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________________ उपाध्याय यशोविजय : व्यक्तित्व और कृतित्व श्री गोकुल प्रसाद जन, नई दिल्ली प्राचार्य हेमचन्द्रा के पश्चात उपाध्याय यशोविजय विद्वान थे। उनके सान्निध्य मे यशोविजय का विद्या ययन जैसा सर्वशास्त्र-पारंगत और उद्भट दूसरा विद्वान प्रारम्भ हुअा और शीघ्र ही यशोविजय भी सस्कृत, प्राकृत. दृष्टिगोचर नही होता। दर्शन शास्त्र के तो वे असाधारण गुजराती और हिन्दी में पारगत हो गये और काव्य रचना मनीषी थे। तर्क-शास्त्र में इनकी विशेष गति थी। ये करने लने। एक बार अहमदाबाद में उनकी अद्भुत स्मरणवि. स. १६८० से १७४३ तक वर्तमान रहे। शक्ति और प्रखर बद्धि से प्रभावित होकर सेठ धन जी यद्यपि यशोविजय ने स्वयं अपने व्यापक साहित्य में सूरा ने दो हजार चाँदी की दीनारें, उनके उच्च अध्ययन कहीं पर भी अपने विषय में कुछ नही लिखा तो भी के लिए भेंट की। वे वाराणसी चले गये और वहाँ के 'सुजसवेलीभास' के आधार पर उनका थोडा-बहुत परिचय सर्वोत्कृष्ट विद्वान् भट्टाचार्य जी से षड्दर्शन का पारायण प्राप्त हो जाता है। 'सुजसवेलीभास' के रचयिता मनिवर किया। वहाँ वे 'न्याय विशारद' और 'न्यायाचार्य' से विभकान्तिविजय उनके समकालीन थे। प्रत. यह कृति इस षित हुए। तीन वर्ष के उपरान्त वहाँ से आकर उन्होंने दष्टि से सर्वथा प्रामाणिक मानी जानी चाहिए। वि० स० १७०३-१७०७ तक चार पर्यन्त तक आगरा में कर्कश तक शास्त्र का अध्ययन किया। उपर्युक्त रचना मे भी यशोविजय के जन्मस्थान के । विषय मे कुछ नही लिखा है। इसी कारण अभी तक इस वे नव्य न्याय के बड़े भारी विद्वान थे और उन्होने विषय पर मतभेद था, किन्तु अब महाराजा कर्ण देव के उसी शैली में कई ग्रन्थ भी रचे । उनके जैन तर्क भाषा, ताम्रपत्र से सिद्ध हो गया है कि उनका जन्म गुजरात के ज्ञान बिन्द, नय रहस्य, नय प्रदीप यादि ग्रन्थ उत्कृष्ट 'कनोडा" गांव मे हया था। यशोविजय का जन्म कोटि के है। उनकी विचार सारणि बहन ही परिष्कृत और सं० १६८० के लगभग हुआ था। सतुलित थी। यशोविजय के पिता का नाम नारायण और माता यशोविजय जैन न्याय के भी प्रकाण्ड पडित थे। का नाम सौभाग्य देवी था। दोनों ही धर्मपरायण, दान- उनमे प्रभावित होकर ही पं० बनारसीदास दिगम्बर बन शील और उदार वृत्ति के व्यक्ति थे। उनका प्रभाव यशो- सके थे। ये जन्म से गुजराती थे किन्तु अनेक वर्ष तक विजय पर भी पड़ा। इनका बचपन का नाम जसवन्त हिन्दी क्षेत्र मे रहने के कारण हिन्दी पर भी इनका पूर्ण अथवा यशवन्त था। उनका एक छोटा भाई पद्मसिंह भी अधिकार हो गया था। अगाघ विद्वता अजित करके लौटने था । प्रहमदाबाद में प्रसिद्ध हीरीश्वर जी के चतुर्थ पदवर पर यशोविजय का अहमदाबाद के सूबेदार महावत खा पं.नयबिजय जी ने वि० सं० १६८८ में यशवन्त को, उसके ने अपने दरबार में बड़ा शानदार सम्मान किया। वहा मां-बाप की स्वीकृति के साथ दीक्षा दी। तत्पश्चात् ये उन्हें ने अपनी विद्वत्ता और स्मरण शक्ति के परिचायक यशोविजय कहलाये। अठारह प्रवधान प्रस्तुत किये और सब को अत्यन्त प्रभा. पं० नय विजय जी स्वयं प्राकृत, संस्कृत, गुजराती, वित किया। अहमदाबाद मे ही उन्हें वि० स० १७१८ में व्याकरण, कोश, ज्योतिष आदि विद्याओं के उद्भट 'उयाध्यय' पदवी से विभूषित किया गया। महेसाणा से पाटण जाने वाली रेलवे लाइन पर दूसरा स्टेशन धीणोज है। इससे चार मील पश्चिम में कनोडा गांव है।
SR No.538028
Book TitleAnekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1975
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size15 MB
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