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________________ महावीर के विदेशी समकालीन कुरु ने वन की मतदारा प्रभाव उत्पन्न करने वाली घटना थी, कारण कि इसने उन यहूदी नवियों को बन्धन मुक्त कर दिया, जिन्हे खल्दी सम्राट ने इस्रायल से लाकर कैद में डाल दिया था । बाइबिल की 'पुरानी पोथी' की वह घटना भी तभी घटी थी जिसका उल्लेख हर भाषा का मुहावरा करता है। सर्वनाश के लिए 'दीवाल का लेख' । बाबुल का राजा वेल्शज्जार तब जशन में मस्त था । दावत चल रही थी । नगी नारियां भोजन परस रही थी। किवदन्ती है, एक हाथ निकला और महल की दीवाल पर उसने निल दिया तुम तौले जा चुके हो, तुम्हारे दिन समाप्त हो चुके है, तुम्हारा अन्त निकट है – मेने, मेने, तेल, उफार्सीन । और कुरुष ने तत्काल हमला कर बाबुल को जीत लिया । बाबुल जीत तो लिया गया पर वायु के पुराने गयी असुरो का देवता 'असुर' ईरानियों के सिर जादू बनकर जा पड़ा। उसका उल्ले महान देवता के रूप मे बाहर मज्दा के नाम से जेन्दावेस्ता में हुया और उसी देवता के प्रधान पूजक महावीर के प्राय सनकालीन पारसियों के नवी जरथुत्र हुए। अग्नि की पूजा के समर्थक, आचार को घर्म मे प्रधान स्थान देने वाले इस धार्मिक ने ईरान की सीमाओ को सपने उपदेशों से गुंजा दिया । जरथुम का धर्म हो गया दारा प्रादि सभी राजाओ ने उसे स्वी कार किया। पर स्वयं उस धर्म के प्रचारक को धर्मार्थ बलि हो जाना पड़ा। अग्निशिखा के सामने मन्दिर मे यह पूजा कर रहा था। तब असहाय ने उसमे प्रवेश कर महात्मा का वध कर दिया। भारत इस प्रकार की हत्याओ से धर्म और दर्शन के क्षेत्र मे सर्वथा मुक्त था । I ग्रीस युद्धों में व्यस्त था, वहा के पेरिक्ाियन युग का भी धारम्भ नहीं हुआ था उसके मुकरात पीर दियोजनीज, अफलातून और अरस्तू सभी भविष्य के गर्भ मे थे पर हा, पश्चिमी एशिया के भूमध्य सागरीय । पूर्वी अचल में एक ऐसी जाति का जन्म कुछ सदियो से हो गया था जिसके नबियों के समान शक्तिमान् स्वर मे धार्मिक नेता कही और कभी न बोल थे। वह जाति थी यहूदी, फिलिस्तीन की जूदिया इवान की इब्राहिम धीर मूसा की सन्तान शाब्दिक शक्ति और चुनौती भरी वाणी में उनका संसार मे कोई साथी नहीं उन्हीं में कालान्तर मे ईसा और बतिस्मावादी योहन का जन्म हुआ पर हम बात तो उनकी कह रहे है जिन्होंने खूनी असुर सम्राटो को ललकारा था और निर्भीकता का राज नीति और धर्म के क्षेत्र मे साका चलाया था - वे भी महावीर के समकालीन थे । उनको ही कुरुष ने खल्दी सम्राटों के वचन से बाबुन में मुक्त किया था। एकेश्वरवाद की कल्पना सबसे पहले यहूदियों ने की, यहवा अथवा जेहोवा की जिसका नाम ऋग्वेद तक में विशेषण के रूप मे इन्द्र, वरुण आदि महान ग्रार्य देवताओं के नामो के साथ जुड़ा मिलता है। यहूदियो, विशेषकर उनके नबियो के अन्य देवता का इस्रायल में पूजा जाना श्रम था । अत्याचारियों को धिक्कारने का कार्य सन्त एलिजा और एलिशा के समय ही प्रारम्भ हो गया था। वायो ने महावीर से सो साल ही पहले शान्ति के पक्ष मे युद्ध के विरोध में पहली आवाज उठाई थी उन्हें अपनी तलवारो को गला कर हल के फल बनाने पड़ेंगे' और 'एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र के विरुद्ध तलवार नही उठा सकेगा ।' जैरेमिया ने असुर सम्राट असुर बनिपाल के विध्वसात्मक आक्रमण से अपनी जनता को तो आगाह किया ही था। उस सम्राट को भी उसकी खूनी युद्ध-नीति के लिए धिक्कारा था। - " नाम के जीवन काल मे ही महावीर जन्मे थे। सहन सर्वनाशी मसुर सम्राटो की राजधानी के प्रति निवे के प्रति उसके विश्वत के पूर्व नाहून ने चुनौती ओर विकार के स्वर मे ललकारा था 'देख और सुन ले, निनेवे, इस्रायल का देवता तेरा दुश्मन है— देख तरी कारवाजी तेरे सूनी कारनामे, तुझे नगा करके, हम राष्ट्रों और जातियों को दिखा देंगे तु चैन की नींद नहीं सो पायेगा, प्राग की लपटों मे जल मरेगा तेरे शासक । तेरे अभिजात बिखर जाएंगे, दूर दूर पहाड़ी चोटियों पर टुकड़े टुकडे होकर कुचल जाएगे। उन्हें कोई इकट्टा न कर पायेगा तेरा कोई नामलेवापुसाहाल न रहूंगा ! मुन" तिने नही उठती हुई धार्यो की शक्ति से नष्ट कर दिया गया ।
SR No.538028
Book TitleAnekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1975
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size15 MB
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