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________________ नेमिदूत काव्य के पूर्ववर्ती संस्करण 0 श्री अगरचन्द नाहटा, बीकानेर जैन विद्वानों ने संस्कृत साहित्य की बहुत बड़ो सेवा सम्वत् १९८६ में लक्ष्मण भट्टजी ने किया । वास्तव मे यह की है । छोटे-मोटे हजारों ग्रन्थ एवं स्तोत्र प्रादि फुटकर बहुत कठिन कार्य है और हिन्दी टोका द्वारा यह ग्रन्थ काव्य जैनों के लिखे हुए, संस्कृत में आज भी प्राप्त हैं, पर सब के समझने योग्य हो गया है। पर मालूम होता है जैन संस्कृत साहित्य का उल्लेख संस्कृत साहित्य के इति- कि लेखक, प्रकाशक आदि को यह जानकारी नहीं थी कि हास में बहुत ही कम होता रहा । हर्ष है कि इधर कई ऐसे इससे पहले भी इस काव्य का एक अच्छा संस्करण, संस्कृत ग्रन्थ प्रकाशित हुए हैं जिनसे विशाल और महत्त्वपूर्ण जैन टीका और हिन्दी पद्यानुवाद के साथ, करीब ३० वर्ष पहले संस्कृत साहित्य की काफी जानकारी प्रकाश में पायी है। प्रकाशित हो चुका है। इसलिए इस लेख मे प्रावश्यक गुजराती मे प्रो० हीरालाल कापडिया ने 'जैन सस्कत जानकारी दी जा रही है। साहित्य का इतिहास' लिखा, वह ३ भागों में प्रकाशित विक्रम कवि का नेमिदूत काफी वर्ष पहले काव्य हो चुका है। डा० नेमिचन्द्र जैन का भी एक महत्त्वपूर्ण माला के द्वितीय गुच्छक में मर्व प्रथम प्रकाशित हा ग्रन्थ हिन्दी में भारतीय ज्ञानपीठ' से प्रकाशित हया है। था। स्वर्गीय पडित उदयलालजी कासलीवाल ने इसका जैन सस्कृत महाकाव्यों पर जनेतर विद्वानों ने शोध हिन्दी अनुवाद भी किया और वह भी प्रकाशित हो चुका प्रबन्ध लिखे है, जिनमे से डा. श्यामसुन्दर दीक्षित के है। सन् १९१६ मे, अर्थात् ६० वर्ष पहले स्वर्गीय शोध प्रबन्ध का एक भाग जयपूर से छप भी चकाई। नाथरामजी प्रेमी ने जैन हितैषी पत्रिका में 'विक्रम का डा० सत्यव्रत का शोध प्रबन्ध अभी अप्रकाशित है। जैन नेमि चरित्र' लेख प्रकाशित किया था जो उनके जैन स्तोत्र साहित्य आदि पर भी शोध कार्य हा है, पर वे साहित्य पोर इतिहास' नामक ग्रन्थ में सुलभ है। उन्होंने शोध प्रबन्ध अभी तक प्रकाशित नही हुए। प्रभी भनेको विक्रम कवि को दिगम्बर पाम्नाय का श्रावक व १४ वी शोध प्रधान पथ संस्कत साहित्य पर लिखे जाने अपेक्षित है। शताब्दी का अनुमानित किया था। वगे उन्होने स्वयं लिख जैन विद्वानों ने पाद प्रति काव्य भी काफी बनाये है, दिया था कि “यों काव्य के विषय से तो कवि श्वेताम्बर जिनके सम्बन्ध में काफी वर्ष पहले मेरा खोजपूर्ण लेख या दिगम्बर किस सम्प्रदाय का था, इसका कुछ पता 'जैन सिद्धात भास्कार' मे प्रकाशित हपा था। ऐसे काव्यों नही चलता, क्योकि काव्य मे जो कुछ कहा गया है वह मे मेघदूत के चतुर्थ पाद पूर्ति रूप विक्रम कवि का नेमिदूत सम्प्रदाय की सीमा से बाहर है।" प्रेमीजी ने खभात के काव्य भी उल्लेखनीय है। वीर निर्वाण ग्रन्थ प्रकाशन सवत् १३५८ के शिलालेख में जो सागण का नाम प्राया है, समिति, इन्दौर से नेमिदूत काव्य का नया सस्करण प्रभी उसे नेमिदूत के कर्सा विक्रम का पिता सागण मान लिया मई ७६ में ही प्रकाशित हुप्रा है जिसकी प्रति मझे हाल है।'हुकार वंश' को हूंबड़ और सिंहपुरवश को नरसिंहपुरा ही में प्राप्त हुई है। प्रकाशन सुन्दर है। इस में मूल मान लिया, पर ये तीनो ही बातें उनके अनुमान पर ही काव्य के अतिरिक्त स्वर्गीय लक्ष्मण अमरजी भट्ट का प्राधारित समझनी चाहिये, मेरी राय मे ये वास्तविक समश्लोकी हिन्दी अनुवाद और उन्हीं के पोते भंवरलाल नहीं हैं। कवि ने तो अतिमपद्य में अपने को केवल सागण भट्ट 'मधुप' का हिन्दी अनुवाद या टीका भी प्रकाशित का पुत्र विक्रम ही बतलाया है । इसमे अधिक जाति, स्थान है। पूज्य उपाध्याय विद्यानन्द जी की प्रेरणा से प्रकाशित या रचनाकाल का कोई उल्लेख नही किया । यह संस्करण अवश्य ही बहुत उपयोगी और महत्त्व का नेमिदत का एक उल्नेखनीय मंकरण विनयमागरजी है। समश्लोकी अनुवाद और टीका नेतर विद्वानों की ने संवत २००४ में सम्पादित करके श्री हिन्दी जैनागम रचना है। इसे प्रकाश में लाना अवश्य ही निर्वाण समिति प्रकाशक सुमति कार्यालय, जैन प्रेप, कोटा द्वारा सवत् का एक उल्लेखनीय व उत्तम कार्य है। समश्लोकी भनुवाद २००५ में प्रकाशित करवाया था, जिसका मूल्य रु०१-५०
SR No.538030
Book TitleAnekant 1977 Book 30 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1977
Total Pages189
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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