SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 196
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीर-काल : कुछ ऐतिहासिक व्यक्ति १६१ पृ० ५१ पर बताया है कि अजातशत्रु बौदधधर्मी नहीं तक को मारना पारमनको है। वे कैसे विजय प्राप्त कर बल्कि सुदृढ जैन था। डा. गधाकृमद मकर्जी प्रादि मकेंगे ? वैशाली सैनापति से शत्रु सेनापति ने कहा-वार अनेक सुप्रसिद्ध इतिहासकार भी इसकी पुष्टि करते है। करो, उसने कहा-वार करना मेरा धर्म नहीं, देश-रक्षा म्वय महात्मा बदर अजातशत्र को बौदध धर्म स्वीकार न (Defence) मेरा धर्म है, यदि आपने वार किया तो करने पर ऐसे महान मम्राट को बदकिस्मत कहते है। नाको चने चबवा दंगा ।शष ने पूरी शक्ति स माक्रमण भ० महावीर का मवशरण इसकी राजधानी में पाया किया। वैशाली-मेना बड़ी वीरता से लडी, ६ मास तक तो इतना हर्षित हया कि जन जग्नल अक्तूबर १९६८ घमामान युद्ध होता रहा, दोनों तरफ से हजारों सैनिक पृ० ६६६६ के अनुसार उसने १२ लाख ५० हजार रुपये मारे गये । अजातशत्र चकित था कि वैशाली सेना इतने सूचना देने वाले को पुरस्कार में दिये और स्वयं अपनी लम्बे समय तक रणभमि में कैसे ठहर सकी ? उसने एक गनी मभद्रा को साथ ले बडी भक्ति और उत्माह से उनकी निमित्त-ज्ञानी मे कारण पूछा तो उसने कहा कि वैशाली वन्दना को गया। में २०वें तीर्थंकर मनि सुव्रतनाथ का स्तम्भ है। यह ६ बाहत्व कुमार--- यह अजातशत्रु का लघ भ्राता था। उसका अतिशय है कि जब तक वह स्थित है, वैशाली अजय राज्य की वॉट पर अजातशत्रु से इसकी अनबन हो गई। रहेगी। अजातशत्रु बड़ा चतुर था। उसने अपना दूत चेटक अजातशत्रु जिसका उपनाम कुणिक था, इमको जान से के पास भेजा कि मुनि मुव्रतनाथ स्तम्भ उसे दे दिया जावे मरवाना चाहता था जिसके भय से इसने महागजा चेटक तो वह बिना युद्ध वापस लौट जावेगा। चेटक स्तम्भ देना के पास वैशाली जाकर शरण-याचना की। महागज जानते नही चाहते थे, शान्तप्रिय थे। हजारो सैनिकों के मारे थे कि अजातशत्र अत्यन्त बलवान योद्धा है। परन्तु एक जाने मे दुःखी थे और समझते थे कि हजारों और मारे मुदृढ जन गरण मे पाये हए को अभय-दान देने से कैसे जायेंगे । इसलिए वह स्तम्भ उन्होंने उसे दे दिया । स्तम्भ इनकार कर सकता था ? अजातशत्र ने चेटक से बाहत्त्व- का देना था कि वैशाली विजय हो गई। कुमार को मांगा, इनकार करने पर विशाल सेना लेकर ७. धनकुमार-सेठानी प्रभावती का पुत्र । अटूट वैशाली पर प्राश्रमण कर दिया। महाराज चेटक तथा सम्पति का स्वामी यह जैनधर्मी था। भ. महावीर के समव. इसका प्रधान सेनापति सिहभद्र और सेनापति वरण नाग शरण में जिन-दीक्षा ले दिगम्बर मुनि हो गया । मोक्ष-पद हिसा द्रत के धारी थे। लोग चकित थे कि शत्र अति पाया । विस्तार के लिए धन कुमार चरित्र (सूरत)। प्रबल है और हमाग गजा तथा सेनापति किसी चीटी ८. जीवन्धर-हेमाग देश (ममूर प्रान्त) का सम्राट 4. Both Buddhists and Jainas clained Ajat- such as his inumacy with Deva Dutt--a Satru as one of them The Jaina claim rebel disciple of Buddha : enimity with appears to be well founded. the Vrijis--a favourite clan of Buddha, -- Dr. V. Smith : Oxford History of his battle against Prasenajita--a stunch India, 2nd Ediuon 1923, Oxford, p. 51. devotee and follower of Buddha. 5. Ajat-Satru was a follower of Mahavira in --Jain Journal (Calcutta) Oct. 1968, the days of Buddha and Mahavira. p. 65. -Dr. Radha Kumud Mukerjee, The Hindu Civilization (Hindi Edn ) 7. Buddha's disregard for Ajat-Satru is clear pp. 19091. from Buddha's own statement, "Ajat6. There are many more reasons for Ajat Satru is an unfortunate King." Satru not being a follower of Buddba, -Dighanikaya, Samannyanphala Sutra.
SR No.538028
Book TitleAnekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1975
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy