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________________ मत्तारोन्यक्तित्व और कृतित्व सामाजिक और व्यक्तिगत बुराइयों से बचे रहते थे। मैंने अथवा कोई कैसा ही भय या लालच देने प्रादे, उन्हें कभी दूसरों की निन्दा करते हुए नहीं देखा। वे तो भी न्यायमार्ग से मेरा कभी न पर गिने पावे । कर्मठ अध्यवसायी पौर साहित्य तपस्वी थे, साहित्य x x x x सूजन के प्रति उनकी अद्भुत लगन थी। यद्यपि उनके सुखी रहें सब जीव जगत के कोई कभी न घबरावे, जीवन में रूक्षता और कृपणता दोनों का सामंजस्य था, वे बैर-पाप अभिमान छोड़ जग नित्य नये मंगल गावे । एक पैसा भी फिजूल खर्च नही करते थे। यद्वातद्वा खर्च घर-घर चर्चा रहे धर्म को दुष्कृत दुष्कर हो जायें, करना उनकी प्रकृति के विरुद्ध था, वे उपयोगिता को देख ज्ञान चरित उन्नति कर अपना मनुज जन्म फल सबपावे ।। कर खर्च करते थे । वे मितव्ययी थे और जो खर्च करते थे, मुख्तार साहब ने 'मेरी भावना' के पद्यो में अनेक उसका पाई-पाई का पूरा हिसाब भी खत थे। राष्ट्र एवं पार्षग्रन्थों का सार भर दिया है। पद्यों में जहां शब्द देश के नेताओं के प्रति उनकी महनी प्रास्था थी। महात्मा योजना उत्तम है वहां भाव भी उच्च और रमणीय है। गांधी के निधन पर 'गांधी स्मारक निधि' के लिए मापने मुख्तार साहब केवल गद्य लेखक हो नहीं थे किन्त स्वयक सा एक रुपया दिया और पाच-पाच दिन का कवि भी थे। पापकी कविता हिन्दी और रास्त दोनो और अपने विद्वानो से भी दिलवाया था। काग्रेस के प्रति भाषाओं में मिलती है। कवि भावुक होते है और वे भी उनकी अच्छी निष्ठा थी। वे मूत कातकर चर्या मघ कविता की उड़ान में अपने को भूल जाते है। पर मुख्तार को देते और बदले मे खादी लेकर कपड़ा बनवाते थे। माहब की गणना उन कवियों में नही होती; क्योकि कृतित्व: उनकी कविता केवल कल्पना पर प्राधारित नहीं है। उनका रहन-सहन सादा था। अधिकतर वह गाढे मुख्तार साहब की कवितामों का प्राधार सस्कृत के वे का प्रयोग किया करते थे। राष्ट्र की सुरक्षा में भी उन्होंने पद्य है जो विभिन्न प्राचार्यों द्वारा रचे गये है। घटना. राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद जी के पास एक सौ रुपया भेजा क्रम की कविता 'अज सम्बोधन' है जिसमें बध्य भमि को था । वे साहित्य रसिक थे और उसमे हो रचे-पचे रहते जाते बकरे का चित्रण किया। सजीव भाव समाया हुआ है। आपकी हिन्दी की कवि. उन्होने सन् १९१६ मे 'मेरी भावना' नाम की एक तानों में मानव धर्म वाली कविता में, अछूतोद्धार को विता लिखी. जो राष्ट्रीय गीत के रूप में पढी जाती है। भावना का सजीव चित्रण है- उसमे बतलाया गया है कि यह कविता बड़ी लोकप्रिय हुई। इसके विविध भाषाप्रो मल के स्पर्श से कोई अछूत नहीं होता। गल-मुत्र साफ में अनुवादित अनेक संस्करण निकले । लाखो प्रतिया करने का कार्य तो मानव अपने जीवन काल में कभी न छपी। उसके कारण लाखो व्यक्ति मुख्तार साहब के कभी करता ही है। फिर बेचारे इन अछ्नों को ही मलपरिचय में पाये और वे सदा के लिए अमर बन गये। मूत्र उठाने के कारण अपवित्र क्यों माना जाता है---- पाठकों को जानकारी के लिए मेरी भावना के तीन पद्य गर्भवास और जन्म समय में कौन नही अस्पृश्य हमा? नीचे दिये गये है : कौन मलों से भरा नहीं किसने मल-मत्र न साफ किया? मैत्री भाव जगत में मेरा, सब जीवों से नित्य रहे, किसे अछुत जन्म से तब फिर कहना उचित बताते हो? दीन-दु.खी जीवों पर मेरे उर से करुणा स्रोत बहे। तिरस्कार भंगी-चमार का करते क्यों न लजाते हो ।।४।। दुर्जन कर-कुमारतों पर क्षोभ नहीं मुझको प्रावे, संस्कृत की कविता, 'मदीया द्रव्य पूजा', वीर स्तोत्र और साम्यभाव रखू मैं उन पर ऐसी परिणति हो जावे ॥ समन्तभद्र स्तोत्र प्रादि हैं। समन्तभद्र स्तोत्र की कविता xxxx का एक पद्य नीचे दिया जाता हैकोई बुरा कहो या अच्छा, लक्ष्मी पावे या आवे, वैवज्ञ-माग्त्रिक भिषग्वर-तान्त्रिको यः लाखों वर्षों तक जीऊ या मृत्यु पाज हो मा जावे । सारस्वतं सकलसिद्धिगत च यस्य ।
SR No.538030
Book TitleAnekant 1977 Book 30 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1977
Total Pages189
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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