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________________ ४०, वर्ष १० कि. कर चल बसी । पत्नी के इस वियोग ने पंडित जी को से वे ग्रन्थ और भी अधिक उपयोगी बन गये हैं। झकझोर दिया। बाद में यह बालिका भी चल बसी। समीक्षक: भापके साहित्यिक जीवन का प्रारम्भ (वीर सेवा मन्दिर) समन्तभरमाधम-२१ अप्रैल, ग्रंथ परीक्षा मोर समीक्षा से ही होता है। ग्रंथ परीक्षा के १९२६ को दिल्ली में मुख्तार श्री ने समन्तभद्रा- दो भागों का प्रकाशन १९१६ मे हमा था। श्रम की स्थापना की और यहीं से 'अनेकान्त' मासिक इतिहासकार : विभिन्न ऐतिहासिक शोष निबन्ध पत्रिका का प्रकाशन मारम्भ किया। बाद में यही प्राधम लिखकर मापने अपनी सच्ची इतिहासकार की प्रतिभा वीर सेवा मन्दिर में परिवर्तित होकर दिल्ली से सरसावा का परिचय दिया है। ऐसे निबन्धों में, 'वीर शासन की चला गया और एक शोध संस्थान के रूप में जैन साहित्य उत्पत्ति और स्थान', 'श्रुतावतार कथा', 'तत्त्वार्याधिगम की विभिन्न शोष प्रवृत्तियों का प्रकाशन और अनुसंधान भाष्य और उनके सूत्र', 'कार्तिकेयानुप्रेक्षा मोर 'स्वामिकरने लगा। मुख्तार साहब ने अपनी समस्त सम्पत्ति का कुमार' प्रादि विशेष उल्लेखनीय है। ट्रस्ट कर दिया और उस ट्रस्ट से वीर सेवा मन्दिर अपनी सम्पादक : प्राचार्य श्री ने स्वयम्भू स्तोत्र, युक्त्यनुबहुमुखी प्रवृत्तियों का संचालन करने लगा। शासन, देवागम, अध्यात्म रहस्य, तत्वानुशासन, समाधि पूज्यपाद पं० गणेशप्रसाद जी वर्णी, ५० नाथूराम जी तन्त्र, पुरातन जैन वाक्यसूची, जैन ग्रन्थ प्रशस्ति संग्रह प्रेमी, बाबू सूरजभान वकील, पं० चन्दाबाई मारा, बाबू (प्रथम भाग), समन्तभद्र भारती प्रादि ग्रंथों का सम्पा राजकृष्ण जी दिल्ली, साहू शान्ति प्रसाद जी प्रादि प्रमुख दन किया और उनकी महत्वपूर्ण प्रस्तावनायें लिखी, जो व्यक्तियों ने मुख्तार सा. के अगाध पांडित्य और ज्ञान- अत्यन्त उपयोगी एवं ज्ञानवर्धक है। साधना की भूरि-भूरि प्रशसा की। बाबू छोटेलाल जी जैन पत्रकार : श्री मुख्तार साहब प्रथम कोटि के ने तो कलकत्ते में 'वीर शासन महोत्सव' के अवसर पर सम्पादक रहे । मापका पत्रकार जीवन साप्ताहिक पत्र उन्हें वाङमयाचार्य की उपाधि से विभूषित किया। 'जैन गजट' के सम्पादन से प्रारम्भ हमा। समाज ने कवि : मुख्तार साहब की काव्य रचनामों का संग्रह मापको सम्पादन कला की मुक्त कंठ से प्रशंसा की। 'युग भारती' के नाम से है। आपकी सबसे प्रसिद्ध पौर नौ वर्ष तक इसका सफल सम्पादन करने के बाद श्री मौलिक-रचना 'मेरी भावना' तो वस्तुतः 'राष्ट्रीय भावना' नाथरामजी प्रेमी ने पापको "जैन हितैषी" का सम्पादक नियुक्त किया, जिसका सम्पादन उन्होंने सन् १९३१ तक ही बन गई है। निबन्धकार : प्रापके निबन्धो का संग्रह 'युगबीर किया। मापने वीर सेवा मन्दिर के मुख पत्र 'भनेकान्त' निबन्धावली' के नाम से दो खण्डों में प्राप्त है, जिसमें का सम्पादन एवं प्रकाशन भी प्रारम्भ किया जो जैन समाज सुधारात्मक एवं गवेषणात्मक निबन्ध है। इसके शोध और समीक्षा विषयक प्रामाणिक एवं सर्वश्रेष्ठ अलावा मापने 'जैन साहित्य और इतिहास पर विशद पत्रिका है। प्रकाश' नामक ग्रंथ प्रकाशित किया, जिसमें ३२ निबन्ध मापका सारा जीवन वस्तुतः चिरन्तन साधना, हैं। मापके निबन्धों में सामयिक, राष्ट्रीय, प्राचारमूलक, मध्यवसाय एवं तपस्या का जीवन रहा है। भाप वस्तुतः भक्तिपरक, दार्शनिक एवं जीवनशोधक निबन्ध हैं जो जितेन्द्रिय, सयमी, निष्ठावान् एवं ज्ञान तपस्वी थे। पापके सम्पूर्ण व्यक्तित्व को पालोकित करते हैं। भाप पाप प्रकाण्ड ज्ञानी, दृढ़ प्रव्यवसायी एव महान साहिप्य एक सामाजिक क्रान्तिद्रष्टा थे। साधक थे। पापका व्यक्तित्व उदास था। मापने लोक सेवा एवं साहित्य सेवा द्वारा ऐसे शानालोक की सष्टि भाष्यकार: मुख्तार साहब केवल मौलिक लेखक की है जो युगयुगान्तर तक जैन परम्परा को पालोकित ही नहीं एक मेधावी भाष्यकार भी थे। मापने मा० 000 समन्तभद्र की प्रायः समस्त कृतियों पर ग्रन्थ लिखे है। २. राम नगर, भाष्य ग्रंथों में लिखित पापकी महत्वपूर्ण प्रस्तावनामों मई दिल्ली-५५
SR No.538030
Book TitleAnekant 1977 Book 30 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1977
Total Pages189
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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