SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुख्तार पी : व्यक्तित्व और कृतित्व उनसे समान में कांति तो जरूर हुई किन्तु वह अस्थायी किया गया था और जिसका प्रकाशन सन् १९२५ में हमा रही। सामाजिक लेखों में, जैनियों में दया का प्रभाव, था। सन् १९२५ से पहले किसी भी जैन विद्वान ने किसी जैनियों का प्रत्याचार, नौकरों से पूजा कराना, जैनी भी प्राचार्य के सम्बन्ध में ऐसा खोजपूर्ण इतिहास प्रन्थ कौन हो सकता है, जाति-पंचायतों का दण्ड-विधान, लिखा हो, यह मुझे ज्ञात नहीं, जैसा कि मुख्तार साहब ने जातिभेद पर प्राचार्य अमितगति, विवाह समद्देश मादि स्वामी समन्तभद्र का इतिहास प्रन्थ लिखा। मुख्तार लेख समाज में जागृति लाने वाले हैं। इन लेखों में उस साहब को रत्नकरण्ड-श्रावकाचार की प्रस्तावना पौर समय की कुत्सित प्रवृत्तियों की मालोचना करते हुए समन्तभा के इतिहास को लिखने में पूरे दो वर्ष का समय समाज में नव जीवन लाने के लिये प्राडम्बरयुक्त लगा । प्रस्तावना और इतिहास दोनों ही शोधपूर्ण हैं। प्रवृत्तियों को अनुचित बतलाया तथा यह भी लिखा कि उसके लिए मुख्तार साहब ने अनेक ग्रन्यों का अध्ययन हृदय की शुद्धि के बिना बाह्म प्रवृत्तियां मिथ्या हैं, किया। दिल्ली की प्राकिलाजिकल डिपार्टमेंट की लाइब्ररी निस्सार है, उनका जीवन में कुछ भी उपयोग नहीं। से एपिनाफिया इंडिका मौर कर्णाटिका, अनेक जरनल पत्र सम्पादक : मौर कनियम के मादि पुरातस्व-विषयक प्रन्थों का मुख्तार साहब सन् १९०७ में 'जैन गजट' के सम्पादक मालोडन कर अनेक उपयोगी नोट्स लिये मोर सरसावा बनाये गये। उस समय के पापके सम्पादकीय लेख देखने में बैठकर बड़े भारी परिश्रम से समन्तभद्र का इतिहास से पता चलता है कि उस समय माप में लेखन कला और लिखा । इसमें लेखक ने प्राचार्य समन्तभद्र के मुनि जीवन सम्पादन कला का विकास हो रहा था। उसके बाद वे पर अच्छा प्रकाश डाला। भस्मक व्याधि के समय 'जैन हितैषी' के सम्पादक बनाये गए। उस समय आपकी आपात्काल में उन्होंने अपनी साधुचर्या का किस कठोरता बिचार धारा प्रौढ़ और लेखों की भाषा भी परिमाजित थी और दृढ़ता से पालन किया और रोगोपशांति के बाद तथा विचारों में गहनता और ऐतिहासिकता प्रा गई थी। जैन शासन की सर्वोदयी धारा को कैसे प्रवाहित किया और उस समय आपने 'पुरानी बातों की खोज' शीर्षक भगवान महावीर के शासन की हजार गुणी वृद्धि की, से अनेक लेख लिखे । सन् १९२९ में पापने दिल्ली के मादि का विस्तृत वर्णन है। साथ में, उनकी महत्वपर्ण करोलबाग में 'समन्तभद्राधम' की स्थापना की और 'अने. कृतियों का भी परिचय कराते हुए उनके समयादि पर कान' पत्र को जन्म देकर उसका सम्पादन-प्रकाशन किया। विस्तृत प्रकाश डाला गया है। प्राचार्य समन्तभद्र का प्रापकी सम्पादन कला निराली है। वह अपनी ही समय विक्रम को दूसरी-तीसरी शताब्दी है। इस इतिहास विशेषता रखती है। 'अनेकान्त' के प्रथम वर्ष में प्रकाशित के प्रकाशित होने के बाद भी वे उनके सम्बन्ध मे अन्वेषण पापके लेख ऐतिहासिक दृष्टि से वस्तु तत्त्व के विवेचक करते हुए लिखते रहे हैं। समन्तभद्र पर उनकी बड़ी पौर मल-भ्रांतियों के उन्मूलक थे। उस समय माप की मास्था जो यौ। समन्तभद्र का यह इतिहास प्रश्य अप्राप्य ऐतिहासिक विचारधारा प्रौढ़ बन गई थी। 'प्रनेकान्त' में है। प्रत. इसका पुनः प्रकाशन होना चाहिए, और मापके अनेक शोषपूर्ण लेख प्रकाशित हुए। कितने ही लेख परिशिष्ट में समन्तभद्र के सम्बन्ध में जो सामग्री प्रकाश मे समीक्षात्मक, उत्तरात्मक, दार्शनिकौर विचारात्मक लिखे माई है उसे यथा स्थान दिया जाना चाहिए। गये। पाप के ये सब लेख पुस्तकाकार प्रकाशित हो व्यक्तित्व: चुके हैं । पाठकों को उनका अध्ययन कर अपने ज्ञान की मुख्तार साहव का व्यक्तित्व महान है। उनमे सहिष्णुता वृद्धि करनी चाहिये। और कार्य क्षमता अधिक है। वे श्रम करने मे जितने दक्ष इतिहास लेखन: मोर उत्साही थे, विरोधियों के विरोध सहने या पचाने में मुख्तार साहब ने प्राचार्य समन्तभद्र का इतिहास उतने ही सक्षम थे । सन् १९१० मे खतौली के दस्सो पौर खा, जो पं. नाथूराम जी प्रेमी, बम्बईको समर्पित बीसों के पूजाधिकार-विषयक ऐतिहासिक मुकदमे मे
SR No.538030
Book TitleAnekant 1977 Book 30 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1977
Total Pages189
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy