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________________ ४, बर्ष २९, कि अनेकान्त के दक्षिण कल पर कुसुमपुर नामक श्रेष्ठपुर बनवाने का नया मम्बन चलाया था और उमको मत्यु बद्ध सं० २५ में उल्लेख है। 'पाटल' शब्द शाश्वत कोश के अनुसार 'कुसुम' रथो (लीजेन्डस ग्राफ दी बर्मीज बुद्ध, पृ० ११३) । का पर्याय है । अतएव कुसुमपुर कालान्तर में पाटलपुत्र या इन बौद्ध दन्तकवानों की प्रामाणिकता की पुष्टि कुणिक पाटलिपुत्र कहलाया। अश्वघोष के बुद्धचरित (सर्ग २२/३) की अभिलेखयक्त मति में होती है । यह मूति में प्रजातशज़ के मंत्री वर्षकार द्वारा पाटलि ग्राम में एक मथग के पाम परखम में मिली थी और आजकल किले के निर्माण करवाने का उल्लेख है। अजातशत्रु ने मथग संग्रहालय में है। भास ने 'प्रतिमा' नाटक में बद्ध के परिनिर्वाण के पश्चात् १५ वर्ष राज्य किया या। यह सकेत दिया है कि प्राचीन काल मे नमर के बाहर देवतत्पश्चात् दर्शक (प्रजात शत्रु के भ्राता ने २५ वर्ष प्रोर कुलो में राजा को मृत्यु हो जाने पर उनकी प्रतिमा बनवाउदायी ने २३ वर्ष राज्य किया। उदायी के बाद बौद्ध ग्रयो कर खड़ी कर दी जाती थी। इस प्रतिमा में नीचे की के अनुसार भनिरुद्ध तथा मुण्ड ने क्रमश. ६ वर्ष तथा ८ और यह अभिलेख है :-- वर्ष गज्य किया। पुराणो मे केवल मुख्य मुख्य राजागो निभादप्रमेनि अजातशत्र गजश्री इणिक सेवासि के नाम तथा शासन-काल दिए हुए है। काल-गणना सही नागो मागधानां राजा"प्रर्थात् मगध देश का राजा प्रजात-- रखने के लिए महत्त्व-हीन गजामा के शासन-काल बाद शत्र. श्री कणिक, जो निर्वाण को प्राप्त हो गया। वाले गजा के काल मे जोड़ दिए गए है (देखि डा। श्री काशी प्रमाद जायसवाल ने बिहार-उड़ीसा के रिसर्च मनकड कृत पौराणिक क्रोनोलाजी) । इस प्रकार बद्ध के जग्नल, खण्ड ५ १६१६) मे शिशुनागवशीय राजाओ ६. वर्ष बाद नन्दिवर्धन राजा बना । गिलगिट से प्राप्त की प्रतिभानो के सम्बन्ध में विस्तृत लेख लिखा है। उदायी विनयपिटक के हस्तलेख में लिखा है तथा नन्दिवर्धन की प्रतिमाए भी पटना मे मिल गयी है। "बोधिसत्त्वस्य जन्मकालसमये चतुर्महानगरेषु चत्वा- एक प्रतिमा गगा में से निकाली गयी थी, दूसरी प्रतिमा रो महाराजा अभवन् । तद्यथा राजगृहे महापद्मस्य पुत्र, अगमकुमां के पास मिली थो। ये प्रब पटना के संग्रहालय श्रावस्त्या ब्रहमदत्तस्य पुत्र' । उज्जपन्या राज्ञो अनन्तनेमे में है। डा. जायसवाल ने इन पर खदे मस्पष्ट लेखो का पुत्रः। कौशाम्ब्या राज्ञः शतानीकस्य पुत्र ।" पढकर यह निश्चय किया कि एक मति प्रज उदायी की है इमसे स्पष्ट है कि बुद्ध के जन्म काल के समय मगध में और दूसरी सिररहित मूनि व्रात्य नन्दिवर्धन की है (जे. महापद्म प्रथम (क्षत्रीजा, क्षेमजित्, हेमजित) और महारानी बी० प्रो० आर० एस०, खण्ड ५)। प्रजातशत्रु ने बिम्बा से उतान्न पुत्र बिम्बमार राजाथा । बिम्बसार बद्ध- अग, वज्जि, काशी और मल्ल महाजनपदो को जीतकर चरित (११/२) के अनुमार हयंक कुल का था। इसको मगध मे मिला लिया था। उदायी ने पालक तथा कुमार इतिहास में श्रेण्य या श्रेणिक कहा गया है। मज्झिम- (अवनिवर्धन) के मरने के बाद अवन्ति को मगध राज्य मे निकाय (१० १३१) मे इसको सेनिय' लिखा है . "रजा मिला लिया था। विविध तीर्थकल्प मे भी पालक का मागधेन से नियेन बिम्बिमारे नाति' । इसका पुत्र प्रजातशत्र राज्य ६० बर्ष माना गया है। उदायी के पुत्र नन्दिवर्धन था जिसको कुणिक, देवानाप्रिय, अशोकचन्द्र प्रादि नामो से ने पाटलिपुत्र के अतिरिक्त वैशाली को भी अपनी दूसरी मोपपस्तिक-सूत्र (प्रकरण १८,१६), कथाकोश, विविधतीर्थ राजधानी बना रखा था। सुत्त-निपात में इसका उल्लेख कल्प (० २२,६५) और मावश्यक-णि मे स्मरण किया मिलता है । नन्दिवर्धन मूलतः जैन था,अतएव ब्राह्मण ग्रन्थों गया है । महावंश के अनुसार, अजातशत्रु ने प्रथम वौद्ध में उसकी प्रशमा नही मिली । वस्तुत: नन्दिवर्धन (नन्दसंगीति का प्रबन्ध किया था (म०३/१५-१६), परन्तु राजा) धर्मसहिष्ण राजा था। उसने अपने पितामह की मजातशत्र बौद्ध नहीं था, वह जैन था । बिगौडेट महोदय तरह देवानाप्रिय तथा प्रशोकविरुद अपने नाम के साथ ने बर्मा में प्रचलित बौद्ध दन्त-कथामो के प्राधार पर लिखा जोड़ा था । सम्पूर्ण भारत मे पाए गए स्तम्भ-लेख, शिलाहै कि अजातशत्रु ने गौतम बुद्ध के निर्वाण के पश्चात् एक लेख, पचमार्क मिक्के (नन्दी चिह्नयुक्त) इसी राजा के
SR No.538029
Book TitleAnekant 1976 Book 29 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1976
Total Pages181
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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