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________________ साहित्य समीक्षा भगवान महावीर स्मति-प्रन्थ-प्रधान संपादक-डा. ज्योति प्रसाद जैन, अन्य संपादक-पं० लाशचन्द्र शास्त्री, जवाहर लोढ़ा, शरद कुमार, डा. मोहनलाल मेहता । प्रकाशक : श्री महावीर निर्वाण समिति, उत्तर प्रदेश, लखनऊ । भाकार क्राउन १/८, सजिल्द पृष्ठ लगभग ४५०, मूल्य पचास रुपये, १६७५ ।। प्रस्तुत ग्रन्थ मात खण्डों में विभाजित है। प्रथम खण्ड मे "भगवान महावीर की सूक्तियो' का सानुवाद संकलन है। द्वितीय खण्ड में 'भगवान महावीर की स्तुति, उनसे सम्बन्धित स्तोत्र-स्तवन' इत्यादि कालक्रमानुसार दिए गए हैं। ततीय खण्ड के अन्तर्गत 'भगवान महावीर का युग, जीवन और देन' है। इस खण्ड मे उदभट मनीषियों के शोधपूर्ण लेख है, जिनमें से उपाध्याय मुनि श्री विद्यानद जी, प्राचार्य श्री तुलसी, सन्त विनोबा भावे, प्राचार्य श्री रजनीश, श्री पगरचन्द नाहटा, श्री दलसुख मालवणिया प्रादि के लेख विशेष उल्लेखनीय है। चतुर्थ खण्ड मे 'जैन धर्म, दर्शन और संस्कृति' विषयक विवेचन है जिसमें सर्वश्री पं० कैलाश चन्द शास्त्री, डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन, डॉ० दरबारी लाल कोठिया, मुनि श्री नथमल, डॉ. प्रभाकर माचवे मादि १६ विद्वानो के लेख है। पचम खण्ड 'शाकाहार' के विषय में है। छठे खण्ड मे 'उत्तर प्रदेश मे जैन धर्म' सम्बन्धी सामग्री विद्यमान है, जिसमें वहाँ के तीर्थो, मन्दिरों, प्राचीन शिलालेखों, चित्रकलाकृतियो, साहित्य एवं वर्तमान सस्थानों का वर्णन किया गया है। सातवें खण्ड (अन्तिम खण्ड) मे 'महावीर निर्वाण समिति, उत्तर प्रदेश के गठन, कार्यकलाप एवं उपलब्धियों विषयक विवरण है। इसी क्रम में मूर्तियों, मायागपटों, शिलालेखों आदि के अनेकानेक चित्र मुद्रित है। मूर्तियों, पायागपटो तथा शिलालेखों के काल प्रादि अनिर्दिष्ट है, इन्हे दिया जाना चाहिए था। इस बहुबिध सामग्री से ग्रन्य की महत्ता तो बढ़ी ही है वह अधिक उपादेय, सकलनीय और प्रवलोकनीय भी बन गया है। कुल मिलाकर यह स्मृति प्रथ सर्वथा सुरुचिपूर्ण एव सुसंगत सामग्री में सम्पन्न है।। सम्पादक एव प्रकाशक इस सर्वांगपूर्ण प्रकाशन के लिए बधाई के पात्र है। -गोकुल प्रसाद जैन (सम्पादक) वीर निर्वाण संवत् तथा कलियुग संवत, महाभारत संवत या यधिष्ठिर संवत वीर निर्वाण संवत् से अधिक प्राचीन केवल एक और सवत् का उल्लेख मिलता है जो महाभारत काल अथवा युधिष्ठिर कान अथवा कलियुग मवन के नाम से ज्ञात हग्रा है। इसका उल्लेख बीजापुर जिले में म्धिन ऐहोने नामक ग्राम के एक प्राचीन जैन मन्दिर के शिलालेख में पाया जाता है (डा०रा०ब पाडेय : हिस्टॉ० एण्ड लिट. इस्क्रिप्सन न० ५.) । उक्त शिलालेख के अनुसार, उस जैन मन्दिर का निर्माण रवितीति ने उस समय कराया जब महाभारत युद्ध से लेकर कलिकाल के ३.५ वर्ष तथा शक राजामो के काल, अर्थात शक सवत के ५५६ वर्ष व्यतीन हो गये थे; अर्थात् महाभारत युद्ध ईसा पूर्व ३१०१ मे हुमा था। बृहत्संहिता (१३, ३) और राजतरगिणी में युधिष्ठिर का राज्यकाल २३४६ ईसा पूर्व माना गया है। माधुनिक विद्वानो के लिए महाभारत काल की उपर्युत दोनो अवधिया विचारणीय हैं। पीटर पुराणों मे उल्लिखित राजवशावलियो से गणना कर इस काल को ई०पू० ६५० वर्ष सिद्ध करते है। डा० पुमलकर ने इसे ई० पू० १४०० स्थिर किया है। किन्तु राजवंशावलियो के साथ गणना करते हुए विद्वानों ने अनुमानों का पर्याप्त महारा लिया है। पौराणिक अशावलियों का साक्ष्य-विष्णु पुराण मे तीन वशानियां ऐसी है जिनमे महाभारत काल से वर्धमान तीर्थकर तक प्रविच्छिन्न रूप से नरेशों के पिता-पुत्र क्रम से नाम मिलन है। ये वश है कुरू, इक्ष्वाकु और मागध । इन वशावलियों का विशद विवेचन करने पर महाभारत का काल १००० वर्ष ई० पूर्व मानना उचित प्रतीत होता है । तब ऐहोले जैन मन्दिर के शिलालेख के काल मे २१०१ वष की अतिशयोक्ति प्रश्न चिह्न उपस्थित करती है। यह शिलालेख अपुष्ट तो है, किन्तु प्राचीन काल की महत्वपूर्ण युगस्थापक घटना का संकेतचिह्न भी है। -निज्म एजेन: गहीरालाल जैन
SR No.538029
Book TitleAnekant 1976 Book 29 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1976
Total Pages181
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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