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देवानाप्रिय प्रियदर्शी प्रशोकराज कौन था ? है। यह दुख का विषय है कि इतने प्रतापी, धर्मसहिष्ण, ' चक्रवर्ती राजा को भारतीयो ने पूर्णत: भुला दिया।
लौग्यि नवन्दगढ़ की खुदाइयों मे ३ फुट से १२ फुट की गहराई पर मानव अस्थियों तथा कोयलो के साथ पृथिवी की एक सोने की पत्तर पर बनी प्रतिमा पायी गयी थी (ए. एम० प्रार० १६०६-७) । इम स्थल पर टोले मे गहा एक लकडी का स्तम्भ भी मिला था। ऊपरी भाग दीमक ने खा लिया था, परन्तु निचला भाग ठीक था। इस स्तम्भ की ऊचाई ४० फीट रही होगी। प्राचीन काल मे गजामो के मरने के पश्चात् उनकी अवशिष्ट अस्थियो पर स्तूप तथा स्तम्भ बनवाने की वैदिक प्रथा थी। ऋग्वेद (म० १०,१०/१०) 'मे उपत्ते स्तम्भाना पृथिवीत्वन् परिमा ' मत्र मिलता है। दूसरे मत्र (१३) में भी मतक के प्रति कहा गया है ."अपनी माता पृथ्वी के पाम जानो। यह म जो ऊन सदृश कोमल है, तुम्हारी विनाश से रक्षा करे।" श्री टी०लाख का मत है कि लोरिय परराज और लौरिय नवन्दगढ के स्तूप प्राक मौर्यकाल के है। नवन्दगढ शब्द म्वय नव (नवीन) नन्दो की स्मृति दिलाता है। नवन्दगर मूल नाम था और अब भ्रम से उमी को नन्दनगढ कहा जा रहा है जो मूल शब्द नवनन्दगढ का अपभ्रश रूपान्तर है। लौरिय अरगज तथा लौग्यि नवन्दगढ मे प्रियदर्शी ने प्रस्तर स्तम्भ क्यो खड़े करवाए ? इसका स्पष्टीकरण यही हो सकता है कि ये स्थल नन्द राजाप्रो के श्मशान-स्थन थे और प्राचीन युग मे यहाँ पर यज्जि गणराज्य की गजधानी थी। लोग्यि नवन्दगढ के स्तम्भ का शीर्ष कमलाकार है जिस पर मिह उत्तर को मुख किए खडा हुआ है। इम . स्तम्भ पर भी टॉपरा स्तम्भ मदृश छः स्तम्भ लेख उत्कीर्ण
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खाग्वेल का हाथी-गुम्फा लेख प्रियदर्शी के सन्दर्भ में अत्यन्त महत्वपूर्ण है । यह प्राचीन अभिलेख भुवनेश्वर के निकट उदयगिरि पहाड़ी की हाथी-मुंफा (चित्र पृ० ७ पर)
NEPAL नामक गुफा में खुदा हुमा है। इस प्रशस्ति मे खारवेल के .. बंश, जीवन और शासन को घटनामो का सिलसिलेवार इलाहाबाद के किले में विद्यमान नन्दिवर्धन का स्तम्भ जिस वर्णन दिया हुआ है । खारवेल ने अपने शासन-काल के पर उसके प्रभिलेख खुदे हुए हैं। इस स्तम्भ पर गुप्त पांचवे वर्ष मे तनसुली से अपनी राजधानी तक, ३०० वर्ष सम्राट् समुद्रगुप्त को प्रशस्ति भी सस्कृत भाषा में खुदी पूर्व नन्द राजा द्वारा बनवायी गयी नहर का जीर्णोद्धार है (भारतीय पुरातत्व विभाग के सौजन्य से)।