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________________ महाराज प्रशोक और जनधर्म अशोक का राज्याभिषेक २७२ ई० पू० में हुना था, इम धर्मी होला नीवर जैन धर्म की प्रभावना के इतने अधिक प्रकार प्रशोक और बौद्ध सम्बत की गगति ठीक नही कार्य न करता । बैटती । वीर निर्वाण ५२७ ६० पू० मा था, इसमे से अशोक को बौद्ध धर्मी समझने के कारण : २५६ कम करे ना २७१ ई० पू० गोय का राज्याभिषेक जैन इतिहास से भली प्रकार परिचित न होने के समय बिलकुल ठीक बैठता है। इमसे यह भी स्पष्ट हो कारण जिस प्रकार अशोक के पितामह चन्द्रगुप्त को कुछ जाता है कि इतने अत्यन्त प्राचीन समय में भी जनता तथा विद्वान ब्राह्मण और कुछ बौद्ध धर्मी समझ रहे थे, जिस नरेण वीर सम्वत का उपयोग करते थे। प्रकार महाराजा श्रेणिक बिम्बसार को कुछ विद्वान भ्रम ११. राजतरगिणी पृ०६८ के आधार पर प्रो० थाम्स से बौद्ध धमी समझते थे और जिस प्रकार जैन धर्म को का कहना है कि अशोक ने कश्मीर में जैन धर्म का प्रचार बौद्ध-धर्म से बाद का प्रचलित तथा भ. महावीर को किया। अबुल ने प्राइन ए-अकबरी मे इस सत्य की जैन धर्म का संस्थापक मान बैठे थे; उसी प्रकार की भूल पृष्टि की। से वे अशोक को बौद्ध-धमी समझ रहे है । १४. प्रसिद्ध इतिहासकार थी ज्ञान सुन्दर ने प्राचीन दक्कन कालिज रिसर्च इन्स्टीट्यूट के बुने टिन के जैन इतिहास संग्रह भा० ५ पृ० ४० पर बताया कि अनुसार बडौदा के पुरातत्व विभाग को विजयपुर की अष्टमी, चौदस, दशलक्षण पर्व आदि ५६ जैन पवित्र खदाई से चार प्राचीन घातु-मूर्तियां प्राप्त हुई तो वे पर्वो मे जीव हिंसा का सम्पूर्ण रूप से राजाज्ञा द्वारा रोकना बौद्ध धर्म की बताई गई। डा० संकलियाँ ने उन मुनिया भी अशोक की धार्मिक नीति जैन प्रकट करती है। का ध्यानपूर्वक अध्ययन करके प्रकट किया कि ये बौद्ध धर्म १३. अपने प्राध्यात्मिक सुख की प्राप्ति के लिये की नहीं, अपितु जैन तीर्थङ्करों की है, तब से विद्वान उनको अशोक जैन सिद्धान्तो से अत्यन्त प्रभावित था"। मबद्ध के स्थान पर जैन तीर्थङ्करों की मूर्तियां मानने १४. बाईमवें तीर्थ धर नेमिनाथ की निर्वाण-भमि लगे। गिरनार पर्वत की तलहटी में अशोक ने निर्वाण स्थान को जैन संस्कृति के विस्मृत प्रतीक पृ० ७८ के अनवन्दना करने वाले यात्रियों की सुविधा के लिए सुदर्शन सार ३ अगस्त सन १९७२ को ५० बाबुलाल जमादार नाम की भील खुदवायी। पश्चिमी बंगाल के जिला पुरलिया से १३ मील पर स्पिन १५. हिन्दू पत्रिका कल्याण १६५६ पृ० ७३६ मे पोलिया ग्राम गये तो उन्होंने वहाँ के एक मदिर में कथन है कि अशोक ने अपने राज्यकाल में तीसरे तीर्थदर जिसको वहां के लोग शिव मन्दिर कहते थे, दो बिहान सम्भवनाथ की स्मृति मे उनके चिह्न 'अश्व' युक्त सिक्के मूर्तियाँ देखी। एक पर बैल का चिह्न युक्त ऋपभदेव की प्रचलित किये जिनके चित्र प्राचीन जैन हतिहास संग्रह मे २४ तीर्थडुरो महित और दूसरी ग्यारहवें तीर्थ र श्रा छपे है। श्रेयांसनाथ की उनके चिह्न 'गंडा'युक्त २४ तीर्यकर्ग महित । इन समस्त प्रमाणो से स्पष्ट है कि यदि अशोक बौद्ध इन दोनो मूर्तियों को वहां के लोग म० बुद्ध की मूर्ति 40. Thomas finds about preaching of Jainism in Kashmir by Asoka. (1)-Journal of Royal Asiatic Society vol. IX P. 155. (ii)-Bibloteea Indica, Aina-i-Akbari, Vol. II. 2nd Epn. translated by Col. HS. Jarret. 41. There was nothing to show that he (Asoka) was not a Jain and his desire for eternal happiness may have been ipfiun ced by his Jain back ground. -Traditional History of India p 198. 20 Archaeolopical Department of Baroda State found four metal images from Mahudi in Vijapur and declared them as to those of Buddha, but Prof Dr. Sankalia proves them to the Jain ones. -Bulletin of Decan College Research Institute, vol. I March 1940, pp. 185 to188.
SR No.538028
Book TitleAnekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1975
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size15 MB
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