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मह और: कुछ तथ्य
के किनारे जीर्ण उद्यान के पास श्यामाक नामक गाथापति ३६००० माध्वियां, १,५६,००० श्रावक व ३,१८,००० के क्षेत्र में शालवृक्ष के नीचे, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के श्राविका भी। योग में उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ। अब वे 'अर्हत', इसके बाद महावीर घम-धम कर सदुपदेशों से लोगों 'जिन', 'सर्वदर्शी' व 'केवली' हुए।
को लाभान्वित करने लगे। जनभाषा अर्द्धमागधी में
वे अपना प्रवचन देते जिमसे जन-मन मुग्ध हो उनकी चतुर्विध संघ की स्थापना
पोर गिना पाता । राजा श्रेणिक, कणिक प्रादि तक जहाँ इसके बाद ही मध्यम पावा में भव्य समवशरण का उनके भक्त थे, वही हरिकेशी जैसे अछून भी। महावीर प्रायोजन हुआ, जिसकी व्यवस्था देवलानी ने की। की दष्टि में गभी ममान थे। बट्टी मज-धज के साथ यह हुना, यथा
निर्वाण प्रशोकवृक्षः सुरपुष्पवृष्टि:,
अंततः ७२ वर्ष की आयु में प्रर्थात् ५२७ ई० पू० में विध्यध्वनिश्चामरमासन च । पावा में दीपावली की रात उनको निर्वाण प्राप्त हमा। भामण्डलं दुण्दुभिरातपत्रां,
इम निषय में थोड़ा मतभेद है कि वह पावानगरी कौनसतप्रातिहार्याणि जिनेश्वरस्य ।। भी है, जो उन्हें निर्वाण प्राप्त हुग्रा । वैसे तो मैंने पावा
पूरीव पायानगरी दोनो को देखा है व बहत कुछ तव्य इसी ममवशरण में महावीर ने गौतम आदि ११
एकत्रित फिर है। किन्तु लेख बहुत बढ़ रहा है, अतः यह गणधरों को श्रमण दीक्षा देकर चतुर्विध संघ की स्थापना
फिर कभी देंगे। यहाँ बस इतना ही कहकर समाप्त की, जिसमें श्रमण, श्रमणा, थावक एवं श्राविकाएँ
करना है कि २५०० वाँ निर्वाणोत्सव विश्वस्तर पर मना थी। उनके इस पूरे धर्म-परिवार में गण, ११ गणधर, कामगध हिमा, अस्तेय, अपरिग्रह व ब्रह्मचर्य के
मम्बन मे प्टि को सबारें म्याद्वाद व अनेकात से यूग को ६०० चौदहपूर्वधारी, ४०० वादी, ७०० वैत्रियल ब्धि- निखरे धारी, ८०० अनुत्तरोपपातिक मनि, १४००० साधू,
00 [पृ० १४. का शेपाय दया, क्षमा, प्रेम प्रादि सदगुण अपने आप मनुष्य मे पायेगे दिया कि यरिया, दया क्षमा एक प्रेम में बड़ी अपूर्व शक्ति और वह 'अहिसा परमो धर्म' का पालन कर सकेगा। होती है तथा यह शक्ति उसे मच्चे सुख एवं शाति की प्राज विज्ञान के भोतिकवादी युग में लोगो की
भगकार हावीर ढाई हजार वर्ष पूर्व समाज की इच्छाम्रो का कोई प्रत नही और जब मनुष्य की इच्छा
जिम स्थिति को दबकर दृग्वी और विचलित हुए थे, की प्रति नहीं होती तो उसे क्रोध पा जाता है। यह क्रोध नाज उसमें कही अधिक बी स्थिति हमारे समाज की भी मनुष्य के लिए बड़ा अहितकर है। यह न केवल मनुष्य है। ग्राज का मानब भौतिक प्रगति की चकाचौंध में पथकी शक्ति को क्षीण करता है, वरन दूसरों के प्रति प्रेम की भ्रष्ट हो, दिग्भ्रमित-सा इधर-उधर भटक रहा है। धर्म भावना को भी नष्ट करता है। तप के समय भगवान् में उसकी ग्राम्था नहीं; सदाचरण का उमकी दृष्टि में महावीर को लोगों ने तरह-तरह से यातनायें दी, उन पर कोई मल्प नहीं: नीति और प्रादर्श उसे कोरे उपदेश पत्थर फेके, उन्हे बेकसूर मारा-पीटा, किन्तु उन्होंने किमी प्रतीत होते है। ऐसी स्थिति में, ससार-सागर में डगमगाती पर क्रोध नही किया। हिंसा का उत्तर कोंने अहिसा में मानवता की इस नैया को भगवान महावीर की अहिंसा दिया। नतीजा यह हुआ कि आगे चलकर लोगों को । ही किनारे लगा सकती है। पश्चात्ताप हा और वे उनके चरणो पर प्रा गिरे। इस प्रकार, महावीर ने अपने जीवन के कार्यों से सिद्ध कर रायपुर, (मध्य प्रदेश)