________________
भारतीय वाङ्मय को प्राकृत कथा-काव्यों की देन
अवधि में नवोदित राष्ट्रकुट सत्ता से सम्पूर्ण महाराष्ट्र, इसी वंश के वत्सराज ने कन्नौज पर अधिकार किया था, सम्पूर्ण मध्य देश तथा कान्यकुब्ज रहते है। दक्षिण के पर वह ध्रुव से हार गया। बत्सराज के पुत्र नागभट राष्ट्रकट, पश्चिम के प्रतिहार तथा पूर्वीय भारत के पाल द्वितीय ने प्रान्ध्र, सैन्धव, विदर्भ और कलिंग जीता, किन्तु नरेश तीनो सत्ताये कान्यकुब्ज को प्रात्मसात् करना चाहती वह राष्ट्रकट गोविन्द तृतीय से हार गया । ८३३ ई. में थी। ८१५ ई० के पश्चात इसका निर्णय प्रतिहारों के पक्ष नागभट का पुत्र रामभद्र पूर्व में ग्वालियर तक का क्षेत्र में हो जाता है। इस कालखण्ड की सर्वोत्कृष्ट नगरी अधिकृत किये हुए था। रामभद्र के पुत्र भोज द्वारा ३६ कान्यकुब्ज को राजधानी होने का गौरव हर्षवर्द्धन (६०६. ई० मे प्रसारित वाराह-ताम्रपत्र से सूचित होता है कि ६४० ई.) ने प्रदान किया तथा ८वी शती के पूर्वाद्ध मे कान्यकुब्ज, कालिंजर, मण्डल, मध्य एव पूर्वीय राजपूताना यशोवर्मन ने इसकी श्रीवृद्धि की थी।
तथा सम्पूर्ण काठिणवाड इसके राज्य क्षेत्र में थे। शौर्य अरबों का मिन्ध से मध्यदेश तक आक्रमण इस युग में ध्रुव और धर्मपाल के समान इसका नाम लिया जाता की प्रमुख घटना है। इस समय नागभट प्रथम (गुर्जर- है। भाज के पुत्र महेन्द्रपाल (प्रपर नाम निर्भयराज) का प्रतिहार) के ध्वज के नीचे प्रर्बद क्षेत्र से उद्भत वंशों साम्राज्य (८८५-६१० ई०) हिमालय से विन्ध्याचल तक वाले क्षत्रिय-प्रतिहार, चाहमान, गुहिल, चालुक्य भोर सुदृढ़ रूप से अवस्थित था । परमार एकत्रित हुए । अरब आक्रान्ता हटा दिये गये। ७५० ईके निकट दयितविष्णु के पौत्र और वप्यट
राष्ट्रकूटों का मूल स्थान वर्तमान हैदराबाद के अन्त- के पुत्र गोपाल ने पाल राजवश की स्थापना की। इसके र्गत उस्मानाबाद के जिले में अवस्थित लट्रलर गाँव माना विजेता पुत्र धर्मपाल (७७० ई०.८१० ई०) को उत्तराजाता है। इनकी अनेक पीढ़ियाँ बरार के एलिचपूर में पथ का स्वामी कहा गया है। बगाल और बिहार उसके चालूक्यो के सामन्द के रूप में थी। सर्व प्रथम इन्द्र ने शासित क्षेत्र तथा नेपाल और कान्यकुब्ज इसके प्रभाव में चालुक्य राज कन्या का अपहरण किया। इसके पश्चात थे। धर्मपाल का पुत्र देवपाल (८१०.८५० ई.) एक उसका पुत्र दन्तिदुर्ग या दन्तिवर्मन (७७३ ई० मे) उत्तरा- महान विजेता था । देवपाल का उत्तराधिकारी विग्रहपाल धिकारी हया। कृष्ण के पश्चात् उसका पुत्र गोविन्द था, जिसके समय से यह राजवश पतनोन्मुख हो गया। द्वितीय और उसके पश्चात् उसका अनुज ध्रुव उत्तरा- इस समय पुराणों को मान्यता प्राप्त थी। ब्राह्मण धर्म धिकारी हा । ध्रुव के समय राष्ट्रकूट सत्ता का सामना का उत्कर्ष तथा बौद्ध धर्म का ह्रास हो रहा था। इन्ही करने वाली अन्य शक्ति भारत में नहीं थी। ध्रुव का शतियो मे भारतीयो ने वृहत्तर भारत का निर्माण किया। उत्तराधिकारी उसका तृतीय पुत्र गोविन्द तृतीय ७६३ ई० । मनुस्मृति पर मेघातिथि की टीका को विशेष सम्मान में सिंहासन पर आसीन हुअा। इसने राज्य का और मिला । स्त्रियों की स्थिति सम्मानपूर्ण थी। शकराचार्य विस्तार किया।
इसी युग में हुए । तान्त्रिक विधियो ने बौद्ध और ब्राह्मण इसके उपरान्त रवि अमोघवर्ष (८१६ ई० में) राज- धर्म में अनाचार का प्रवेश कराया। साहित्य मे सस्कृत को सिंहासन पर आरूढ़ हुआ । इसका महत्व मान्यखेट (माधु- उच्च स्थान प्राप्त था । इस युग मे साहित्यसर्जना प्रचुर निक मलखेड) को राजधानी बनाने में है। वह स्वय मात्रा में हई । सस्कृत में दृश्य-काव्य तथा साहित्य-शास्त्रो विद्वानो और कवियो का प्राश्रयदाता था। ८६० ई. के का निर्माण अधिक हमा। विशेष रूप से कश्मीर में पश्चात १८ वर्षों तक इसने शान्तिमय जीवन व्यतीन मानिध्य-शास्त्रीय मिटाती पर पथमर्जना की मार किया। इसका राज्यकाल दीर्घ था। इसके पुत्र कृष्ण प्रा गई थी। लोल्लट, वामन, उद्भट तथा शंकुक इसी युग द्वितीय का राज्यकाल ८८० ई० से ६१५ ई० तक है। की देन है।
गुर्जर प्रतिहारो में से नागभट प्रथम ने अरबो को प्राकृत बोली का स्तर पार कर चुकी थी। उसकी परास्त कर पर्याप्त प्रसिद्घि एवं प्रभाव पजित किया। सरलता अन्तर्धान हो गई थी। वह अलकृत तथा कृत्रिम