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जैन साहित्य और शिल्प में रामकवा
मर्यादा पुरुोत्तम राम प्राचीन काल से ही हिन्दू देवसमूह के लोकप्रिय देवता रहे हैं। हिन्दू देवकुल के अतिरिक्त राम को जैन एवं बौद्ध देवकुलो मे भी विशेष प्रतिष्ठा प्राप्त थी। राम, लक्ष्मण और सीता के जीवन की विस्तृत विवेचना करने वाली वाल्मीकि की रामायण सम्पूर्ण भारतीय साहित्य के इतिहास में सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रन्थ रही है । परवर्ती युगो मे भी रामकथा से सम्बन्धित अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थ रचे गए। महाभारत और पुराणो के अतिरिक्त भास, कालिदास, भवभूति और राजशेखर जैसे रचनाकारो ने भी अपने ग्रन्थो में रामकथा के प्रेरक प्रसंगों के उद्धरण दिए है। अद्भुतरामायण, अध्यात्मरामायण और आनन्दरामायण जैस ग्रंथ सीधे रामकपा से सम्बन्धित है। विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में भी रामयण की रचना की गई थी, जिनमे तुलसीकृत रामचरितमानस सर्व प्रमुख है। हिन्दुओ के अतिरिक्त बौद्धी एवं जैन ने भी रामकथा सम्बन्धी ग्रन्थों की रचना की थी। बौद्ध ग्रंथ दशरथ जातक मूलतः रामकथा से ही सम्बन्धित है ।
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कृष्ण, गणेश, लक्ष्मी एवं सरस्वती जैसे हिन्दू देवताओं के समान ही राम को भी हिन्दू देवकुल से जन देवकुल मे ग्रहण किया गया है। जैन ग्रंथों में राम और कृष्ण को विशेष प्रतिष्ठा प्रदान की गई थी इसकी पुष्टि उक्त देवों पर स्वतन्त्र जैन ग्रन्थो की रचना से होती है । उत्तराव्ययनसूत्र, अंतगडदसाओं विपशिलाका पुरुषचरित्र और हरिवंशपुराण जैसे जैन ग्रंथ कृष्ण के जीवनचरित्र के विस्तृत निरूपण से सम्बन्धित है। राम-लक्ष्मण और कृष्ण-बलदेव के प्रति प्रारम्भ से ही जनमानस का पूज्य भाव रहा है और इन्हें अवतारपुरुष स्वीकार किया गया है। जैनों किनान्यताओं के सम्मान की दृष्टि । ने ही उक्त देवों को अपनी परम्परा में सम्मिलित किया है। यही नहीं, जैन ग्रन्थों में रावण और जरासंघ जैसे
श्री मारुतिनन्दन तिवारी
अत्याचारी व्यक्तित्वों को भी सम्मानित स्थान प्रदान किया गया था। इन अनाक को अपने देवन में सम्मिलित कर जैनो ने सम्भवत. अनार्य जातियों की भावनाओं की रक्षा की थी। रामकथा के तीन प्रमुख चरित्रों राम, लक्ष्मण और रावण को जैन देवकुल के तिरसठ शलाकाgrat की सूची में सम्मिलित किया गया है। राम (पद्म), लक्ष्मण और रावण क्रमश. आठवें बलदेव, वासुदेव और प्रतिवामुदेव रहे हैं।
रामकथा से सम्बन्धित जैन ग्रंथों की रचना तीसरी शती ई० से निरन्तर सोलहवी शती ई० तक होती रही है। रामकथा के निरूपण से सम्बन्धित कुछ प्रमुख जैन ग्रंथ विमलसूरिकृत पउमचरिय ( तीगरी शती ई० ), संघदासकृत वमुदेवहिडी (५०६ ई०) रविषेणकृत पद्मपुराण (६७८ ई०), स्वयंभूकृत पउमचरिउ (आठवी शती ई०) शीलांकाचार्यकृत चउपन्न महापुरिमचरिय
( ८६८ ई०), गुणभद्रकृत उत्तरपुराण (नवी शती ई०), पुष्पदन्तकृत महापुराण (६६५ ई०), भद्रेश्वरकृत कहावली (ग्यारहवी शती ई०), हेमचन्द्रकृत त्रिष्टिशलाकापुरुषचरित्र (बारहवी शती ई० ) एव देवविजयगणिकृत रामचरित ( २५९६ ई०) रहे है । स्पष्ट है कि विमलमूरिकृत पउमचरिय ही रामकथा से सम्बन्धित प्राचीनतम जैन कृति है । जैन परम्परा में निरूपित रामकथा की कुछ मुख्य बातें निम्नलिखित है:
अयोध्या के इक्ष्वाकु शासक दगर के राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुध्न नाम के चार पुत्र थे । राम का विवाह विदेह के शासक जनक की पुत्री सीता के साथ हुआ था। लंका के शासक रावण ने सीता के सौन्दर्य के वशीभूत होकर उसका अपहरण किया। इससे राम अत्यन्त दुखी हुए सीता की खोज के कार्य के अन्तर्गत ही राम-लक्ष्मण की भेंट वानरराज सुग्रीव से हुई। राम