे दी थी। इस तरह यह उल्लेख किया है परन्तु उल्लेखित नेमिदूत पद्यानुवाद और सस्करण काफी उपयोगी बन गया था, पर हिन्दी टीका मनि विद्या विजय जी का वक्तव्य मेरे देखने में नहीं पाया। या गद्य में अर्थ इस संस्करण मे नही छपा था जोकि
कोटा के उपरोक्त सस्करण में डा० फसिह लिखित इन्दौर वाले मंस्करण में छपा है । उदयलाल कासलीवाल 'नेमिदन का काव्यत्व' और सवत् २००४ म लिखा हु ने जो इसका हिन्दी अनुवाद किया था, वह अब प्राप्त नहीं मेरी 'प्रस्तावना' प्रकाशित हुई थी। मैंने नेमिदूत की
है। इन्दौर वाले संस्करण में पहले समश्लोकी अनुवाद, सस्कृत टीका की २ प्रतियाँ विनयसागरजी को भेजी थीं
उसके बाद उसकी हिन्दी टीका (१-१ पद्य के नीचे) छपी और टीकाकार गुणविनय के सम्बन्ध मे प्रस्तावना में
है और अन्त मे मूल संस्कृत काव्य छपा है। समश्नोकी विशेष प्रकाश डाला था। इस संस्करण मे गुणविनय की
पद्यानुवाद मे चौथा चरण नेमिदूत वाला सस्कृत में ही अज्ञात टीका सर्व प्रथम प्रकाशित हुई, जोकि सउत १६४४
ज्यो का त्यो रख दिया है, अर्थात् उसका हिन्दीकरण में बीकानेर में रची गई थी। इस मस्करण की दूपगे।
नही किया गया। मेरी गय मे. उसका भी हिन्दी पद्यानुविशेषता यह थी कि इससे भैसगेड गढ (मेवाड) के
वाद कर दिया जाता तो अच्छा होता, अन्यथा हिन्दी महाराज श्री हिम्मत महजी साहित्य रजन' का किया ।
टीका के विना उन पक्तियो को समझना हिन्दी पाठको हुमा नेमिदून का हिन्दी पद्यानुवाद भी प्रकाशित हुप्रा के लिए कठिन ही होता। था। यह पद्यानुवाद समश्लोकी तो नही, पर महत्त्वपूर्ण इौर वाले नये संस्करण के प्रकाशकीय मे श्री है। चडावत वा के ठाकुर एक जनेतर कवि हिम्मत- बाबलाल जी पाटोदी ने, जो प्रकाशन समिति के मत्री है, मिहनी ने नेमिदून का पद्यानुवाद करके अवश्य ही एक कवि विक्रम के प्रागे 'मनिवर' और 'मनिधी' विशेषण उल्लेखनीय काय किया है। इस पद्यानुवाद का पहला लगा दिए है और हिन्दी टीकाकार भंवरलाल भट्ट ने भी और अन्तिम पद्य पाठको की जानकारी के लिए नीचे कवि को जैन मुनि लिख दिया है, वह ठीक नहीं है। उद्धत किया जा रहा है।
वास्तव में कवि विक्रम मुनि नहीं थे, विद्वान् श्रावक ही 'जीवत्राण मे दतचित्त हो, बन्धुवर्ग परिजन भव-भोग।
थे। उन्होने स्पष्ट रूप से अपने को सांगण का पुत्र ही उग्रसेन तनुजा को भी तज, लिया उन्होने विचल योग | लिखा है । अतः उसे मुनि बतलाना भ्रमोत्पादक है। श्री मन्नेमिनाथ प्रभो वह, मोक्ष मार्ग में करके प्रेम।
पूज्य उपाध्याय विद्यानन्दजी की प्रेरणा से स्थापित छायावाले रम्य रामगिरी, पर जा रहे धार दृढ़ नेम ॥" । इन्दौर की श्रीवीर-निर्वाण-प्रथ प्रकाशन समिति ने वास्तव अन्तिम पद्य
में बहुत महत्वपूर्ण कार्य किया है। उसके सभी प्रकाशन 'मेदपाट भू के अन्तर्गत, दुर्ग एक प्रत्यात ललाम । सुन्दर एव उपयागी है। विशेषतः वीरेन्द्रकुमार जैन का चर्मणपनी नदी-तट गिरि पर भेसरोडगढ़ जिसका नाम। महाकाव्यात्मक उपन्यास 'मनुत्तरयोगी तीर्थकर महावीर' किया यहाँ पर 'हिम्मत' ने यह सस्कृत से भाषा अनुवाद । (तान खण्ड) जैमा वितीय नथ प्रकाशित करके समिति काव्य रसिक पढ करके इसको लेवें काव्य कला का स्वाद ॥ न एक कीर्तिमान स्थापित कर दिया है। २५०० वें वीर
प्रस्तुत पद्यानुवाद के पद्यानुवाद कवि ठाकुर हिम्मत- निर्वाण महोत्सव की यह महत्त्वपूर्ण उपलब्धि मानी सिंहजी ने महिषासुर वध और शनिश्चर कथा नामक २ जायेगी। 000 नाहटा भवन, बीकानेर (राज.)