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________________ युगसृष्टा को साहित्य साधना श्री गोकुलप्रसाद जैन, नई दिल्ली प्राचार्य श्री जुगल किशोर मुख्तार साहित्य-तपस्वी, किया तथा संस्कृत में बढ़ती अभिरुचि के कारण माप स्वाध्याय योगी, समाज सुधारक, कुरीतियो एवं जैन शास्त्रों के स्वाध्याय के प्रति उन्मुख हुए। अंधविश्वासों के निराकर्ता एव यथार्थ मार्षमार्ग के प्रणेता आपने स्थानीय अग्रेजी स्कूल से नौवीं कक्षा तक थे। अापमे सत्य के प्रति अपूर्व निष्ठा थी तथा प्रापने विधिवत प्रध्ययन कर स्वाध्यायी छात्र के रूप से मैट्रिक जिनवाणी की रक्षा का जीवनव्रत लिया था। प्रातन जैन परीक्षा दी। इतिहास, साहित्य और पुरातत्व को गुफापों, मन्दिरो और जीवन संघर्ष सरस्वती भण्डारों की घुटन से बाहर निकाल कर उमे आपने मैट्रिक परीक्षा पास करने के पश्चात् स्वयं जन-जन के लिए सुलभ बनाया। जीविका निर्वाह करने का विचार किया, क्योकि अभिभट्रारक प्रायः अपनी यशोगाथा फैलाने की भावना भावकों पर निर्भर रहना अापने प्रकर्मण्यता समझी। से वं कवित्व प्रदर्शन के हेतु विभिन्न प्राचीन ग्रन्थों के प्रतः १८६६ मे मापने प्रान्तिक सभा की ओर से उपअंश चराकर, भानुमती का कुनबा तैयार कर देते थे। देशक का कार्य प्रारम्भ किया। परन्तु दो मास के बाद प० जुगलकिशोर जी मुख्तार ने इस साहित्यक चोरी को यह विचार पाया कि धर्मप्रचार जैसा पवित्र कार्य बेतन पकडा प्रौर दिन-रात अथक परिश्रम कर के ग्रन्थ-परीक्षा कर न किया जाए। मत: उपदेशक-वृत्ति से त्यागपत्र देकर के नाम से एक शोध-खोज ग्रथ प्रकाशित करवाया, जिससे स्वतन्त्र वृत्ति के रूप में प्रापने मुख्तार-गीरी प्रारम्भ की। समाज को वास्तविकता का पता चला। इस वृत्ति मे आपने सदा न्याय और सत्य का प्राधार वस्तृत: मुख्तार साहब का जीवन प्रारम्भ से ही लिया। लगभग १० वर्ष मुख्तारी करके प्रापने धन और यश प्रादर्श, साधनापूर्ण एव त्यागमय रहा । सरसावा (जिला दोनों अजित किये । वैसे तो पापका अधिकांश समय जैन सहारनपुर) मे मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी, वि० स० साहित्य, जैन कला एवं जैन पुरातत्त्व के अध्ययन-अनु१९३४ को प्रापका जन्म हुआ। मापके पिता चौधरी सन्धान मे व्यतीत होता ही था, किन्तु बाद मे प्राप नत्थूमल जैन एव माता भुई देवी थी। शिव से ही इस मुख्तारगीरी छोड़कर मात्र ज्ञान साधना में लीन हो बालक मे ऐसी चुम्बकीय शक्ति थी कि माता-पिता, पास- गये। पड़ोस तथा सभी सम्पर्की व्यक्तियों को यह अनुरंजित किए पारिवारिक जीवन रहता था। श्री 'मुख्तार' साहब के कार्यों में उनकी धर्मपत्नी बालक जुगल किशोर ने पांच वर्ष की आयु में उर्दू बड़ा योगदान करती थी। प्रापने पत्नी की यथार्थ सेवा फारसी की शिक्षा प्रारम्भ की। शिक्षा दीक्षा में वह बालक प्राप्त कर अपना बौद्धिक विकास किया । पापके मौलवी साहब की दृष्टि मे दूसरा ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ७ अक्तूबर, १८६६ में एक कन्या का जन्म हुमा किन्तु सन् था। उसकी विलक्षण प्रतिभा देवी-शक्ति-सम्पन्न लगती १९०७ मे फैली प्लेग की बीमारी से ८ वर्ष की यह थी। उसका दूसरा विशेष गुण था उसकी तर्कणा शक्ति। बालिका कालकवलित हो गयी। सन् १९१७ में प्रापको मध्ययन के अलावा वह खेल-कूद के भी प्रेमी थे। दूसरी बेटी का सौभाग्य प्राप्त हुआ, परन्तु ठीक सवा प्रापने सरसावा में हकीम श्री उग्रसेन जी द्वारा तीन माह पश्चात् पाप पर दूसरा वचपात हुमा पौर स्थापित पाठशाला में हिन्दी और संस्कृत का अध्ययन पच्चीस वर्षों की जीवन-संगिनी मापका साथ छोड़
SR No.538030
Book TitleAnekant 1977 Book 30 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1977
Total Pages189
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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