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________________ भारतीय संस्कृति में महन्त की प्रतिष्ठा बौडवाङ्मय में महत् शम जिनकी मात्मा शुद्ध है, वे महंत हैं। गढवदुषाइकम्मो ___ बौद्ध वाङ्मय में अरहन्त शब्द महात्मा बुद्ध के लिए दसणसुहणाण वीरियमईप्रो । प्रयुक्त प्रयोग है। मरहन्त के जो गुण पालि-साहित्य में सुहहत्यो मम्मा सुद्धो परिहो विचितिज्जो। कहे गये हैं। वे बहुत अंशों में जैन परहन्त के गुणों से समा (द्रव्य संग्रह ५०) मता रखते हैं। पालि-भाषा के बौद्ध पागम (त्रिपिटिक), धवला ठीका में प्ररिहन्त का अर्थ करते हुए लिखा 'धम्मपद' में 'परहन्तबग्गो' नामक एक प्रकरण है। इसमें है किदश गाथानों में भरहन्त का वर्णन किया गया है। धम्मपद परिहननादरिहंता, ... रजोहननादा परिहन्ता, के अनुसार प्ररहन्त वह है जिसने अपनी जीवन-यात्रा प्रतिशय पूजाहत्वादा परिहन्ताः" समाप्त कर ली है, जो शोक रहित है, जो संसार से मुक्त मर्थात् परिहन्त वे हैं जिन्होंने कर्म-शत्रुओं का प्रथवा है, जिसने सब प्रकार के परिग्रह को छोड़ दिया है और कर्ममल का नाश कर दिया है तथा जो अतिशय पूजा के जो कष्ट रहित है योग्य हैं। 'गतद्धिनो विसोकस्स विप्पमुत्तस्स सब्बधि । पाचार्य कुन्दकुन्द 'बोधपाहुड में परिहन्त के गुणों का सब्बगन्थपहीनस्स परिलाहो न विज्जति ॥' वर्णन करते हुए लिखते हैं(धम्मपद, परहन्तबग्गी, १०) जरवाहिजम्ममरणं च उगइगमणं च पूण्णपावं च । ऐसा प्ररहन्त जहां कहीं भी विहार करता है वह तण दोषकम्मे हउणाणमयं च परहंतो ।। भूमि रमणीय (पवित्र) है अर्थात् जिन्होंने जरा, व्याधि, जन्म, मरण, चतुर्गति'यत्थारहन्तो बिहरन्ति तं भूमि रामणेय्यक ।' गमन, पुण्य, पाप-इन दोषों तथा कर्मों का नाश कर (धम्मपद, अरहन्त बग्गो ९२) दिया है और जो ज्ञानमय हो गये हैं वे परहत हैं। महात्मा बुद्ध ने कहा था "भिभुमो, प्राचीनकाल में भरहंत की इन्हीं विशेषतामों को पंचाध्यायी में इस जो भी परहन्त तथा बुद्ध हुए थे, उनके भी ऐसे ही दो प्रकार कहा गया हैमुख्य अनुयायी थे जैसे मेरे अनुयायी सारिपुत्त मौर मौग्ग दिव्यौदारिकदेहस्था घौतघातिचतुष्टयः । लायन है ।' 'संयुक्त निकाय', ५.१६४ (गौतम बुद्ध । ज्ञानदृग्वीर्यसौख्याढ्यः सोऽहं न धर्मोपदेशकः ।।" पृ० १४७) उपसंहार मैनों के उपास्य मरहन्त भारतीय समस्त साहित्य में अरहन्त शब्द अतिशय जैन धर्म में पांच अवस्थामों से सम्पन्न भात्मा पूज्य प्रात्मा के अर्थ में प्रयुक्त हुमा है। वेदकाल से लेकर सर्वोत्कृष्ट एवं पूज्य मानी गई है। इनमें परहन्त सर्वप्रथम अद्यावषि इस शब्द का महत्व है। मरहन्त, जैनों के तो हैं। प्रस्हन्त किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं है। वह परमाराध्य देव हैं । जैन धर्म में जो चार शरण बतलाए हैं तो माध्यात्मिक गुणों के विकास से प्राप्त होने वाला महान उनमें परहन्त सबसे पहले शरण हैंमङ्गलमय पद है। , चित्तारि शरणं पव्वज्जामि । प्ररहन्ते शरणं जैनागम में परहंत का स्वरूप निम्न प्रकार बताया पळजामि । सिद्धं शरण पव्वज्जामि । साह गया है-जिन्होंने चार घातियाकर्मों का नाश कर दिया शरण पग्वजामि केवलि पण्णत्तो धम्मो है, जो अनन्त दर्शन सुख शान मौर वीर्य के धारक है, जो शरणं पव्वज्जामि। उत्तम देह में विराजमान पर्यात् जीवनमुक्त हैं, और १७. धवला-टीका, प्रथम पुस्तक, पृ० ४२-४४ १६. पञ्चाध्यायी-२६०७ १६. बोधपाहुड, ३०
SR No.538028
Book TitleAnekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1975
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size15 MB
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