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अहिंसा : प्राचीन से वर्तमान तक
॥ श्री जगन्नाथ उपाध्याय, वाराणसी अहिंसा भारतीय परम्परा मे एक विकसनशील होने की धारणा पुष्ट होती गयी। बीसवी शताब्दी में आध्यात्मिक प्रयोग है और वह विभिन्न प्रयोगों के द्वारा महात्मा गाँधी ने इस आध्यात्मिक तत्व को व्यावहारिक ही एक उच्चतम मानसिक गुण तथा नीति-धर्म के रूप में तथ्य के रूप में लाकर खड़ा कर दिया। उन्होंने इस क्षेत्र विकसित हुअा है। अहिंसा का स्वरूप प्रयोगात्मक इस में युगान्तरकारी साहस का परिचय दिया और इसके लिए अर्थ में रहा है कि वह अन्य अनेक प्राध्यात्मिक तत्वों की राजनीति का क्षेत्र चना, जो व्यावहारिक दृष्टि से बहुत तरह पूर्व से विश्वास-प्राप्त धर्म नहीं, प्रत्युत उसके पीछे ही विषम और जटिल होता है, जिसके लिए धर्म और व्यावहारिक परिणतियाँ और साधको के अनुभव दीख इतिहास ने कूटनीति या प्रनीति को भी ग्राह्य, न्याय्य पड़ते हैं । इस प्रकार व्यावहारिक अनुभव और मानसिक और क्षम्य माना है । गाँधी जी के महान् प्रयोगों ने इस साधना के द्वारा यह एक अपाजित तथ्य के रूप में प्रस्तुत दिशा की अग्रिम सम्भावनाओं को वहुत ही मुखरित कर है, जो सदा विद्यमान स्थिति में रहा है। इस विकास क्रम दिया है। अब हम इस स्थिति में है कि अहिंसा के इतिमें अहिंसा जब तक अधिक व्यक्तिगत रही है, तब तक हास का तर्क समस्त वैज्ञानिक अध्ययन कर सकें और उसका व्यवहार क्षेत्र में सामान्य परीक्षण नही हो सकता इसकी नयी व्यावहारिक सम्भावनाओं पर अपना विचार था किन्तु प्राचीन काल मे ही जैसे-जैसे व्यक्तिगत अनु- व्यक्त कर सके। भवों की व्यावहारिक सिद्धि के रूप में संभावना की जाने प्राचीन भारतवर्ष मे अहिसा के विकास के दो क्षेत्र लगी. वैसे-वैसे उसके वैज्ञानिक तथ्य के रूप में विकसित रहे है-एक व्यक्तिगत साधना का तथा दूसरा व्याव
इस्राइल जब अपनी शक्तिम भविष्यवाणी से दिशाए हारिक कल्पना का । व्यक्तिगत साधना के रूप में विकास गंजा रहा था। तब महावीर चालीस साल के थे। उसने का एक मात्र थेय योग-शास्त्र को है और उसके व्यावअपनी आवाज से अपनी जनता (यह दियो) को फिर जगाया हारिक सम्भावनाप्रो का सुविस्तृत विवेचन बौद्ध जातकों इसी के समय बाबुली कैद से कुरुष ने, महावीर के जीवन महाभारत, बौद्ध-त्रिपिटकों, जैन कथानों मे तथा इनके काल में ही नबियों को डाया, जहाँ वे दशकों बन्दी रहे वर्ण्य विषयो पर जो पश्चाद्वर्ती साहित्य काव्य, नाटक. थे और धार्मिक नेताओं के साथ वह भी इस्रायल लौट, पुराणादि लिखे गए है, उनमे ऊहापोह के साथ वणित है। और कुछ ही दिनों बाद सुलेमान (सालोमन) का विध्वस्त
योग की प्रामाणिकता में चार्वाक और मीमांसकों को मंदिर फिर जेरुसलम में उठ खड़ा हुआ।
छोड़ कर किसी भी भारतीय दार्शनिक परम्परा मे विवाद इस्रायली यहूदी नबी बाबुली कैद में कुचले जाते रहे नहीं रहा है। यह स्पष्ट है कि योग मे भी विश्वास-लब्ध या उन्होंने अपने धार्मिक विश्वासों पर पांच नहीं माने तत्वों की भावना के लिए पर्याप्त अवकाश है, इसके दी, न अपना धर्म छोड़ा, न यहबो के अतिरिक्त दूसरे देवता प्राधार पर परमात्मा में मतभेद भी रहा है, किन्तु अहिंसा को स्वीकार किया । उसी कैदखाने में उन्होंने अपनी धर्म की स्थिति उनसे भिन्न है। सभी एकमत से अहिंसा की पुस्तक के पांच आधार पेन्तुतुख' लिखे जो बाइबिल मे 'पुरानी पोथी'-प्रोल्ड टेस्टामेन्ट के नाम से प्रसिद्ध हुए।
उपयोगिता को स्वीकार करते है। परिभाषा और विश्ले00
षण में भी प्रायः सभी समान है। एक तो अहिंसा की अध्यक्ष-प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति विभाग, गणना बौद्धों के अनुसार शील मे, वैदिकों के अनुसार
विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन (म०प्र०) 'यम' में तथा जैनो के अनुसार 'अण-व्रतो' में की गई है,