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________________ ४२, वर्ष २८, कि० १ अनेकान्त मानते थे। जमादार जी ने तीर्थङ्करों की महिमा और P. 222. डा०-स्मिथ का विश्वास है कि अनेक बार जैन उनके चिह्नों को दिखा कर समझाया कि ये जैन तीर्थङ्करों मूर्तियों को विद्वान भल से बौद्ध मान दैठे है"a | की मूर्तियां है, तब से उन लोगों ने उनको तीर्थरों की फ्लीट साहब इस सत्य की पुष्टि करते हुए कहते हैं कि मूर्तियां स्वीकार की। अनेक विद्वानों की यह धारणा-कि समस्त स्तूप और 'The Temples and Sculptures of South मूर्तियाँ बौद्धों की है, जैन मूर्तियो की पहचान में बाधक रही"bI East Asia' के चित्र नं० ३३, ३४, ३५ तथा ३७, में सप्त Qev. Fr. Heras ने तो से स्पष्ट रूप से स्वीकार सर्पफन युक्त पूर्ण नग्न ध्यानमयो, नासादष्टि मूर्तियो के किया है कि बौद्धों ने विद्वानो को भूल में रखा । चार अलग-अलग चित्र है जिनको पुस्तक के लेखक ने आधुनिक विद्वान अशोक के अपने शिलालेखों के अतिरिक्त थाईलैंड के नेशनल म्यूजियम, बैंकाक मे सुरक्षित बताकर और साक्षी को मानने के लिए तैयार नही और ये शिलालिखा है कि वे महात्मा बुद्ध की है । म० बुद्ध का सर्पफन लेख किसी प्रकार भी अशोक को बौद्ध-धर्मी प्रकट नही युक्त कोई दृष्टान्त नहीं मिलता, हमने पंजाब युनिवर्सिटी करते"। जैन समाज यदि इस प्रकार की ऐतिहासिक लायरी, चंडीगढ़ में इस पुस्तक और इन चित्रों का भली भूलों के सुधार का यत्न करती तो अशोक को आज बौद्धभांति अध्ययन किया। वे स्पष्ट रूप से तेईसवें तीर्थङ्कर धर्मी न कहा जाता। भ. पार्श्वनाथ की है। लेखक जैन धर्म से अनभिज्ञ है। उपसंहार इन चित्रों में से एक खड्गासनस्थ नग्न होने के कारण लेखक अशोक का प्रारम्भिक जीवन में जैन-धर्मी होना तो स्वयं १० २३६ पर लिखता है कि यह म० बुद्ध की प्रतीत बौद्ध विद्वान राईस (Mysore and Coorg पृ. नहीं होती. किसी अन्य धर्म के महात्मा की है। यदि वह १२.१५) और थामस (रायल एशियाटिक सोसायटी जैन धर्म से परिचित होता तो ऐसा कदाचित न लिखता। बोम्बे ब्रांच के जरनल भाग-४, जनवरी १८५५, पृ० प्रज्ञानता के कारण जिस प्रकार जैन मूर्तियो मे बुद्ध मूर्ति प्रकार जन मानया म बुद्ध मूति १५०) स्वीकार करते है। प्रसिद्ध मासिक पत्रिका का म्रम हो जाता है, उसी प्रकार अशोक को जैन धर्मी 'कल्याण' १९५० पृ० ८६४ तथा ५७६ पर अशोक को जैन के स्थान पर बौद्ध धर्मी समझने का भ्रम हो गया। धर्मी बताया गया है किन्तु अशोक का अपना अतिम स्तम्भ ___Conning him जैसे पुरातत्व अधिकारी ने खज- लेख सिद्ध करता है कि वह निश्चित रूप से उसके लिखराहो से प्राप्त जैन मूर्तियो को बौद्ध बताया । डा. वाने तक जैन धर्मी था"। (Fergusson) ने अनेक प्रभावशाली उद्धरणों से सिद्ध उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व मुख्य मन्त्री तथा राजस्थान के किया कि ये जैन मूर्तियां है तब उन्होने भी जैन मूर्तियाँ राज्यपाल डा० सम्पूर्णानन्द ने अपनी रचना 'सम्राट स्वीकार की-Immortal Khajuraho (Asia Press) अशोक' पृ. ३५-३६ पर बताया है कि राग-द्वेष एव वाम 42-A. In some cases, monuments, which are by Buddhist's Chronicles long ag. Moreally Jainas, have been erroneously dis- dern Criticisms can not accept other docu ments referring to Asoka than HIS OWN carded as Buddhists. INSCRIPTIONS and these do pot say -Dr. VA. Smith. Jain Shasan, p. 294. that Asoka embraced the doctrincs of 42-B. The Prejudice that all stups and Stone Gautma Bhuddha." railings must necessarily be Buddhists, has - Journal of Mytbic Society, vol. XIII probably prevented the recognizaticn of p. 276. Jain Structures. 44. Asoka was Certainly a Jain layman. Even -~-Dr, Fleet : Imperial Gazette Vol II. his last of all pillars edict proves that Page 111. his belief in Jainism remained till then. 43. Rev. Hears says, "We have been misleaded -Jain Antiquary, Vol. VII P. 25.
SR No.538028
Book TitleAnekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1975
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size15 MB
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