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जैन कवि कुशललाम का हिन्दी साहित्य को योगदान
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इन्द्रादिक सुर असुरः सदा तुझ सेवा सारः करती हैस्वर्ग मृत्यु पाताल प्रचल तुमचि भाषारः पुत्र उलयो प्रोहित जिसई. हरखई बूढा मांस तिसई । गिर गहर वर विवर नगर पुरवर त्रिक चाचर माधो ले प्रालिंगन बीयई पति प्रणव खोला लिया। प्राप छन्दि पाणंद शक्ति पोले सचराचर शिव संगति युगति बेलि सदा विविध रूप विश्वेश्वरी नगर साह सिणगारियो, सयल लोक प्राणंद कीघउ ॥" कवि कुशललाभ कल्याण करि जय जय जगदीश्वरी।'
जैन कथानक सम्बन्धी रचनाओं में नायक के स्वदेश कवि की अधिकांश प्रेमाख्यानक रचनाओं मे प्राधिका- लौटने पर कोई गुरु उसको धर्म में दीक्षित करता है। रिक कथा का प्रारम्भ प्राय: किसी नि सतान राजा अथवा तत्पश्चात् नायक अपने बड़े पुत्र को राज्यभार सभाल कर पुरोहित द्वारा सन्तान प्राप्ति के प्रयल के वरण से हुआ सन्यासी बनते चित्रित किया जाता है, जबकि जने तर है । देवी-देवता, ऋपि मनि के ग्रामत्रित फल अथवा रचनाओं में मुग्यमय पारिवारिक जीवन के साथ कथा का उनके बताये अनुसार पुष्कर या अन्य पवित्र स्थलो की अन्त है । इस प्रकार जहा जेनेतर रचनायो की कथा-वस्तु 'जात' देने पर उम राजा के यहां पुत्र अथवा पुत्री का सुखान्त है, वहाँ जैन चरित सम्बन्धी रचनायो बी प्रसाजन्म हुमा है। युवा होने पर किसी अपराध पर दान्त । पिता से कहा सुनी होने पर अथवा राजाज्ञा से नायक कुशललाभ ने शृङ्गार, भक्ति, काव्य-शास्त्र, चरित्रको घर छोड़ना पटा है। इसी निष्कासन से नायक के पाख्यान आदि विविध विषयो को लेकर प्रबन्ध, लघु-गीत वैशिष्ट्य के द्वारा इन रचनायो में कवि ने प्रेम-तत्व को छन्द, स्तोत्र प्रादि रचनायें लिखी। इनमें प्रधानता शृंगार उभारा है।
रस की ही है । शान्तरस तो सहायक है एव उद्देश्यपूर्ति के नायक-नायिकामों में प्रेम का आरम्भ प्रत्यक्ष-दर्शन निमित्त ही प्रयुक्त हुआ है। इस सदर्भ में श्री श्रीचन्द और रूप-गण-श्रवण द्वारा होता है। नायक-नायिका मे जैन का कथन है-"जैन काव्य में शाति या शम की प्रमोद्दीपन एव उसके संयोग में तोता, मंत्री-पुत्र, भाट प्रधानता है अवश्य, किन्तु वह प्रारम्भ नही, परिणति है खवास, सखियाँ आदि सहायक हए है । नायिका की प्राप्ति
....... नारी के शृगारी रूप, यौवन एवं तज्जन्य कामोत्ते. के पश्चात जब नायक पन: अपने निवास को लोटता है जना प्रादि का चित्रण इसी कारण जैन कवियो ने बहुत तो मार्ग मे उसका प्रतिनायक के साथ युद्ध दिखलाया सूक्ष्मता से किया है । गया है । नायक विजयी होकर जैसे ही आगे बढ़ता है, इन रसो के अतिरिक्त करुणा, वात्मल्य, वीर, रोड, नायिका की मृत्यु हो जाती है। इसके पश्चात् नायिका को भयानक रसो का भी यथा प्रसग प्रयोग हुआ है। पुनर्जीवन योगी-योगिनी अथवा विद्याधर'" द्वारा प्राप्त होता कवि ने अपनी कृतियो मे अनेक छन्दों का सुन्दर है। घर लौटने पर सभी प्रेमाख्यानक रचनाओ मे नायक प्रयोग किया है। "पिंगल शिरोमणि' नामक अपने रीति के माता-पिता एव उस नगर की प्रजा नायक का स्वागत
(शेष पृष्ठ ५४ पर) ४. राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, उदयपुर, ग्रं० २०६ ८. ढोला मारवणी चौपाई, प्रगड़दत्त रास, भीमसेन हंस छंद ४८. (जगदम्बा छद)।
राज चौपाई।
है. ढोला मारवणी चौपाई, भीमसेन हंसराज चौपाई। ५ माधवानल कामकदला चौपाई , ढोला मारवाणी चौपाई
१०. प्रगड़दत्त रास, माधवानल कामकन्दला, तेजबारतेजसार रास चौपाई इत्यादि रचनाएँ।
रास चौपाई। ६. तेजसार रास, पार्श्वनाथ दशभत्र स्तवन इत्यादि रच- ११. माधवानन काम-कंदला चौपाई-पानन्द काय महोनायें।
दधि, मौ० ७, पृ० १८०, चौपाई ६४४-६४७ । ४. माधवानल कामकन्दला चौपाई, स्थूलिभद्र छतीसी, १२.जैन कथापो का सांस्कृतिक अध्ययन, पृ.१३२अगड़दत्त रास।