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भगवान महावीर : एक नवीन दृष्टिकोण
दुःखी को देख कर हमारे परिणामों मैं अत्यन्त दुख व्या- से रहित हैं जो यह बालक प्राप्त करेगा। जैसे कोई गरीब प्त होता है परन्तु उस पात्म-ज्ञानी को, जो लोग पुण्य के पैसे वाले को देख कर, कोई पुत्रहीना पुत्रवती स्त्री को फल को भोग रहे है, संसारिक दृष्टि से सुखी है, ऐसे व्य- देख कर, कोई भूखा भोजन के थाल को देख कर, जैसा क्तियों को देख कर वैसा दुःख व्याप्त हो जाता है। महो! तृषित हो जाता है, वैसे ही देवराज इन्द्र उस पात्मज्ञानी यह संसारी प्राणी 'पर' वस्तु मे, शरीरादि मे अपनापना को देख कर भाव विभोर होकर उसके चरणों में झुक गया मान कर किस प्रकार से तृष्णा की आग में झन्झापात ले और अपने जन्म को सफल मानने लगा। रहा है, किस प्रकार से 'पर' पदार्थ को ग्रहण करने को स्वयं बुद्ध बालक बड़ा होने लगा। जैसे-जैसे उसकी हाप्टा मार रहा है। इसे यह भी नहीं मालूम है कि उम्र बढ़ती थी वैसे-वैसे धन और वैभव भी बढ़ता जाता जिसको प्राप्त कर मैं सुखी होना चाहता हूं वह मृग-मरी- था। प्रजा सुखी थी। परन्तु बालक की दृष्टि तो अपने चिका है। इन जीवों का दुःख कैसे दूर हो? जब इस निज वैभव पर लगी हुई थी। वह घर में रहता हुमा भी प्रकार के अत्यन्त दु.खरूप परिणाम हुए, उस समय उस घर में नही था, राज्य वैमव मे रहता हुमा सबसे उदासीन मात्मा में कुछ ऐसे ही कर्मों का सम्बन्ध हुमा जिससे वह था। कभी निज स्वभाव का अवलोकन करता था, तब अगले भव में लाखों जीवों के कल्याण का कारण बना, पाता था, मैं तो ज्ञान-दर्शन का पिण्ड, एक अकेला चैतन्य लाखों जीव उसके उपदेश से प्रात्म-कल्याण में लगे। , मेरा अपना तो कुछ नही, जो कुछ है, वह तो संयोगी
इस प्रकार वह अत्यन्त पुण्यात्मा जीव माज से २५०० है। कभी जब निज स्वभाव के अनुभव से हटता पाता तो साल पहले बिहार की वैशाली नगरी में राजा सिद्धार्थ की पाता कि यह प्रात्मा विकार में पड़ी है, पर-वश होकर रानी त्रिशला के गर्भ मे स्वर्ग से पाता है। जब ऐसा यह प्रात्मा राग-द्वेषादि को प्राप्त हो रही है। ज्यादातर पुण्यात्मा जीव गर्भ मे आता है तो सारे देश में, सब जीवों जो विशिष्ट पुरुष होते है उनके बचपन मे खास घटना को, स्वतः निराकुलता प्राप्त होती है, दुर्भिक्ष दूर हो जाते नहीं होती। वे उस क्षण की प्रतीक्षा करते रहते है जब वे हैं, जमीन धन-धान्य से पूरित हो जाती है, सारा देश सुखी उसे देने में समर्थ हो जाते है जिसे देने को उनका जन्म हो जाता है, शत्रुओं का भय दूर हो जाता है । जब वह हा है। इसलिए महावीर के बचपन का जीवन घटनामों बालक उत्पन्न होता है तो उस पुण्यात्मा का दर्शन से शन्य है। करने, राजा सिद्धार्थ को बधाई देने, राजा सिद्धार्थ के कोई पूछ सकता है कि महावीर का जन्म क्षत्रिय के भाग्य की सराहना करने, देश-देश के राजा और ज्ञानीजन, घर क्यों हुमा और किसी गरीब के घर क्यों नहीं हया। यहां तक कि देवता गण भी, पाते है । उनके जन्म का इसका उत्तर है कि क्षत्रिय जीतने वाला होता है, विजेता प्रति उत्सव करते हैं। परम प्रारम-ज्ञानी देवताओं का होता है। इसलिए जीतने वाले के भीतर लत्रियत्व होना राजा इन्द्र अपने अवधि ज्ञान के द्वारा जानता है कि यही ही चाहिए और राजा के घर इसलिए हुप्रा कि जो इस बालक थोड़े ही काल में संयम का सम्राट बन कर, अपनी संसार को नही जीते, वह उस संसार को क्या जीतेगा। आत्मा की मलिनता तथा रूप राग-द्वेष मोह का नाश कर पहले इस लोक को जीतेगा तब उस लोक को जीतने पर परम मानन्द को, परम ज्ञान को प्राप्त होकर परमात्म-पद दष्टि जाएगी। को प्राप्त होगा जहाँ से फिर जन्म-मरण नहीं धारण होता। महावीर ने विवाह किया कि नहीं, इस पर तत्व रूप से ऐसा जान कर वह प्रति तृषित नेत्रो के द्वारा, अनिमेष तो विचार करने की जरूरत ही नहीं है। भगवान महावीर नेत्रो से, उस बालक को देखता है और देखता-देखता नहीं जैसा व्यक्ति जो किसी जड़ पदार्थ पर भी प्रभुत्व स्थापित अपाता। वह ज्ञानी इन्द्र विचार करता है कि उस परम नही करना चाहते थे, वे शादी करके स्त्री पर प्रभुत्व क्यों पात्मिक मानन्द का मैं प्यासा हूं, मुझमें ऐसा पुरुषार्थ स्थापित करते । ३६ वर्ष की अवस्था मे वह इतने प्रात्ममहीं कि उस मानन्द को प्राप्त कर सकूँ। मैं विस्तृत वैभव विभोर हो चुके थे कि अब उनके लिए घर में रहना