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________________ भारतीय वाङ्मय को प्राकृत कथा-काव्यों की देन है। इस युग के साहित्य में तान्त्रिक विद्या सिद्ध किये गया है। कुवलयमाला में दिशागमन, मित्र बनाना, नर. जाने के प्रचर वर्णन मिलते है। कापालिक और सिद्धपुरुषों पतिसेवा, मान-प्रमाणो में कुशलता, धातुवाद, मन्त्र देवताके वर्णन प्राय: सभी कथा-ग्रन्थो में मिलते है । देवताओ राधन, सागरतरण, रोहण, ग्वनन, वाणिज्य, नाना प्रकार के समक्ष नरबलि दी जाती थी और मनोकामना की सिद्धि के कर्म, विविध विधाये एव जिल्प प्रर्थ प्राप्ति के उपाय के लिए कुलदेवता के अतिरिक्त नदी, समुद्र प्रादि प्राकृतिक बताये गये है। प्राकृत कथापो में म्यन यात्राग्री और उपादानों की पूजा की जाती थी। नारायण, चडिका, हर, जल-यात्रामों के रोचक वर्णन उपलब्ध होते है। प्रायः रवि, विनायक प्रादि इम युग के प्रमुख उपास्य देवता थे। वणिक ही ऐसी यात्राये किया करते थे। इन वर्णनो में कामदेव और गौरी की पूजा भी प्रचलित थी। मानव-स्वभावो और परम्पराग्रो के विस्तृत वर्णन प्रस्तुत किये गये है। इनमे जग, पवहण, बेडिय, दोष, वेगड, इस कथा साहित्य से स्त्री जीवन का भी अच्छा परि. सिन, भावन, खुरप बोहित्थ इत्यादि विभिन्न जलयानो चय मिलता है। उच्चकूल की बालिकायें भी बालको की सजा का के वर्णन है। इन यात्रामों के पूर्व समुद्र, कुलदेवता, ब्राह्मण भाति प्राचायों के पास जाकर शिक्षा प्राप्त करता था। प्रादि की पूजा की जाती थी तथा अन्य साथियो को भी सहशिक्षा भी प्रचलित थी। विवाह माता-पिता को अनु. साध ले जाया जाता था। चीन, सुवर्णभूमि, यवनद्वीप, मति से होते थे, यद्यपि कन्याओ की स्वीकृति भी ली सिंहलद्वीप, बब्बरकूल, टंकण देश आदि प्रमुख व्यापारिक जाती थी। स्वयंवर और गान्धर्व विवाह भी होते थे। इसी था केन्द्र थे। गाड़ियों द्वारा स्थल-यात्रायें की जाती थी। सपिण्ड विवाह होते थे। विवाह अन्तरधर्मीय होते थे, वर्षा-ऋतु में इन यात्रामो में अनेक कठिनाइयां पाती थी। किन्तु समियो मे विवाह प्रशस्त समझे जाते थे। उच्च मार्गों मे भीलो के और चोरो के पात्रमण हो जाते थे । वर्ग मे बहुविवाह प्रचलित था। विवाह छोटी आयु मे | था। विवाह छाटा प्रायु म राजपुत्र भी इन यात्रामो में सम्मिलित होते थे । व्यापारी किये जाने का उल्लेख है। प्रायः परिपक्व पायु मे ही। लोग शुल्क (चगी) की चोरी भी किया करते थे । धातुविवाह होते रहे होगे क्योंकि कन्यानों के शिक्षित होने वाद भी इस युग मे धनप्राप्ति का सुखद माधन था। ये तथा उनकी सम्मति लिए जाने के अनेक प्रसंग है। लोग नरेन्द्र कहलाते थे। धातूवादी पौषधियो से स्वर्ण विवाह में मनोभावनामो को जानने के लिए चित्र बनाते थे। पृथ्वी को खोद कर गड़ा हा धन निकालना भेजे जाते थे। विवाह के अवसर पर श्वेत रग शुभ भी धन प्राप्ति का साधन था। माना जाता था। प्राकृत के इस विशाल कथा-साहित्य में विविध प्रकार कन्यायों का जन्म दुःखद माना जाता था। स्त्रियों की की कथा वस्तुयें है तथा तदनुरूप ही विविध प्रकार के दशा दयनीय ही थी। सन्देह होने पर पति पत्नी का परि पात्रों के वर्णन प्राप्त होते हैं। राज्यतन्त्र तथा राजा के त्याग कर देते थे। पिता रुष्ट होने पर अपनी कन्या का विवाह अयोग्य वर से कर देते थे। अनेक पतिव्रता और __ जीवन की भनक भी यत्र-तत्र प्राप्त होती है। साध्वी स्त्रियों के इनमें वर्णन है, जिन्होंने अपने साथ-साथ राज्य ज्येष्ठ पुत्र को मिलता था। राजा को अपनी अपने सम्पर्क में प्राने वाले व्यक्तियों के चरित्र को भी पत्नी, पुत्र, मन्त्री तथा सामन्ती की भी परीक्षा उन्नत किया है। धार्मिक प्रेरणा से लिखित होने के कारण करनी पड़ती है। सामन्तों की दशा दयनीय होती थी। इन ग्रन्थों में स्त्री-निन्दा-सूचक वर्णन मिलना स्वाभाविक राजा के राज्य की ओर से विरक्त होने पर मन्त्री उन्हें है। वेश्यामों, दुश्चरित्र तथा कलहप्रिय नारियों के वर्णन हटाकर उनके पुत्रों को राज्य दे देते थे। राजा प्रजा से भी यहां मिलते हैं। माय का छठा भाग कर के रूप मे वसूल करते थे। युद्ध इन ग्रन्थों में अर्थोपार्जन के साधनों का निरूपण करने से पूर्व राजा मन्त्रियो से मन्त्रणा करते थे। गुप्तचरो करते हुए प्राचीन ऋषियों के वचनों को उद्धृत किया की नियुक्ति की जाती थी। राज्याधिकारियों की भी राजा
SR No.538028
Book TitleAnekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1975
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size15 MB
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