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________________ ६४ वर्ष २६, कि० १ की विशालकाय गोम्मटेश्वर की मूर्तियो, बाबू के मन्दिरों चीन के कीर्तिस्तम्भ तथा प्राचार्य समन्तभद्र सिद्ध सेन, पूज्यवाद, कलंक देव, विद्यानन्द, योग, जिनसे सोमदेव, माणिक्यनन्दि, प्रभाचन्द्र, हेमचन्द्र, हरिभद्र सूरि एवं प्राचार्य नेमिचन्द्र रचित साहित्य एवं दर्शन के अमूल्य ग्रन्थ रत्नों को जन्म दे सका । विदेशों में जैन धर्म का प्रसार 'महावंश' नामक बौद्ध ग्रन्थ [प्रो० व्हूलर, इण्डियन सेक्ट ग्राफ दी जंन्स, पृष्ठ २७] से प्रकट है कि ४३७ ई० पूर्व में सिंहलद्वीप के राजा ने अपनी राजधानी अनिरुद्धपुर में जैन मन्दिर और जैन मठ बनवाये थे । वे चार सौ वर्ष के लगभग रहे । भगवान् महावीर के समय से ईसा की पहली सदी तक मध्य एशिया अफगानिस्तान, ईरान, इराक, फिलिस्तीन, सीरिया आदि के साथ साथमध्य गागर के निकटवर्ती यूनान मिश्र, इथोपिया और एबीगीनिया आदि देशो मे जैन साधु देव सम्पर्क करते रहे। यूनानी लेखकों के कथनानुसार पागोरस पैरहो. डायजिनेस जैसे यूनानी तस्यवेत्ता न भारत झाकर जैन साधुमों से शिक्षा-दीक्षा ग्रहण की थी। मौर्य सम्राट् अशोक के पोते सम्राट् सम्प्रति ने अनेक जैन साधुयों को अनार्य देशों में जैन धर्म के प्रचारार्थ भेजा था। जैसे सिकन्दर के साथ कल्याण साधु गये थे । देखिये (i) हिस्टोरिकल ब्लोग्स डा० मिताचरण था। (ii) 'विश्व वाणी', अप्रैल सन् १९४२, पृष्ठ ४६४ / (iii) 'एहियाटिक रिसचेंज' वाल्यूम ३-६, सर विलियम जोन्स | (iv) 'एन्सीयन्ट इण्डिया' मेवेस्थनीज । (v) 'दिगम्वरत्व और दिगम्बर मुनि', स्व० डा० कामताप्रसाद जैन । जैन धर्म और ईसाई धर्म ईसाई धर्म श्रमण संस्कृति का ही यहूदी सस्करण माना जाता है। इतिहास बेताबों के अनुसार, महात्मा ईसा कुमार काल मे भारत प्राये थे। बहुत दिनो तक वहाँ रहकर जंग श्रमण और बौद्ध भिक्षुओं की संगति का लाभ लेकर नेपाल व हिमालय केमार्ग से ईरान चले गये थे यहां । से स्वदेश पहुंच कर उन्होंने "धारमा परमात्मा की एकता" और "मर दिव्य जीवन" का उपदेश दिया। यह उपदेश यहूदी संस्कृति से सम्बंधित न होकर भारत की धमण संस्कृति से सति है। [देखिए पण्डित सुन्दरलाल जो लिखित "हजरत ईसा और ईसा धर्म ] । बनेका जैन धर्म और बौद्ध धर्म : जैन ग्रन्थों के अनुसार, भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा मे एक साधु पिहिता ने जैन दीक्षा छोड़कर बौद्ध धर्म चलाया था। बौद्ध एवं अन्य साहित्य से स्पष्ट है कि महात्मा बुद्ध ने साधु जीवन के प्रथम वर्षो में अन्य सम्प्रदायोक्त धाचरण किया था। बौद्ध साहित्य के अनेक शब्द जैनसाहित्य से लिए गये है। उपदेश भी जैन उपदेश के समान ही हैं। (देखिये 'जैनबोद्ध तत्वज्ञान' ब्रह्म० शीतल प्रसाद ) । जैन धर्म और हिन्दू धर्म वैदिक धर्म का परिवर्तित रूप ही प्राजकल हिन्दू धर्म कहलाता है। यह बतानों मे जैन धर्म का ऋणी है । लोकमान्य तिलक के सन् १९०४ में बड़ौदा मे दिये गये एक भाषण के अनुसार वेदोक्त यज्ञादि की हिसा जैन धर्म के कारण बन्द हुई है। पुरातत्वज्ञ श्री श्रीभाजी की 'मध्य कालीन भारतीय सस्कृत, पृष्ठ ३५ के अनुसार भगवान महावीर उत्तरकाल में हिन्दू स्मृतिकारी तथा पुराणकारी ने जितना पाचार सम्बन्धी साहित्य लिया उसमे नरमेध, प्रश्वमेध' पशुबलि तथा मास माहार को लोक विरुद्ध होने से त्याज्य बताया है । देखिए - याज्ञवल्क्य स्मृति, १ - १५६, 'वृहन्नारदीय पुराण', २२, १२, १६ । 'मध्यकालीन भारतीय संस्कृति' के अनुसार, २४ तीर्थकरों के समान २४ अवतारों की कल्पना हुई। क्रियाकाण्डी माहित्य के स्थान पर प्राध्यात्मिक एवं भक्तिपरक ग्रन्थो, गीता, रामायण योगवाशिष्ठ, ब्रह्मसूत्र आदि को प्राधान्य मिला इन्द्र व धग्निप्रादि वैदिक देवताओ के स्थान पर राम एवं कृष्ण जैसे ऐतिहासिक कर्मठ राजनेताओं को महिमा प्राप्त हुई। जैन समाज पर भी हिन्दू समाज के अनेक रीति रिवाजों का प्रभाव है । भाषा, कला और साहित्य : जैन धर्म जब जब जिस-जिस देश में प्रचलित रहा, वह उन्ही की बोलियों में उपदेश देता रहा। भगवान् महावीर ने अपना उपदेश लोकभाषा में दिया, सस्कृत में नहीं जैन । धर्म के अनुसार ईश्वर की कोई एक भाषा नहीं है हिन्दी की उत्पत्ति तथा विकास का शान जैन अपभ्रंश साहित्य के ज्ञान अध्ययन से भली-भांति प्राप्त किया जा सकता है । जैन साहित्य मे धार्मिक, नैतिक एवं दार्शनिक प्रत्यों के प्रतिरिक्त मन्त्र तन्त्र, प्रायुर्वेद, वनस्पति, वास्तु, मूर्ति, चित्र, शिल्प एवं संगीत कला के ग्रंथों से जैन साहित्य भरपूर है। 00
SR No.538029
Book TitleAnekant 1976 Book 29 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1976
Total Pages181
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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