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________________ महावीर - कालीन भारत की सांस्कृतिक झलक राजनैतिक स्थिति : महावीर के काल में भारत में प्रायः साठ से अधिक राज्य विद्यमान थे । इन्हें महाजनपद या जनपद कहा जाता था । इनके नाम कम्बोज, गंधार, कैकेय, पंचाल, शाल्व, वैराट, मरु, सिन्धु-सौवीर, कच्छ, सुरठ, मरहट्ट, मत्स्य, ग्राभीर, कुह, सूरसेन, वत्स, भवन्ती, लोहित्य, भग्ग, कोसल, काशी, शाक्य, मल्ल, वज्जि, विदेह, मगध अग, उत्कल, कलिंग, बंग, भुत्तुव, कामरूप, प्रागज्योतिष, कोलीय, मौर्य, सबर, कोंकण, आन्ध्र, पाण्ड्य, ताम्रपण, आदि थे। इनमे वत्स, प्रबन्ती, कोसल धौर मगध मे राजतंत्र था, बाकी गणतंत्रात्मक थे । राजतंत्रों का राजा निरकुश नहीं होता था, वह मंत्रि परिषद की राय से कार्य करता था और प्रजा की कैनी भौर अधिक सन्तुलित भौर अधिक चमत्कार पूर्ण हो उठी है। बड़े महत्त्व की बात यह है कि कला के इन सभी प्राडम्बरों के मध्य भी वीतराग जिनेन्द्र की सादगीपूर्ण सौम्य मुद्रा के अवतरण में भी घाबू के कलाकार को बराबर की सफलता प्राप्त हुई है। चौदहवीं शती में बाबू में डिजाइनों जालियों और पच्चीकारी के जो नमूने इन जैनकला-प्राराधकों ने प्रस्तुत किये थे, उनकी समानता कर पाने मे ताजमहल का कलाकार भी सक्षम नहीं हो सका । परवर्तीकाल मे जब भारतीय मूर्तिकला की आराधना दक्षिण मे विशेष रूप से हुई तब वहाँ भी जैन कलाकार पीछे नही रहा । पर जब कला का ह्रास देश में हुआ तो जैनकला का भी ह्रास होता गया। फिर भी आज जो प्रमाण उपलब्ध हैं, उनके सहारे यह कहा जा सकता है कि भारतीय कला के विकास में ही नहीं, प्रसार में भी जैनों का योगदान प्रचुर एवं महत्त्वपूर्ण रहा है। 00 सुषमा प्रेस, सतन ( म०प्र०) श्री कन्हैयालाल सरायको 1 भावना का समादर था । गणतंत्र में कहीं एक मुख्य राधा होता था, कही गणराजाओं की परिषद थी, कहीं मुख्य राजा होते हुए भी गणपरिषद् प्रधान थी और कहीं मुख्यगण बारी-बारी से राज्य करते थे । कुछ एक महत्वाकांक्षी विस्तार - लोलुप सम्राट् भी थे। गणतंत्रों से इनके सम्बन्ध अच्छे नहीं थे और कभी-कभी वे युद्ध तक कर बैठते थे । मग का राजा कुणिक (प्रजातशत्रु) इसका ज्वलंत उदाहरण है । उसने वज्जि, काशी, कोसल, घोर मल्ल राष्ट्रों को प्राक्रमण द्वारा जीत कर अपने राज्य का विस्तार किया था । कोसल के राजा विदुडम ( विदुधव) ने शाक्यों पर आक्रमण कर उन्हें अपार क्षति पहुंचाई थी, पर शाक्यों पर कोसल का शासन स्थापित नहीं हुधा था। इसमें राज्य विस्तार की कामना न होकर बदले की भावना थी। गणतंत्रों के सम्बन्ध प्रापस में प्राय: अच्छे थे। कारण विशेष से कभी-कभी कुछ विवाद भी उठते रहते थे । नदी, जल, परिवहन, ग्राम आदि के कारणों से विवाद उठना ही इनमें मुख्य था । कभी-कभी किसी कन्या को लेकर भी झगड़े खड़े हो जाते थे । शासन पद्धति : वज्जियों में एक मुख्य राजा होते हुए भी गणों की परिषद से यह राष्ट्र शासित था । महल राष्ट्र के गणराजा बारी-बारी से राज्य करते थे । जैन शास्त्रों के अनुसार वज्जि और महल गणतन्त्रों की नो नो शाखायें थीं । वज्जि गणतंत्र में लिच्छिवि प्रमुख थे, बाको ज्ञातृ, विदेह, मल्ल, उग्र, भोग, ऐक्ष्वाक आदि थे। ज्ञातु महावीर का पितृकुल था, इसकी परम्परा ऋषभदेव के कुल से संबंधित बताई जाती है । मल्ल भी इक्ष्वाकु के वंश से सम्बन्धित थे । लक्ष्मण के पुत्र चन्द्रकेतु ने इसे बसाया था । गणतंत्रों की राज्य प्रणाली सुव्यवस्थित थी और
SR No.538028
Book TitleAnekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1975
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size15 MB
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