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________________ १२८, वर्ष २८, कि.१ अनेकान्त अकित लेखों में नाम का उल्लंख ही पर्याप्त था। कालांतर तुल्य मूर्तियों को स्थान दिया गया था। गुप्त-युग की में प्रतिमा की चौकी पर उनका लांछन उत्कीर्ण किया प्रतिमाओं के प्राभामण्डल पर दो मालाधारी विद्याधर जाने लगा। दिखलाई पड़ते हैं। प्रभाचक्र का अंकन भी प्रतिमानों को कुषाणकालीन भगवान महावीर की एक अन्य प्रतिमा गुप्त-कालीन घोपित करता है। महावीर की प्रतिमायें गुप्त कालान जो मथुरा संग्रहालय (मथुरा संग्रहालय-जी १) में सुर- आसन-मुद्रा में मध्य प्रदेश एवं बिहार आदि से उपलब्ध क्षित है, उत्थित पद्मासन मे बैठी है। मस्तक के पीछे पद- हुई हैं । महावीर की प्रतिमायें प्रायः कमलासन या सिंहासन माव-पत्र और ऊपर छल्लेदार केश है इसमे अंगों का पर बैठी मिलती है । उनके दोनों हाथ ध्यान-मुद्रा में विन्यास ठस न होकर लोच भरा है और मुख पर दिव्य दृष्टिगोचर होते है। छवि है। तीर्थकरों की मूर्तियों के वक्ष पर श्रीवत्स एवं मथरा के कंकाली टीले से उपलब्ध एक मस्तक रहित मस्तक के पीछे प्रभामण्डल पाया जाता है। फणाटोप जिन-मति लखनऊ संग्रहालय में सरक्षित है । प्रतिमा पर वाली मूर्तियों में प्रभामण्डल नहीं रहता । किन्हीं मूर्तियों गुप्त सवत ११३ (४३२ ई०) अकित है । पुरातात्विकों ने में तीर्थङ्कर का नाम भी मिलता है। इस प्रतिमा का समीकरण महावीर से किया है।" सम्भमहावीर की " ऊँची, यमुना नदी से उपलब्ध, वतः विद्वानो के समीकरण का प्राधार प्रतिमा-पीठ पर प्रतिमा पद्मासन में है। यह प्रतिमा मथरा संग्रहालय उत्कीर्ण सिंह है जो महावीर जी का लांछन है। परन्तु हम (क्रमांक २१२६) में संरक्षित है। मूर्तितल पर उत्कीर्ण प्रतिमा-पीठ पर उत्कीर्ण सिहो को सिहासन के प्रतीक अधूरे लेख में बर्धमाम का स्पष्ट नामोल्लेख होने के बाव- के द्योतक मान सकते है, न कि प्रतिमा के लांछन के रूप जूद इस प्रतिमा में तिथि अंकित नहीं है। कंकाली टोले में। से महावीर की १ फुट ४ इंच ऊँची प्रतिमा प्राप्त हुई है जो महावीर का चित्रण करने वाली एक गुप्तयुगीन मूर्ति ध्यान-मुद्रा में प्रासीन है। मथुरा संग्रहालय में संरक्षित भारत-कला-भवन, वाराणसी में सगहीत है । वाराणसी से यह प्रतिमा भग्न है । लेखयुक्त पादपीठ पर चित्रित अर्ध उपलब्ध इस मूर्ति में देवता को उच्च पीठिका पर ध्यानास्तम्भों पर धर्मचक्र स्थित है, जो पाठ पूजकों द्वारा वंदित वस्था मे प्रदर्शित किया गया है। पीठिका के मध्य भाग हो रहा है । ये सम्भवतः मूर्ति के दान-दाताओं की प्राकृ• मे उत्कीर्ण धर्मचक्र के दोनों पार्श्व में सिहों का अंकन है तियों का अंकन करती हैं। मथुरा सग्रहालय (क्रमांक- जो इस प्रतिमा की महावीर के अंकन से पहचान कराती ५३६) में संकलित मथुरा के ही गूजरघाटी स्थान से है। पीठिका के दोनों पार्श्व मे उत्कीर्ण दो तीर्थकर इस प्राप्त एक मध्ययुगीन चित्रण का श्रेष्ठ उदाहरण २४ अंकन की अपनी विशेषता है। इस मनोरम चित्रण में तीर्थङ्करों की मूर्तियां हैं जिनका वर्णन यथा-स्थान किया महावीर के दोनों पाश्च मे दो प्राकृतियो को उत्कीर्ण किया जायेगा। गया है जो सम्भवत. शासन-देवता हैं। महावीर के पृष्ठ भाग ___गुप्त-कालीन जैन प्रतिमायें सुन्दरता तथा कलात्मक मे प्रदर्शित अलंकरणरहित प्रभाचक्र के दोनो पार्श्व में दो दृष्टि से सर्वोत्कृष्ट हैं। गुप्त-युग में जैन प्रतिमानों में हमें उड़ते हए गंधों का चित्रण है। महावीर के केश रचना दो विशेषतायें-अधोवस्त्र तथा श्रीवत्स-परिलक्षित होती गुच्छकों के रूप में निर्मित है। गुप्तकालीन सम्पूर्ण विशेषहैं। जैन मूर्तियों की बनावट उत्तम है। इसी काल में जन तामों से भषित इस मूर्ति के मुख पर प्रदर्शित म प्रतिमाओं में यक्ष-यक्षिणी, मालावाही गन्धर्व प्रादि देव- शान्ति व विरक्ति का भाव प्रशंसनीय है। ९. भारतीय कला : वासुदेव शरण अग्रवाल, पृ० २८४, Jaya Golden Jublles vol 1, Pt. Page 153, चित्र ३१६। Figure 8. R. D. Banerjee : Age of Impe. rial Guptas Pt. XVIII; U.P. Shah : Akota १०. Dr. R.C. Sharma : Mahavira Jain Vidya. Bronzes, P. 15.
SR No.538028
Book TitleAnekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1975
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size15 MB
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