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________________ महावीर-कालीन भारत की सांस्कृतिक झलक १८७ का सम्मान था और उन्हें आवश्यक आवास, आहार, वस्त्र वह मरता है तो पृथ्वी धातु पृथ्वी मे, अप घातु जल में, पात्रादि दिये जाते थे। तेज धातु तेज में और वायु धातु वायु मे मिल जाते है बौद्ध साहित्य मे उल्लेख : तथा इन्द्रियाँ आकाश में चली जाती है । दान करने की उपर्यवत सात तीर्थको (धर्मनायको) मे महावीर बात मूर्खतापूर्ण है : मृत्यु के बाद प्राणियों के गुण-अवपौर बुद्ध को छोड़ कर बाकी के विषय में बहत कम गुणो की चर्चा होती है, उनका कुछ भी शेष नहीं बचता' जानकारी मिलती है। इसका कारण सम्भवत. यही है कि सब भस्म हो जाता है। उनके ग्राम्नायो का उच्छेद हो चुका है। बौद्ध साहित्य पूर्ण काश्यप : मे तत्सम्बन्धी जो उल्लेख मिलता है, उसका सार इस पूर्ण काश्यप प्रक्रियावादी थे। वे कहते थे कि किसी प्रकार है के अच्छे बरे कर्मों का कोई पुण्य-पाप नही होता । चाहे मंखली गोशाल: कैसा भी दान, यज्ञ किया जाय, उसका पुण्य नहीं होता मखली गोशाल नियतिवादी थे। वे कहते थे-प्राणी की और चाहे जैमी हिमा, चोरी, असत्य-भाषण मादि करे, शुद्धता या अपवित्रता का कोई हेतु नहीं होता । प्राणियो उसका पाप भी नहीं होता। के सामर्थ्य से कुछ नही होता, उनमे बल, पराक्रम, वीर्य नियंठ नातपात (मशवीर) : या शक्ति नहीं है। वे अवश, दुर्बल और निवार्य है। वे निगट नातपुत्त (महावीर) संवरवादी थे, उनके नियति (भाग्य), सगति एव स्वभाव के कारण परिणत चार मबर थेहोते है और जन्मो में दुःख भोगते है। १-निग्रन्थ जल का वारण करता है, जिससे जल के प्रकुध कात्यायन : जीव न मर जाये। प्रकुध कात्यायन अन्योन्यवादी थे। पृथ्वी, आप, तेज, वायु, २-निर्ग्रन्थ सभी पापा का वारण करता है। सुग्व, दुःख एव जीव-इन मात पदार्थों को वे स्वयभू बताते ३-निर्ग्रन्थ सब पापो के वारण से धूतपाप हो जाता थे, किसी के बनाये हुए नही । उनके अनुसार कोई किसी को न तो सताता है न सुख पहुचाता है । पदार्थों को ४-निर्ग्रन्थ मभी पापो के निवारण में लगा रहता जानने या कहने वाला कोई नही है। कोई किसी के प्राण नही लेता। हत्या करने वाले का शस्त्र सात पदार्थो के इम प्रकार चार-चार सबरो से संवत रहने के कारण बीच के अवकाश मे घुस गया है, ऐसा मानना चाहिए। निर्ग्रन्थ. गतात्मा (अनिच्छक), यतात्मा (संयमी) प्रार संजय वेलट्टिपुत्र : स्थितात्मा कहा जाता है। ___सजय वेलट्ठिपुत्र विक्षेपवादी थे । परलोक है या नही, उपर्युक्त वर्णन दीघनिकाय सामञ फल-सुत्त मे प्राणियो की औपपातिकता है या नहीं, अच्छे-बुरे कर्मों का पाता है, जिसे धर्मानन्द कोसाम्बी ने भगवान बुद्घ, पृ० फल होता है या नही. मृत्यु के बाद जीव रहता है या १८१-१८३ में उपस्थित किया है। नही. इन बातों के विषय में उनकी कोई निश्चित धारणा जैन साहित्य में उल्लेख : नही थी। जैन-माहित्य से भी तत्कालीन धर्मनायकों पर विशेष अजित केशकम्बल : प्रकाश नही पडता। मंखली गोशाल के विषय में कुछ अजित केशकम्बल उच्छेदवादी थे। उनके अनुसार उल्लेख मिलता है, परन्तु अन्य नाम या उनके सम्प्रदायों इलोक, परलोक, माता-पिता, दान, यज्ञ, होम मे कुछ का नाम देखने मे नही पाता। जन-शास्त्रो के अनुसार नही है। इनको जानने वाला भी कोई नही है । शरीर मवली गांगाल से महावीर का साक्षात्कार हुमा था। कुछ चार भूतो-पृथ्वी, आप, तेज और वायु-का बना है । जब समय तक वे महावीर के शिष्य भी रहे, परन्तु बाद में
SR No.538028
Book TitleAnekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1975
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size15 MB
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