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________________ २०० वर्ष २८, कि.. अनेकान्त अस्तित्व नहीं था। कही-कही विदुषी नारियो तथा ब्रह्म- समाज में दोनो का विशिष्ट स्थान था और ग्राज भी है। वादिनी स्त्रियों का वर्णन अवश्य मिलता है परन्तु वह राजा तथा प्रजा दोनों ही प्रायिका या परिव्राजिका को किसो व्यवस्था का द्योतक नहीं है। पूरा पूरा विनयपूर्वक सम्मान देते है। ऋषि-पत्नियाँ तथा रानिया पति की सहयोगिनी के जो नारिया पारिवारिक तथा सामाजिक कारणों रूप में ही धार्मिक ( यज्ञादि ) कृत्य करती थी। बान- द्वारा पीड़ित होती थी तथा जिनके मन में वैराग्य के प्रस्थ तथा सन्यासाश्रम में उन्हें प्रवेश करने का अधिकार अंकूर फट निकलते थे, वे प्रवज्या लेती थी। इसमे राजनहीं था। इसमे पुरुष-वर्ग का ही एकाधिकार था। कुल मामन्त तथा श्रेष्ठी व सम्भ्रान्त परिवारो की नारिया उत्तर वैदिक काल में नारी धार्मिक अधिकारो से वचित भी होती थी जिन्हे मसार की असारता की विवेकमयी कर दी गई। कालान्तर मे उसका ह्रास ही होता गया। पन भति हो जाती थी। इस सर्वोदय-तीर्थ में नारी को जैन-मागमों से भली-भांति स्पष्ट है कि उस काल में भी पूरे प्रात्मोत्थान का अवसर तथा तज्जन्य प्रानन्द प्राप्त नारी को न केवल जैन धर्मानुयायी पुरुषों के समान धामिक होता था । अधिकार प्राप्त थे; बल्कि प्राधिका-सब की व्यवस्था मे तग भयवान महावीर के काल मे कई सम्प्रदाय थे ओर साध्वी बनने पर भी किसी प्रकार का प्रतिबन्ध या अकुश उन सम्प्रदायो के सम्थापको ने अपने लिए भी 'तीर्थकर' नही था। महावीर काल में स्त्रियो को संद्धान्तिक तथा उपाधि का प्रयोग किया है जमे पूरण कास्सप, मक्वलिव्यावह रिक दानो दृष्टियो से पुरुषो के सनान स्तर तथा । गोसाल, अजित केसकम्बलि, पधकच्चायन् (प्रकुध प्रतिष्ठा मिली। कात्यायन) सञ्जय वेलट्ठियुत्त, शुद्धोदन-पुत्र बोधिसत्व । जैन-आगमो में प्रायिका-सघ की व्यवस्था प्रथम इनके अतिरिक्त भी इनसे छोटे अनेक शाम्ता थे जो अपने तीर्थकर भगवान ऋषभदेव के काल से ही थी। उनकी सिद्वान्तो को उस कान में प्रचलित कर रहे थे। इनमें में दोनो पुत्रियां ब्राह्मी तथा सुन्दरी ने प्रायिका-दीक्षा भगवान कुछ ने महावीर का अनुकरण करके लघुरूप में भिक्षुगीसे ली थी और ब्राह्मी ( मुख्य प्रायिका ) के नतृत्व में सघ की व्यवस्था करने का प्रयास किया परन्तु वह चल तीन लाख अायिकामो का सघ था। उसके बाद भी नहीं पाई। बौद्ध-धर्म में ही अशत उसका पालन हो प्रत्येक तीर्थकर के काल मे प्रायिका-सघ की व्यवस्था थी। पाया। बौद्ध-धर्म को छोड़कर लगभग सभी सम्प्रदाय पाश्वनाथ के काल में प्रायिका-सघ की प्रधान प्रायिका छिन्न-भिन्न हो गए और उनका चिह्नमात्र भी शेप नही पुष्पचल थी तथा उनके नेतृत्व मे ३८ हजार प्राधिका है। थी। महावीर के प्रायिका-सघ मे ३६ हजार प्रायिकाए बौदघ-धर्म में बोधिसत्व ने भिक्ष सघ की स्थापना थी । प्रधान प्रायिका सती चन्दना थी परन्तु कुछ का की परन्तु भिक्षुणी-सघ की स्थापना उसके कई वर्षों कहना है कि प्रधान मायिका यशस्वती थी परन्तु यह (लगभग मात अाठ वर्ष) तक नहीं हुई। उसका कारण विवाद ग्रस्त बात नहीं है कि सती चन्दना प्रसिद्ध प्रायिका यह है कि बुद्घ नारी के प्रति उदासीन रहे । अपनो राजथी। कुमार अवस्था में उन्होने प्रतापूर की परिचारिकामों को जैन महाव्रती सघ-व्यवस्था मे जैनाचार्य निर्मित घणित रूपो में देखा था और उससे उनके मन में ग्लानि नियमों के आधार पर मनि-सघ तथा आधिका-सघ का उत्पन्न हो गई थी। यह भी उनकी प्रव्रज्या का एक संरक्षण व संचालन करते थे। सत्पात्र नारी को प्रायिका- कारण था । उन्होने स्त्रियो को ब्रह्म वयं का विकार बताया दोआ लेने में कोई विशेष कठिनाई नहीं होती थी। मनि- था। सघ तथा प्रायिका-संघ के स्तर मे थोड़ा ही अन्तर था “इत्यो गल ब्रह्मचरियस्य एत्थाय सज्जते पजा" परन्तु व्यवहार में यह समान ही था। मुनि तथा प्रायिका सयत निकाय ११३६ की दिनचर्या तथा विनय के नियम लगभग समान ही है। उनका विश्वास था कि नारी पिता, पति तथा पुत्र
SR No.538028
Book TitleAnekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1975
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size15 MB
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