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________________ देवानांप्रिय प्रियदर्शी अशोकराज कौन था ? डा० सत्यपाल गुप्त, एम. ए., पी-एच. डी. लखनऊ सम्पूर्ण भारतवर्ष मे विखरे हुए बहुत से स्तम्भ-लेख भाषण में मेगास्थनीज़ के सैडाकोटस को चन्द्रगुप्त मौर्य से तथा शिलालेख मिले है जिनमे देवानाप्रिय प्रियदर्शी राजा भभिन्न माना था। इस अद्भुत खोज के एक वर्ष बाद का उल्लेख है। गुजर्रा तथा मास्की से प्राप्त लघ शिला- अप्रैल, १९७४ मे उनका देहावसान हो गया। उन्होंने लेखों में देवानां प्रिय अशोकराज नाम देखकर विदवानों जिसको एक सम्भावना माना था, भाज लगभग १७० वर्ष ने इन समस्त अभिलेखों को चन्द्रगुप्त मौर्य के पौत्र अशोक बाद भी इतिहासकार उसी निराधार सम्भावना को दोहमौर्य का मान लिया है। इन अभिलेखों में ऐसी कोई सामग्री राते पा रहे है । उस समय तक यह ज्ञात नहीं था कि नही मिलती जिसके प्राधार पर इनका सम्बन्ध मौर्य वंश गुप्तवंश में भी कोई चन्द्रगुप्त नाम का राजा हुमा था। से जोड़ा जा सके । ये लेख बहुत दिनो तक नहीं पढे जा सैडाकोटम चन्द्रगुप्त का द्योतक तो अवश्य है परन्तु यह सके थे, परन्तु सबसे पहले १८३८ ई० में प्रिसेप ने गिरनार चन्द्रगुप्त मौर्य न होकर गुप्तवंश का चन्द्र गुप्त प्रथम है। के दिवतीय शिलालेख को पढ़ा और प्रकाशित किया। भारतीय इतिहास की खोज प्रत्यन्त कष्टसाध्य है और जल्दप्रारम्भ मे उसका मत यह था कि ये लेख लंका के देवानां बाजी में किसी सत्य निष्कर्ष पर नही पहुंचा जा सकता। प्रिय तिष्य के है। परन्तु बाद मे नागार्जुन पहाड़ियों में रुद्रदामा के जनागढ़ लेख से इतना तो स्पष्ट है कि (गया से १५ मील उत्तर) दशरथ मौर्य के गृहालेखों को " मौर्य वंश मे अशोक नाम का राजा हा था (प्रशोकस्य , देखकर तथा दीपवश में प्रशोक नाम के साथ प्रियदर्शन मौर्यस्य कृते यवनराज तुषास्फेनाधिष्ठाय...) और काठिलगा देखकर उसने उनको प्रशोक मौर्य का माना। इन गुहाओं यावाड़ उसके राज्य के अन्तर्गत था, परन्तु अन्य कोई ऐसे का दान राजा दशरथ दवारा प्राजीवक सम्प्रदाय के लिए प्रमाण अभिलेख प्रादि के रुप में नहीं मिले है जिनसे उसके किया गया था। गत १४० वर्षों में भारतीय तथा पाश्चात्य कार्यकलापों पर प्रकाश पड़े। बौद्ध साहित्य के अध्ययन विद्वानों ने अनेक खोजपूर्ण लेख तथा ग्रन्थ लिखे है, स्थान से तथा फाहियान और ह्वेनसांग आदि चीनी यात्रियों के स्थान पर खुदाइयाँ हुई है, सस्कृत के अनेक प्राचीन विवरण से ज्ञात होता है कि भारतीय इतिहास मे दो प्रशोक हस्तलिखित ग्रन्थों का प्रकाशन हुप्रा है। प्रतएव १८३८ राजा हुए है। ह्वेनसांग ने लिखा है : "तथागत के निर्वाण के ई० की तुलना में प्राज बहुत अधिक ऐतिहासिक सामग्री १०० वर्ष पश्चात् एक अशोक नामक राजा हुमा जो उपलब्ध है, जिससे इन स्तम्भ-लेखों तथा शिलालेखों के विम्बसार का प्रपौत्र था। उसने राजगृहसे लाकर पाटलिपुत्र वास्तविक निर्माता का पता चल सकता है । सन् १९४७ को राजधानी बनाया था।" उसने पाटलिपुत्र के निर्माण ई० में भारत के स्वतंत्र होने के पश्चात् अनुसन्धान क्षेत्र में के सम्बन्ध में बदध की भविष्यवाणी का भी उल्लेख एक नवीन राष्ट्रीय चेतना का उदय हुमा है और प्राजकल किया है। इससे इतना स्पष्ट है कि हनसाग के काल में इतिहासकार उपलब्ध सामग्री के आधार पर भारत का भारतवासी बौद्ध यह मानते थे कि सबसे पहले अशोक ने वास्तविक नवीन इतिहास तैयार करने में सलग्न है। पाटलिपुत्र को राजधानी बनाया था। वह बिम्बसार का भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि प्रपौत्र था, प्रजातशत्रु का पौत्र भौर गौतम बुद्ध के भारतवर्ष में एक नाम वाले अनेक राजा हए हैं। सर निर्वाण के १०० वर्ष पश्चात् राजा बना था। वायु पुराण विलियम जोन्स ने २८ फरवरी, १९७३६० के अपने प्रभि- में उदायी द्वारा अपने शासनकाल के चतुर्थ वर्ष मे गंगा
SR No.538029
Book TitleAnekant 1976 Book 29 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1976
Total Pages181
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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